गत दिनों पश्चिमी सिंहभूम के 16 गांवों के ‘मानकी’, ‘मुंडा’,’डाकुआ’, ‘हो’ आदि समाज के लोगों ने एक महापंचायत की। इसमें निर्णय लिया गया कि गांव के लोग स्थानीय व्यवस्था के अंतर्गत जंगलों को आग से बचाएंगे। महापंचायत में यह तय किया गया कि जो व्यक्ति जंगल में आग लगाते हुए पकड़ा जाएगा, उससे 5,000 रु. का जुर्माना चुकाना होगा। यह भी तय किया गया कि आग लगने की सूचना मिलने पर सभी लोग उसे बुझाने में जुट जाएंगे। और यदि सूचना मिलने के बाद भी कोई पर्याप्त कारण के बिना आग बुझाने में सहयोग नहीं करेगा तो उस पर 100 रु. का जुर्माना लगाया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि झारखंड के जंगलों में महुआ के पेड़ बहुत अधिक होते हैं। इन दिनों महुआ के पकने का समय है और पकने के बाद गिरने भी लगे हैं। ऐसे में पेड़ के नीचे पत्तों के होने से महुआ चुनने में बड़ी दिक्कत होती है। इस कारण लोग उन पत्तों में आग लगा देते हैं। इससे महुआ के पेड़ के नीचे की जमीन तो साफ हो जाती है,लेकिन कई बार आग इस तरह फैल जाती है कि घंटे दो घंटे में ही हजारों पेड़ झुलस जाते हैं और आग कई दिनों तक बुझती नहीं है। जब आग विकराल रूप धारण कर लेती है, तब तो वन विभाग भी असहाय महसूस करता है। भ्रष्टाचार के कारण भी वन विभाग के अधिकारी कुछ विशेष नहीं कर पाते हैं। इस कारण बहुत नुकसान होता है। इसलिए ग्रामीणों ने अपने स्तर पर जंगलों को बचाने का निर्णय लिया है।
ऐसे ही चाईबासा में भी एक पंचायत हुई है। इसमें निर्णय लिया गया कि जंगल बचाने के लिए लोगों को जागरूक किया जाएगा। इसके अतिरिक्त ‘कोल्हान देश’ के नाम से कुछ तत्वों द्वारा युवाओं को भटकाने पर चर्चा की गई। इसके बाद तय किया गया कि युवाओं को ऐसे तत्वों से बचाने के लिए हर संभव कोशिश की जाएगी।
पिछले साल भी इस तरह की पंचायतें हुई थीं। पश्चिमी सिंहभूम जिले की झाड़बेड़ा पंचायत के सखी मंडल की महिलाओं ने जंगल और जंगल के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए एक अनूठा तरीका अपनाया था। ये महिलाएं आज भी जंगलों की पहरेदारी करती हैं। बता दें कि आनंदपुर प्रखंड के महिषगिड़ा में 9 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले जंगली क्षेत्रों में साल, सागवान, आसन, बांस, करंज, चिरोंजी, चैकुडी, महुआ, केंदु सहित कई पेड़ हैं। पूर्व में आजीविका चलाने के लिए इन जंगली फसलों की खेती और कटाई के समय आस-पास के छोटे पेड़ों को काट दिया जाता था तथा जंगलों में आग भी लगा दी जाती थी। इसे देखते हुए सखी मंडल की महिलाओं ने जंगलों को बचाने और रक्षा करने के अनूठे प्रयास की शुरुआत की। जंगल बचाओ पहल की शुरुआत इस इलाके के 7 सखी मंडलों की 104 ग्रामीण महिलाओं ने की थी। इन महिलाओं ने अपने आपको 4 समूहों मे बांटकर प्रतिदिन सुबह 6 से 9 बजे एवं शाम 4 से 6 बजे तक जंगलों की रक्षा की। उनका यह संकल्प आज भी चल रहा है। इस कारण कई जगह जंगल सुरक्षित हैं।
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