बात 1978 की है। खेती में ट्रैक्टर आ ही रहा था। ट्रैक्टर तो फिर भी मिल जाते थे, लेकिन उपकरण के लिए किसानों को भटकना पड़ता था। यह देखकर करनाल के प्रकाश चंद बेरी को कृषि उपकरण बनाने का विचार आया। वह किसानों की समस्या को दूर करना चाहते थे। कोशिश थी, हरियाणा के किसानों को उनके आसपास उपकरण मिल जाए। इसी सोच के चलते उन्होंने करनाल के रेलवे रोड पर एक छोटी-सी दुकान में वर्कशॉप स्थापित की और कृषि उपकरण बनाने का काम शुरू किया।
एक दुकान से कृषि उपकरण बनाने का जो सफर शुरू हुआ, अब एक विशाल इकाई में परिवर्तित हो रहा है। यह कंपनी विश्व के 106 देशों में कृषि के आधुनिक उपकरण उपलब्ध करा रही है। हाल में बेरी उद्योग ने 40 एकड़ भूमि में करनाल के बेगमपुर (घरौंडा) में विशाल इकाई स्थापित की है, जो एशिया की सबसे बड़ी इकाइयों में से एक है। वर्तमान में कंपनी का कारोबार 400 करोड़ रुपये से अधिक है। कंपनी के निदेशक रवि बेरी ने बताया कि उनकी कंपनी कृषि में प्रयुक्त होने वाले आधुनिक मशीन बनाती है। इनमें रोटावेटर, हार्वेस्टर, लैंड लेवलर, हेरो, ट्रिलर समेत हर तरह के कृषि उपकरण शामिल हैं।
वे बताते हैं कि कृषि ऐसा क्षेत्र है, जिसमें कोरोना महामारी के दौरान भी मंदी नहीं आई। उनकी कंपनी द्वारा तैयार कृषि उपकरणों की मांग भारत में 60 प्रतिशत तथा विदेशों में 40 प्रतिशत है। विदेश में तेजी से इसकी मांग बढ़ रही है। किसान खेती में जिस तरह से तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं, उन्हें उन्नत तकनीक के उपकरण अपने आसपास चाहिए और जिसकी कीमत भी अधिक न हो। हमारी कोशिश भविष्य की जरूरत को ध्यान में रख कर किसानों को उपकरण उपलब्ध कराने की है, जिसकी कीमत इतनी ही रखी जाती है, जिसे किसान आसानी से वहन कर सके।
रवि बेरी ने बताया कि बीते एक दशक के दौरान खेती में खास बदलाव आया है। आने वाले समय में और बदलाव आएंगे। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकल टू ग्लोबल अवधारणा को लेकर चल रहे हैं, निश्चित ही यह दृष्टिकोण हमें अंतरराष्ट्रीय पहचान दे रहा है। आज बेरी उद्योग यूरोप समेत कई बड़े देशों में कृषि उपकरण निर्यात कर रहा है। यह संभव हुआ, क्योंकि हम लगातार शोध और विकास पर ध्यान देते हैं।
उन्होंने बताया कि हार्वेस्टर पानी भरी जमीन में भी फसल की कटाई कर देता है। कई बार देखने में आया है कि फसल तैयार होते ही बरसात हो जाती है। तब खेतों में पानी जमा हो जाता है। इस स्थिति में हाथ से भी कटाई नहीं हो सकती है। पानी से भरे खेत में पारंपरिक हार्वेस्टर भी कटाई करने में कारगर नहीं है। इस स्थिति में विशेष हार्वेस्टर चाहिए, जो पहियों की बजाय चेन सिस्टम से चलता हो। इसलिए कंपनी ने विशेष तरह का हार्वेस्टर ईजाद किया है। यह पानी भरे खेत से लेकर हर तरह की जमीन पर फसल की कटाई आसानी से कर सकता है। इससे हर तरह की फसल काटी जा सकती है। किसानों के लिए यह बहुत ही उपयोगी उपकरण है।
रवि बेरी और कर्ण ने बताया कि जिस समय पिताजी ने यह काम शुरू किया था, उस समय किसानों के पास पैसे की कमी थी। बड़ी मुश्किल से किसान ट्रैक्टर खरीद पाते थे। आर्थिक तंगी के कारण कृषि उपकरण भी बहुत कम प्रयोग करते थे। इसलिए कृषि उपकरणों की मांग बहुत कम थी। फिर भी उम्मीद थी कि समय के साथ-साथ उपकरणों की मांग जरूर बढ़ेगी।
1980 से 90 का दशक तो खासतौर से बहुत कठिन समय था। उस समय किसानों के खेतों में जाकर उन्हें उपकरणों की जानकारी दी गई। उन्हें बताया गया कि इनके प्रयोग से किस तरह से कृषि का काम आसान हो सकता है। किसानों को यह बात समझ में आई। उन्हेें न केवल उपकरण पसंद आए, बल्कि वे उपकरणों का प्रयोग भी करने लगे। 90 के दशक के बाद तो स्थिति बदलती चली गई। इसके बाद कृषि क्षेत्र में उन्नत तकनीक के उपकरणों का प्रयोग बढ़ने लगा। जैसे-जैसे मांग बढ़ी, चीजें ठीक होना शुरू हो गई। कई उपकरणों पर सरकार ने अनुदान देना शुरू किया। इससे किसानों के बीच उपकरणों की मांग बढ़ी। अभी भी सरकार की ओर से किसानों को पराली प्रबंधन, सीड ड्रिल पर 50 प्रतिशत तक सब्सिडी मिल रही है।
