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बांस की खेती से हर साल बढ़ेगा लाभ

by WEB DESK
Mar 30, 2022, 05:21 am IST
in भारत, असम
बांस की खेती आय बढ़ाने का एक बड़ा जरिया

बांस की खेती आय बढ़ाने का एक बड़ा जरिया

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जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति के तहत पेट्रोल-डीजल में इथेनॉल के सम्मिश्रण के प्रावधान से किसानों के लिए बांस की खेती आय बढ़ाने का एक बड़ा जरिया बनती जा रही है। बांस की खेती से लाभ वर्ष दर वर्ष बढ़ता जाएगा। राष्ट्रीय बांस मिशन की मदद से असम के आठ जिलों में किसान समूह बनाकर बांस की खेती में जुटे हैं

 

दिब्य कमल बोरदोलोई

गुवाहाटी शहर से 20 किलोमीटर दूर ग्रेटर डिमोरिया ब्लॉक में सैकड़ों किसान, जिनमें ज्यादातर जनजाति वर्ग के हैं, भविष्य के लिए सपने रोप रहे हैं।  इसमें मददगार है केंद्र सरकार का बांस मिशन। इस मिशन के तहत अब क्षेत्र के सैकड़ों किसान बांस की खेती कर रहे हैं।
जीवाश्म र्इंधन के आयात के बोझ को और वाहनों के उत्सर्जन से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए, केंद्र सरकार ने जैव-ईंधन, विशेष रूप से इथेनॉल के उपयोग की योजना बनाई है।  जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 (एनपीबी-2018) पेट्रोल और डीजल जैसे पेट्रोलियम उत्पादों में इथेनॉल के सम्मिश्रण का प्रावधान करती है।  इसे देखते हुए, भारत सरकार असम और पूर्वोत्तर सहित पूरे देश में इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम लागू कर रही है।  इस दृष्टि से बांस की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

बांस की खेती को प्रोत्साहन
राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत किसानों को खेत में बांस लगाने के लिए 3 वर्ष की अवधि के लिए 60,000 रुपये प्रति हेक्टेअर सहायता दी जाती है।  इसके अलावा, बांस को एक कृषि उत्पाद के रूप में मान्यता दी गई है, जिसका अर्थ है कि बांस के किसान जीएसटी के दायरे से बाहर हैं।  केंद्र सरकार ने राज्य में बांस क्षेत्र की अपार संभावनाओं का दोहन करने के लिए दीमा हसाओ जिले में पूर्वोत्तर में पहला बांस औद्योगिक पार्क स्थापित किया है।  इसकी स्थापना पूर्ण हो जाने पर, 75 हेक्टेअर के क्षेत्र को कवर करने वाला पार्क, बांस आधारित उद्योगों के विकास के अलावा राज्य के समग्र आर्थिक विकास में योगदान देगा।  असम बांस के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है और इसे 7,238 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र में उगाया जाता है।

किसानों के समूह का गठन
गुवाहाटी के पास सोनपुर में नवंबर, 2016 में एक किसान संघ, एम्प्री आॅरेंज प्रोड्यूसर्स लिमिटेड का गठन किया गया था। 2019 में महामारी के बीच, संघ ने राष्ट्रीय बांस मिशन और राज्य बांस विकास एजेंसी की योजनाओं के तहत उच्च गुणवत्ता वाले बांस का रोपण शुरू किया।  संघ के समन्वयक दीपक बरुआ बताते हैं, हम एक कृषि संघ हैं जिसमें 609 किसान शामिल हैं। हमने वैज्ञानिक तरीके से 585 हेक्टेयर क्षेत्र में बांस लगाया है। हमने मई 2020 में 2,34,000 बांस लगाए।  राष्ट्रीय बांस मिशन और राज्य बांस विकास एजेंसी द्वारा बांस के पौधे उपलब्ध कराए गए थे। पिछले दो वर्ष में बांस के पौधे तेजी से बढ़ रहे हैं। हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह अप्रैल 2023 तक बेचने के लिए तैयार हो जाएगा।’

नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड जल्द ही उनके उत्पाद खरीदने के लिए एम्प्री एग्री कंसोर्टियम के साथ एक औपचारिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करेगी।  एनआरएल ने असम में इथेनॉल का उत्पादन करने के लिए अपनी जैव ईंधन रिफाइनरी इकाई स्थापित की है। एथेनॉल उत्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल बांस होगा। इसलिए एथेनॉल का उत्पादन शुरू करने के बाद इसे भारी मात्रा में ताजे बांस की आवश्यकता होगी।  प्रदेश के बांस किसानों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है।

बरुआ ने आगे कहा कि डिमोरिया क्षेत्र में हर साल लगभग 30 लाख बांस का उत्पादन होता है।  अब से संघ आम किसानों से बांस खरीदेगा और एनआरएल को बेचेगा।  डिमोरिया के एक स्थानीय किसान धनती मेधी ने कहा कि पहले वे पास के जगीरोड पेपर मिल में अपना बांस बेचते थे। लेकिन 2018 में इसके बंद होने के बाद हमें इसे बेचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन अब हमें फिर से बाजार मिलने की उम्मीद दिख रही है। मेधी ने कहा कि पहले वह बांस 75 से 90 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से बेचते थे।  उसे उम्मीद है कि अब बेहतर कीमत मिलेगी। किसान दीपक बरुआ बताते हैं कि 2023 तक एम्प्री कंसोर्टियम के 609 किसान अपनी 585 हेक्टेयर खेती से कम से कम 4 लाख बांस का उत्पादन कर सकेंगे। अगले साल इसे बढ़ाकर 10 लाख और तीसरे साल तक 20 लाख कर दिया जाएगा।

 

 

आय में वृद्धि
संघ के एक अन्य किसान नोकुल इंगती ने कहा कि किसानों को उनकी कृषि भूमि के आधार पर अलग-अलग लाभ होगा।  ऐसे किसान हैं जो एक बीघा जमीन पर खेती कर रहे हैं और कुछ 30 बीघे तक खेती कर रहे हैं। इसलिए लाभ हर किसान के लिए अलग होगा।  डिमोरिया क्षेत्र के किसान नोकुल इंगती ने कहा, एक बीघा भूमि में अधिकतम 53 बांस लगाए जा सकते हैं। राष्ट्रीय बांस मिशन द्वारा दिया गया बांस का पौधा उच्च गुणवत्ता वाला है और उच्च उपज वाला भी है। एक किसान तीसरे वर्ष के अंत में बांस काटना शुरू कर देता है।  पहले वर्ष के लिए वह 106 बांस काट सकता है। दूसरे वर्ष में यह 250 संख्या तक और तीसरे वर्ष में यह 500 या अधिक हो जाएगी। यह किसान के जीवन के लिए जारी रहेगा।’

नए बांस मिशन के तहत, जो किसान एक एकड़ भूमि में बांस की खेती करता है, वह रोपण के बाद तीसरे वर्ष के अंत में 37000 की कमाई की उम्मीद कर सकता है।  चौथे वर्ष में आय तीन गुना बढ़ जाती है और पांचवें वर्ष में 5 गुना अधिक बढ़ जाती है।  बांस उत्पादन किसान हरेन तेरांग बताते हैं कि ‘एक बीघा जमीन में 53 बांस लगाए जा सकते हैं।  इससे 3 साल बाद 106 बांस का उत्पादन होगा।  अगले साल से यह कई गुना बढ़ जाएगा।  इतना ही नहीं, मेरे पौत्र-पौत्रों को भी मेरे वृक्षारोपण से लाभ होगा।  मेरा एक एकड़ का बांस का पौधा मेरे परिवार के लिए बीमा के समान होगा। जब भी उन्हें पैसे की जरूरत होती है, वे उसे काट कर बेच सकते हैं, भले ही मैं जीवित न रहूं।’

राष्ट्रीय बांस मिशन और राज्य बांस विकास एजेंसी के तहत कोकराझार, मोरीगांव, नागांव, कामरूप, गोलाघाट, कार्बी आंगलोंग, दीमा हसाओ और कछार जिलों में कई समूहों में हजारों किसानों को शामिल करते हुए बांस रोपण शुरू किया गया है।  2023 के अंत तक इन किसानों को अपने परिवारों का समर्थन करने के लिए स्थिर आय का एक वैकल्पिक तरीका मिल जाएगा। उन्हें उम्मीद है कि यह हरी लकड़ी असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र के हजारों गरीब किसानों को सही मायने में ‘आत्मनिर्भर’ बना देगी।
 

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