बीरभूम जिले के रामपुरहाट ब्लॉक में आठ लोगों को जिंदा जलाने की घटना के बाद गांव पहुंचीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पीड़ितों के लिए वित्तीय मदद की घोषणा को लेकर उच्च न्यायालय में सवाल उठाए गए। दावा है कि विचाराधीन मामले में इस तरह से वित्तीय ऑफर की घोषणा नहीं की जा सकती। इसके अलावा पुलिस महानिदेशक मनोज मालवीय को मीडिया के कैमरे के सामने यह बताना कि किसे गिरफ्तार करना है और किस तरह से जांच करनी है, को लेकर भी उच्च न्यायालय में अधिवक्ताओं ने सवाल खड़े किए हैं। इस बाबत उच्च न्यायालय द्वारा लिए गए स्वत: संज्ञान के मामले समेत दो और जनहित याचिकाओं पर गुरुवार को लगातार दूसरे दिन मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजश्री भारद्वाज की खंडपीठ में सुनवाई चल रही है।
राज्य सरकार के खिलाफ खड़े हुए वकील सब्यसाची चटर्जी ने कोर्ट में कहा कि मुख्यमंत्री, जो गृह मंत्री भी हैं, आज हिंसा पीड़ित गांव गई थीं और पीड़ितों के बीच वित्तीय मदद की पेशकश की। विचाराधीन मामले में ऐसा नहीं किया जा सकता।
एक और अधिवक्ता शमीम अहमद ने कहा कि पुलिस को सूचित करने के आधे घंटे के भीतर भादू शेख की हत्या कर दी गई थी। उसके बाद आगजनी करने वाले हत्यारों ने इलाके को घेर लिया। उन्होंने कहा कि माकपा नेता मोहम्मद सलीम ने इलाके का दौरा किया है। लोग सहमे हुए हैं। लोग डर के मारे गांव छोड़ रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इतना ही नहीं राज्य सरकार की विशेष जांच दल (एसआईटी) के मुखिया ज्ञानवंत सिंह, रिजवानूर हत्याकांड के अलावा कोयले की तस्करी में भी आरोपित हैं। इस संबंध में उन्हें ईडी की ओर से नोटिस मिला है।
भाजपा की अधिवक्ता प्रियंका टिबरेवाल ने कहा कि आग लगाने से पहले पीड़ितों को पीटा गया। मुख्यमंत्री ने मौके पर जाकर डीजी को सबके सामने बताया कि जांच कैसे होगी। किसको जेल भेजना है। वह ऐसा कैसे कर सकती हैं? उन्होंने सबके सामने यह भी कहा कि आरोपितों को उच्च न्यायालय से जमानत नहीं मिलनी चाहिए। वह जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि इन अधिवक्ताओं के जवाब में राज्य के महाधिवक्ता सोमेंद्र नाथ मुखर्जी ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा जांच को प्रभावित करने का आरोप सही नहीं है, वह गृह मंत्री भी हैं। वह घटनास्थल पर जाकर आवश्यक दिशा निर्देश दे सकती हैं।
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