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हरियाणा राजनीति के ‘ट्रेजडी किंग’ बीरेंद्र सिंह क्‍या आआपा के कंधे पर सवार हो सीएम कुर्सी तक पहुंचेंगे?

by मनोज ठाकुर
Mar 26, 2022, 03:19 am IST
in भारत, हरियाणा
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हरियाणा का मुख्‍यमंत्री बनने की महत्‍वाकांक्षा रखने वाले पूर्व सांसद चौधरी बीरेंद्र सिंह एक बार फिर राजनीति में सक्रिय हो गए हैं। राजनीति में 50 साल पूरे करने वाले बीरेंद्र सिंह ने उचाना में एक रैली की, जिसमें सभी दलों के पूर्व सांसद, मंत्री और विधायक शामिल हुए!

हरियाणा की राजनीति में हाशिए पर पहुंच चुके पूर्व सांसद चौधरी बीरेंद्र सिंह का एक सपना है, पूरा नहीं हुआ। वह राज्‍य का मुख्‍यमंत्री बनना चाहते हैं। कई बार मुख्‍यमंत्री की कुर्सी के करीब पहुंचते-पहुंचते चूक गए और मुख्‍यमंत्री बनने की उनकी महत्‍वाकांक्षा पूरी नहीं हुई। इस वजह से उन्हें हरियाणा की राजनीति का ‘ट्रेजडी किंग’ भी बोला जाता है। इस समय बीरेंद्र सिंह एक तरह से राजनीतिक वनवास काट रहे हैं। लेकिन मुख्‍यमंत्री बनने की महत्‍वाकांक्षा एक बार फिर हिलोरें मारती दिख रही है। तो क्‍या इस बार आम आदमी पार्टी के कंधे पर सवार होकर मुख्‍यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना चाह रहे हैं?

बीरेंद्र सिंह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए। राज्‍यसभा सांसद बने। हालांकि वे मुख्‍यमंत्री तो नहीं बन सके, लेकिन केंद्र सरकार में मंत्री बने। उनकी पत्‍नी प्रेमलता को भाजपा ने टिकट दिया और वह विधायक बनीं। इस वक्त उनके पुत्र सेवानिवृत्‍त आईएएस बृजेंद्र सिंह हिसार से भाजपा सांसद हैं। सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की बात कहने वाले बीरेंद्र सिंह एक बार फिर से खुद को सियासी तौर पर रिलांच करने की कोशिश में हैं। इसलिए अपनी ताकत दिखाने के लिए अपने 76वें जन्मदिन पर उन्‍होंने उचाना में एक रैली की, जिसमें सभी दलों के नेताओं को बुलाया। इनेलो के अभय सिंह चौटाला सहित आआपा और अकाली दल के कई पूर्व सांसद और मंत्री मौजूद रहे। पूर्व मंत्री व भाजपा नेता प्रो. रामबिलास शर्मा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। 

इस मौके पर बीरेंद्र सिंह ने कहा कि वह एक बार फिर से बदलाव के लिए प्रदेश के लोगों को जागरूक करेंगे। उन्‍होंने कहा कि महंगाई बढ़ रही है। इसलिए गेहूं के दाम छह हजार रुपये किए जाएं। कार्यक्रम में मौजूद आआपा के राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता भी थे। उन्‍होंने लगे हाथ बीरेंद्र सिंह को आआपा में आने का न्‍यौता दिया। उन्‍होंने कहा कि पार्टी उन्‍होंने कहा, ‘आम आदमी पार्टी में आपका स्‍वागत है।’ इस पर बीरेंद्र सिंह ने कहा कि मुझे स्‍वागत की धार काटनी है। आगे की बात करो। इस पर गुप्‍ता ने कहा कि पार्टी उन्‍हें सीएम चेहरा घोषित करेगी। 