कृषि उपकरणों के आने से खेती में क्रांतिकारी बदलाव आए, क्योंकि हरित क्रांति में आधुनिक कृषि यंत्रों का बड़ा योगदान है। यह न केवल किसानों का समय बचाते हैं, बल्कि खेती में पहले की तुलना में उनके काम को बहुत आसान बना दिया है। कृषि उपकरणों की मदद से किसान जल्दी खेत तैयार करने के साथ तेजी से बुआई भी कर रहे हैं। यानी दोनों काम साथ-साथ कर रहे हैं। इससे उनका काफी समय बच रहा है। आधुनिक कृषि यंत्रों के उपयोग से पहले किसान एक फसल ही उगा पाते थे, लेकिन अब वे एक साल में तीन से चार फसल तक उगा रहे हैं। रोटावेटर से एक बार बुआई करने से खेत तैयार हो जाता है। सीड ड्रिल मशीन से तो खेत तैयार किए बिना ही गेहूं की बिजाई हो जाती है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसानों को खेतों में पराली को जलाना नहीं पड़ता है, क्योंकि यही पराली बाद में खेत में खाद का काम करती है। इससे पर्यावरण प्रदूषण पर तो रोक लगती ही है, किसानों का समय और पैसा भी बचता है। अभी जिस तरह से तेल के दाम बढ़ रहे हैं, इसे देखते हुए आने वाले समय में इस तरह के उपकरणों की आवश्यकता होगी, जिससे कृषि कार्य तेजी से और कम लागत में किया जा सके। इस तरह के उपकरणों पर भी काम चल रहा है।
मशीनों से खेती में क्रांतिकारी बदलावकृषि उपकरणों के आने के बाद कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आए। ये उपकरण न केवल किसानों का समय बचाते हैं, बल्कि कृषि लागत कम करने के साथ उत्पादकता भी बढ़ाते हैं। रोटावेटर: यह ईधन ही नहीं, किसानों का समय भी बचाता है। पहले किसान हैरो से बुआई करता था। इसके लिए वह पहले तीन चार चरणों में खेत तैयार करता था, तब जाकर बुआई करता था। लेकिन रोटावेटर से सारा काम एक ही समय में और जल्द हो जाता है। खास बात यह है कि यह मिट्टी में पिछली फसल नमी का उपयोग सुनिश्चित करता है और फसलों के अवशेष हटाने में भी उपयोगी है। इसका उपयोग हर तरह की मिट्टी की जुताई में होता है। अधिक पानी वाले या गीले क्षेत्रों में भी यह आसानी से काम करता है। इस मशीन को किसी भी प्रकार से मोड़ा जा सकता है। कीमत और सब्सिडी: इस मशीन के कई मॉडल बाजार में हैं, जिसकी कीमत 50,000 रुपये से 2 लाख रुपये तक है। इस पर सब्सिडी भी मिलती है। बीज ड्रिल : इसका उपयोग फसल कटाई के बाद बुआई के लिए किया जाता है। इसकी मदद से खेत को तैयार किए बिना ही गेहूं की बिजाई हो जाती है। हार्वेस्टर से फसल कटाई के बाद खेत में पराल बच जाता है। इसलिए इसे निकालने की बजाए किसान खेतों में आग लगा देते थे। लेकिन बीज ड्रिल से पराल के बीच ही बुआई हो जाती है और यही पराल खाद का काम करती है। इससे पर्यावरण की सुरक्षा के साथ किसानों का समय, र्इंधन और पेसा भी बचता है। यह मिट्टी में नमी को संरक्षित करता है, जिससे बीज तक खाद आसानी से पहुंचता है। कीमत और सब्सिडी: इसकी कीमत लगभग 50 हजार से एक लाख रुपये तक होती है। अधिकतम 50 प्रतिशत तक सब्सिडी मिलती है। लैंड लेवलर: लेजर लैंड लेवलर पानी की भारी बचत करता है। धान रोपाई से पहले किसान इसका प्रयोग खेत को समतल करने के लिए करते हैं। यह लेजर से नियंत्रित होता है, इसलिए खेत समतल कर देता है। जब धान की रोपाई के लिए खेत में पानी जमा किया जाता है तो इससे खेत में एक समान पानी जमा होता है। उबड़-खाबड़ जमीन को समतल करने में भी यह उपयोगी है। इससे तेजी से काम होता है, जिससे ईधन और समय की बचत होती है। कल्टीवेटर: यह उपकरण मिट्टी को ढीला करने के काम आता है। इसके जरिये खेत से खरपतवार निकाल कर बुआई किया जाता है। कीमत और सब्सिडी: इसकी कीमत लगभग 25,000 रुपये से 50 हजार रुपये तक है। इस पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी भी मिलती है। डिस्क हेरो: इसका उपयोग मिट्टी को ढीला करने व समतल बनाने में किया जाता है। यह खरपतवार को भी नष्ट कर देता है। कीमत और सब्सिडी: इसकी कीमत लगभग 25,000 रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक है। इस पर 50 प्रतिशत तक की छूट मिल सकती है। स्प्रेयर: यह मशीन कीटनाशक दवा और उवर्रक छिड़काव के काम आती है। इसकी कीमत लगभग 3500 रुपये से 50,000 रुपये तक होती है। स्ट्रॉ-रीपर: इसका उपयोग फसल कटाई के बाद खेतों में मौजूद अवशेषों को हटाने के लिए किया जाता है। साथ ही, यह भूसा बनाने के काम भी आती है। कीमत और सब्सिडी: इसकी कीमत लगभग 2.50 लाख रुपये से लेकर 3.50 लाख रुपये तक है। इस पर 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी भी मिल जाती है। |
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