पंजाब में जालंधर के पास स्थित नूरमहल में है कामधेनु गोशाला। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान संचालित यह गोशाला संभवत: देश की पहली ऐसी गोशाला है, जहां गोवंश के रिकॉर्ड को साफ्टवेयर के जरिए अद्यतन किया जाता है। कोई गाय कितना दूध देती थी? उसे क्या बीमारी थी? उसका दूध कैसे बढ़ाया गया? उसके वंश को आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है? उसकी संतान की स्थिति क्या है? ऐसी तमाम जानकारियां बस एक क्लिक पर सामने आ जाती हैं। यहां चल रहे गौ संरक्षण व संवर्धन के कार्यों के कारण ही केंद्र सरकार ने 2017 में इस कामधेनु गोशाला को देश की सर्वश्रेष्ठ गोशाला के सम्मान से अलंकृत किया।
कामधेनु गोशाला में 800 गाय हैं। सभी देसी नस्ल की हैं, जिनमें पंजाब की साहीवाल, गुजरात की गिर, राजस्थान की थारपारकर व कच्छ की कांकरेज नस्ल शामिल हैं। संस्थान में बड़ी संख्या में मौजूद सेवादार इन गायों की देखभाल करते हैं। गायों का पूरा रिकॉर्ड कम्प्यूटरीकृत है। गोशाला में देसी नस्ल की गायों की संख्या बढ़Þाने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। खास बात यह है कि गर्भाधान में गायों की वंशावली का पूरा ध्यान रखा जाता है। उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी का पूरा मिलान किया जाता है, जिससे यह पता चले कि नई पीढ़ी की गायों में क्या अंतर आ रहा है, इनका दूध और इनकी संख्या कैसे बढ़ाई जा सकती है। गायों पर अनुसंधान के लिए यहां अलग से विभाग है, जिसमें संतति चयन महत्वपूर्ण है। इसमें गायों का उनकी मां और दादी से पूरा विवरण मिलाया जाता है। जैसे- मां-दादी कि दादी कितना दूध देती थी। इस पूरी प्रक्रिया पर रोजाना नजर रखी जाती है।
गोशाला का श्रेष्ठ संचालन
गायों को किसी तरह की परेशानी न हो, गोशाला में इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। उनकी नियमित जांच की जाती है। मच्छरों से बचाने के लिए सभी गायों को मच्छरदानी में रखा जाता है। यहां सभी गायों के नाम रखे गए हैं और उन्हें नाम से बुलाया जाता है। सफाई व देखभाल के लिए श्रद्धालुओं के अलावा करीब 50 लोगों की टीम है। अन्य नस्लों की गायों से साहीवाल नस्ल की संतान पैदा करने के लिए साहीवाल नन्दी रखे गए हैं। दूध निकालने का काम हाथ के साथ-साथ मशीनों से भी किया जाता है। गोशाला में प्रशिक्षण भी दिया जाता है। संस्थान के जनसंपर्क अधिकारी रमेश कुमार बताते हैं कि देश में देसी गायों की मांग बढ़ रही है। यदि युवा गौ-पालन में आएंगे तो एक साथ दो काम होंगे। पहला, उन्हें रोजगार मिलेगा और दूसरा देसी गायों को संरक्षण मिलेगा।
पूरे देश के लिए आदर्श
कामधेनु गोशाला पूरे देश के लिए आदर्श है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द भी यहां आ चुके हैं। गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के मंत्री, सामाजिक कार्यकर्ता, देश-विदेश के गौ-पालक भी यहां आते रहते हैं। यह संस्थान राजस्थान की पथमेड़ा स्थित गोशाला, गुजरात के गौ अनुसंधान केंद्र सहित अनेक संस्थानों से गोवंशों से जुड़ी जानकारियों का आदान-प्रदान करता है। गोशाला के संचालक स्वामी चिन्मयानंद जी महाराज कहते हैं, ‘‘हमारा लक्ष्य देशभर में गायों की देसी नस्ल को बचाना और उनकी संख्या बढ़ाना है। इसके लिए गोशाला में अनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं। गोवंश में वर्ण संकरण की समस्या से निपटने के लिए गोशाला में लगभग 25 गोत्र हैं। हर गाय व नन्दी की वंशावली बनाई जाती है। इसका उपयोग चयनित गर्भाधान के लिए किया जाता है। कृत्रिम गर्भाधान, एम्ब्रायो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी (ईटीटी) एवं आइवीएफ जैसी आधुनिक प्रणाली से भी गोशाला ने कम समय में अच्छी संख्या में उत्कृष्ट गुणों वाली दुधारू गायें विकसित की हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वदेशी को प्रोत्साहन देने के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि हमें उनसे कुछ और उम्मीदें हैं। वे भारत में क्रॉस ब्रीडिंग पॉलिसी को खत्म करें। इसके कारण कई स्वदेशी गायें पतन के कगार पर पहुंच गई हैं। आज भी भारत में अंग्रेजी गोवंश के वीर्य और उनके एम्ब्रोज (वीर्य के टीके) लाए जा रहे हैं। यह नीति पिछले 70 सालों से चल रही है।
गौशाला का वीर्य केंद्र
125 एकड़ में फैली गोशाला में स्वदेसी नस्लों के नन्दियों का वीर्य केंद्र भी है। यहां से करीब 14 देशों में भारतीय नस्ल की गायें तैयार करने के लिए वीर्य का निर्यात किया जाता है। इसे देश में भी भेजा जाता है ताकि अधिक से अधिक भारतीय नस्ल की गाय तैयार हो सकें।
खतरे में साहीवाल प्रजाति
पंजाब सरकार के पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में साहीवाल गाय की संख्या चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुकी है। राज्य में केवल 1200 पंजीकृत साहीवाल गाय हैं, जिनमें 650 कामधेनु गोशाला में हैं। कभी यह गाय पंजाब में बहुतायत संख्या में पाई जाती थी। राज्य के दक्षिणी हिस्सों (मालवा) जैसे फिरोजपुर, फाजिल्का, अबोहर, मलोट आदि इलाकों में यह अब भी पाई जाती है, लेकिन माझा और दोआबा में लगभग लुप्तप्राय है। साहीवाल पंजाब का एक जिला था, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में चला गया। जेबू नस्ल की इस गाय को इसी इलाके से जोड़ा जाता है। यहां से आॅस्ट्रेलिया, कीनिया, गुयाना व अफ्रीका के कई देशों में भी इन गायों का निर्यात होता रहा है। इस गाय को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे गर्म व शुष्क इलाकों के लिए उपयुक्त माना जाता है। गहरा भूरा रंग, चौड़ा माथा, भारी-भरकम देह, भरेपूरे थन, लम्बी पूंछ व मासूम चेहरा इसकी पहचान है।
स्वामी चिन्मयानंद कहते हैं कि विदेशी लोगों के पास गायों की केवल दो नस्लें थीं- होलिस्टन फिसियन और जर्सी गाय। 1915 में इन गायों की नस्लें साहीवाल और थारपारकर से भी कम थी। लेकिन उन्होंने नस्ल सुधार पर कार्य किया, जिससे वे धीरे-धीरे अधिक दूध देने लगीं। फिर विदेशियों ने दुनिया भर में इसका प्रचार किया और लोग उनकी तरफ आकर्षित होने लगे। भारत के किसानों का उनके प्रति आकर्षण भी स्वाभाविक था।
पांच नदियों की धरती पंजाब में गौ-पालन व गौ-संरक्षण का इतिहास रहा है। गऊ-गरीब की रक्षा के लिए यहां गुरुओं ने संघर्ष किया, राम सिंह कूका व उनके सम्प्रदाय का पूरा इतिहास गोवंश की सेवा व सुरक्षा से जुड़ा है। लोकनायक सुच्चा सिंह सूरमा को भी लोग इसीलिए याद करते हैं कि उन्होंने अकेले ही कत्लखाने पर हमला कर कई कसाईयों को मौत के घाट उतार दिया और गायों को मुक्त करवाया था। कामधेनु गोशाला इसी अमीर विरासत को आगे बढ़ा रही है।
टिप्पणियाँ