सवाल यह है कि बीरेंद्र सिंह अब क्या करने वाले हैं? हरियाणा की राजनीति की समझ रखने वालो का मानना है कि बीरेंद्र सिंह अपनी बात के पक्‍के नहीं है। उनकी करनी और कथनी में अंतर है। इस वजह से वह हरियाणा के बड़े नेता की सूची में शामिल तो हैं, लेकिन उनके सियासी बायोडाटा में कोई बड़ा काम नहीं है। उनकी पूरी राजनीति अपने इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। यहां तक कि कार्यकर्ताओं के लिए भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। वह राजनीति में मौका देख कर दांव खेलते हैं। कुछ समय पहले तक वह इनेलो के गुण गा रहे थे। अब जब से पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, वह उसके समर्थन में नजर आ रहे हैं। 

शायद बीरेंद्र सिंह को वक्त बदलता नजर आ रहा है। लिहाजा, वह एक बार फिर वक्त के साथ कदमताल कर खुद को सियासत में सक्रिय करना चाह रहे हैं। पंजाब में आआपा की सफलता के बाद वे उसके करीब जाना चाह रहे हैं। तभी तो उचाना में उनके कार्यक्रम में मंच पर शहीद भगत सिंह और बाबा भीमराव आंबेडकर की फोटो लगी थी। इस तरह की फोटो पंजाब में सरकारी दफ्तरों पर भी लगाई गई है। इस वक्त बीरेंद्र सिंह भाजपा में अलग थलग पड़े हुए हैं। इसकी वजह भी वह खुद हैं। अपने बेटे को राजनीति में लाने के चक्कर में उन्होंने खुद ही सक्रिय राजनीति से हटने का ऐलान किया था। तभी भाजपा ने उनके आईएएस बेटे को हिसार से टिकट दिया था। उनके कार्यक्रम में ज्यादातर वही नेता शामिल हुए जो या तो प्रदेश की राजनीति में अलग थलग हैं या अपनी पार्टी में। 

हरियाणा की राजनीति में बीरेंद्र सिंह को गैर-भरोसेमंद नेता माना जाता रहा है। वह 42 साल कांग्रेस में रहने के बाद भाजपा में आए थे और मात्र 42 दिन में उन्हें राज्यसभा सदस्य बना दिया गया। इसके बाद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह दिया गया। दरअसल, बीरेंद्र सिंह के मन में एक टीस थी कि संप्रग-2 सरकार के कार्यकाल में उन्‍हें मंत्री बनाया जा रहा था। लेकिन ऐन मौके पर कांग्रेस में ही उनके प्रतिद्वंद्वी ने उनका पत्‍ता कटवा दिया था। शपथ ग्रहण के लिए उन्‍होंने कोट भी सिलवा लिया था, लेकिन यह खूंटी पर ही टंगा रह गया। पार्टी में उनका प्रतिद्वंद्वी रात भर उनका टिकट कटवाने की जुगत में अपने ड्राइवर के साथ दिल्ली की खाक छानता रहा। इससे आहत बीरेंद्र सिंह कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए थे। 

कहा जाता है कि 1991 में यदि राजीव गांधी का निधन न होता तो बीरेंद्र सिंह हरियाणा के सीएम होते। सीएम बनने का अधूरा सपना पूरा करने के लिए उन्‍होंने कभी प्रयास नहीं छोड़ा। इस बार सपने को पूरा करने के लिए वे आआपा का दामन थाम सकते हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि वह कोई भी निर्णय कार्यकर्ताओं से सलाह करके ही लेंगे। हालांकि बीरेंद्र सिंह को जानने वाले लोगों का कहना है कि उन्‍होंने दोनों विकल्प खुले रखे हुए हैं। दरअसल, आआपा के नजदीक जाने की बात कहते हुए वह भाजपा पर दबाव बनाना चाहते हैं। यदि यहां दाल नहीं गली तो वह आआपा में जा सकते हैं। यूं भी बीरेंद्र सिंह सोच-समझ कर ही कदम उठाते हैं। कांग्रेस छोड़ कर जब वह भाजपा में आ रहे थे तो उन्होंने काफी वक्त लिया था।

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