एक प्रत्यक्षदर्शी ने केंद्रीय एजेंसी के अधिकारियों को बताया है कि गत 21 और 22 मार्च की देर रात जब बगटुई गांव में लोगों के घरों को बाहर से बंद कर आग लगा दी गई थी, तब मौके पर पहुंचे अग्निशमन कर्मियों को लोगों को जिंदा बचाना तो दूर की बात, बुरी तरह से झुलस चुके शवों को भी निकालने में कम से कम 10 से 12 घंटे इंतजार करना पड़ा था।
जांच में पता चला है कि जिन 10 से 12 घरों में आग लगाई गई थी उनमें पहले तोड़फोड़ हुई थी तथा उनमें रहने वाले लोगों को बर्बर तरीके से मारा-पीटा गया था। कोई भी घर से बाहर ना निकल सके, इसकी पूरी व्यवस्था की गई थी और घर वालों को इतना पीटा गया था कि वे खुद से हिलडुल भी नहीं सकते थे। उसके बाद घरों को बाहर से बंद कर पेट्रोल डालकर आग लगाई गई थी। यह आग इतनी भयावह थी कि सूचना मिलने के बाद अग्निशमन विभाग की दो गाड़ियां मौके पर पहुंच गई थीं, लेकिन सारी रात आग पर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका। रात के समय लगी हुई आग सुबह तक जलती रही और सुबह करीब आठ से 10 बजे तक इन घरों में इतनी अधिक गर्मी थी कि झुलसे हुए लोगों के शव को निकालना अग्निशमन कर्मियों के लिए नामुमकिन था।
इसके अलावा रामपुरहाट थाने के सब-इंस्पेक्टर रमेश साहा के बयान भी जिला प्रशासन की ओर से मरे हुए लोगों की संख्या को दबाए जाने की ओर संकेत कर रहे हैं। रमेश साहा ने केंद्रीय एजेंसियों को बताया है कि गांव में आगजनी की सूचना रात 9:30 बजे ही मिल गई थी। 10 बजे के करीब वह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे और देखा था कि गांव में कई घरों में आग लगी है जिनमें लोग जल रहे हैं। उन्होंने तुरंत रामपुरहाट थाने में फोन कर ड्यूटी ऑफिसर को दल बल के साथ मौके पर पहुंचने और अग्निशमन विभाग को तुरंत लाने को कहा था। रात 10:25 बजे अग्निशमन की दो गाड़ियां मौके पर पहुंच गई थीं। रात दो बजे तक आग पर थोड़ा बहुत काबू पा लिया गया था और एक घर से चार जले हुए शव भी बरामद कर लिए गए थे। इसके अलावा एक व्यक्ति झुलसे हुए हालत में बरामद किया गया था, जिसे रामपुरहाट मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया, लेकिन उसने भी इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।
सब-इंस्पेक्टर के इस बयान के मुताबिक रात के समय ही चार शव बरामद कर लिए गए थे, जबकि जिला प्रशासन यानी जिला पुलिस अधीक्षक नगेंद्र नाथ त्रिपाठी ने घटना के बाद दूसरे दिन सुबह मीडिया के सामने दावा किया था कि केवल सात शव बरामद किए गए हैं वह भी घटना के दूसरे दिन सुबह। अगर जिला पुलिस अधीक्षक के अनुसार सात शव सुबह में बरामद किए गए तो ये जो चार जले हुए शव रात में ही बरामद होने का दावा सब-इंस्पेक्टर ने किया है वे कहां गए?
बाद में राज्य पुलिस महानिदेशक मनोज मालवीय ने भी बताया कि मरने वालों की संख्या आठ है। हालांकि उन्होंने भी दावा किया कि सात शव एक ही घर से सुबह के समय बरामद किए गए थे, जबकि एक व्यक्ति ने इलाज के दौरान अस्पताल में दम तोड़ दिया था। अगर सब-इंस्पेक्टर और पुलिस महानिदेशक के बयान को आमने-सामने रखा जाए तो दोनों एक-दूसरे के विपरीत बयान दे रहे हैं और अगर दोनों की बातों में सच्चाई है तो मरने वालों की कुल संख्या बढ़कर 12 पर पहुंच रही है जिसकी पुष्टि घटना के चार दिनों बाद भी ना तो जिला प्रशासन ने की है और ना ही राज्य प्रशासन ने। अब जबकि सीबीआई की टीम मौके पर पहुंची है तो इसी तरह के कई राज खुल रहे हैं।
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