महेश दत्त
गुलाम दौड़ते फिरते हैं मशालें लेकर,
महल पर टूटने वाला हो आसमा जैसे
कुछ ऐसा ही नजारा इस समय पाकिस्तान का है। कल हुई सेना की परेड में प्रधानमंत्री इमरान खान के आने पर वहां मंच पर मौजूद तीनों सेनाध्यक्ष में से किसी ने भी सैल्यूट नहीं किया और जनरल बाजवा ने उंगली से उन्हे उस कुर्सी की तरफ इशारा कर दिया जहां उन्हें बैठना था। हालांकि जाते समय उन्हें सैल्यूट किया गया, शायद अंतिम।
सेना परेड के मौके पर जनरल बाजवा ने अपने भाषण में जो कहा वह पाकिस्तान के आने वाले समय की तरफ स्पष्ट संकेत था। उनका कहना था कि "सेना हस्तक्षेप करती है तो भी उसे बुरा कहा जाता है और हस्तक्षेप न करने पर भी बुरा कहा जाता है।" भाषण के इस हिस्से पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ पत्रकार तलत हुसैन का कहना था कि "सेना को यह भी सोचना चाहिए कि सेना हस्तक्षेप क्यों करती है, कब करती है, किसलिए करती है।" जनरल बाजवा ने आगे कहा कि आखिर जनता एक ही किस्म के लोगों को बार-बार क्यों वोट करती है? अगर जनता बार-बार ऐसा करेगी तो बदलाव कैसे आएगा? तलत हुसैन ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि "सेना को यह तय कर लेना चाहिए कि दरअसल वो चाहती क्या है। यदि सेना हस्तक्षेप नहीं करना चाहती तो फिर उसे इस बात की भी चिंता की क्या जरूरत है कि जनता किसको वोट करती है?" सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा ने इसी भाषण में आगे बोलते हुए कहा कि उन्हें "यह समझ नहीं आता कि राजनेता कैसे जिस नेता से सुबह लड़ रहे होते हैं शाम को उसी नेता के साथ बैठकर चाय पी रहे होते हैं।" अब जनरल बाजवा को लोकतंत्र की यह परिभाषा कौन समझाए जहां यह सब सामान्य बात है।
इस बीच पीपल्स डेमोक्रेटिक मूवमेंट के नेताओं ने अपने जलसे को दो दिन के लिए टाल दिया है। अब मरियम नवाज शरीफ अपने जुलूस को लेकर 26 तारीख को लाहौर से चलेंगी और डेरा इस्माइल खान से मौलाना फजलुर रहमान अपना जुलूस लेकर चलेंगे। ऐसा करने के पीछे दबाव बनाने की राजनीति है। यह दोनों जुलूस सामान्य परिस्थितियों में 28 तारीख को इस्लामाबाद में प्रदर्शन करेंगे और यदि तब तक अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान नहीं कराया गया तो यह जलसा धरने में बदल जाएगा। इससे एक दिन पहले 27 मार्च को इमरान खान अपना जलसा कर चुके होंगे।
दो दिन पूर्व मौलाना फजलुर रहमान कराची में मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट के साथ मुलाकात कर तमाम शर्तें तय कर चुके हैं और उनसे इस बात का आश्वासन ले लिया गया है कि 25 मार्च तक वे सार्वजनिक रूप से सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेंगे। ऐसी ही सहमति पाकिस्तान मुस्लिम लीग के साथ भी की जा चुकी है। दरअसल 25 मार्च को दलों के समर्थन वापस लेते ही सरकार अल्पमत में आ जाएगी और अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। इमरान सरकार गिर जाएगी।
यह जानते हुए कि हम पाकिस्तान के विषय में बात कर रहे हैं, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वहां सब कुछ तार्किक कारणों से होना आवश्यक नहीं है। उदाहरण स्वरुप उपरोक्त परिस्थितियों के उलट यह भी संभव है कि अंतिम पल में इमरान खान आपातकाल लगाने की कोशिश करें। ऐसा करना तकनीकी रूप से संभव तो हो सकता है लेकिन इसका व्यावहारिक पक्ष यह है कि इस समय अफसरशाही सरकार के बड़े फैसलों को टालने में लग गई है। उसे ज्ञात है कि सरकार जाने वाली है।
कल परेड के तुरंत बाद इमरान खान अपनी पार्टी के राजनीतिक मामलों की समिति के साथ मुलाकात कर रहे थे। सूत्रों के अनुसार इस मुलाकात में इमरान के तमाम नजदीकी नेताओं ने उन्हें बता दिया कि पार्टी के विद्रोही नेताओं से समझौते की कोई उम्मीद अब नहीं बची है। यह भी बताया गया कि इमरान खान का लबो लहजा परेशानी से भरा हुआ था। मुलाकात के बाद में जहां एक तरफ इमरान पत्रकारों से बात करते हुए बड़ी बहादुरी से 27 तारीख के जलसे की बात कर रहे थे, वही उनके गृह मंत्री शेख रशीद पत्रकारों को कह रहे थे कि आप सब कुछ अल्लाह के भरोसे हैं। कल 25 मार्च है . . . तमाशा जारी है।
पूर्व वित्त मंत्री को बजट बनाने का आदेश
इमरान खान की सरकार द्वारा चलाए जा रहे झूठ और अदालती मुकदमों से परेशान होकर लंदन में जा रह रहे पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री ईशाक दार, उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज के अलावा सेना के अधिकारियों की ओर से भी यह कह दिया गया है कि वह अगला बजट तैयार करें। उनसे यह भी पूछा गया है कि वह अगले बजट में देश और जनता के लिए क्या कर सकते हैं। ईशाक की ओर से यह कहा गया है कि वह आगामी नवंबर-दिसंबर तक अमेरिकी डॉलर को 150 पाकिस्तानी रुपए तक ले आएंगे और वहीं पर ठहरा देंगे।
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