अफगानिस्तान में तालिबान अपने लिए विदेशों से समर्थन पाने को हाथपैर मार रहा है। इससे न सिर्फ उसके लिए विदेशी पैसे मिलने का रास्ता खुलेगा, बल्कि वह 'सभ्य समाज' की सोहबत पाकर अपनी जिहादी सूरत पर 'सभ्य होने का मुलम्मा' भी चढ़ा सकेगा। इसी लालच में उसने कल अपनी कट्टर सोच से अलग हटते हुए, ऐसे तीन पत्रकारों को जेल से रिहा कर दिया जिन्हें तालिबान ने इसलिए पकड़ा था क्योंकि वे लड़ाकों की असलियत बता रहे थे। लेकिन अब वे रिहा कर दिए गए हैं। इसके पीछे वजह विदेशी दबाव बताया जा रहा है। उन्हें रिहा करते हुए तालिबान ने यह भी साथ जोड़ा है कि वे इस्लामी मूल्यों को कुचलने की इजाजत नहीं देने वाले है।
टोलो न्यूज अफगानिस्तान का सबसे बड़ा स्वतंत्र समाचार चैनल है। तालिबान ने कुर्सी संभालने के बाद इसके सभी कर्मचारियों को तालिबान सरकार द्वारा टेलीविजन पर विदेशी सीरियलों, नाटकों आदि प्रतिबंध लगाने के विरुद्ध आवाज उठाने पर गिरफ्तार किया गया था। इन गिरफ्तारियों की संयुक्त राष्ट्र तथा प्रेस स्वतंत्रता जैसे संगठनों ने तीखे शब्दों में निंदा की थी। उन्होंने तालिबान सरकार से मांग की थी कि इन्हें रिहा किया जाए।
चैनल के निदेशक खपलवाक सपई, कानूनी सलाहकार नफाय खलीक और न्यूजएंकर बहराम अमन को हाल ही में नेटवर्क के स्टूडियो से गिरफ्तार किया गया था। सपई ने मीडिया को बताया कि उन्हें तथा खलीक को हिरासत में लेने के तुरंत बाद छोड़ दिया गया था, लेकिन अमन को पूरी रात हिरासत में रखने के बाद अगले दिन छोड़ा गया था।
रिहा होने के बाद अमन ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि वे हमेशा लोगों की आवाज उठाते रहेंगे। तालिबान की गुप्चर एजेंसियों ने अमन की रिहाई के बाद बयान जारी किया है। उसने कहा है कि वे किसी को भी देश के इस्लामी तथा राष्ट्रीय मूल्यों को कुचलने की इजाजत नहीं देंगे। इसी पर नजर रखने के लिए तालिबान ने अलग विभाग बनाया है। उसी के कायदों पर चलते हुए इन पत्रकारों को हिरासत में लिया गया था।
रिहा होने के बाद अमन ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि वे हमेशा लोगों की आवाज उठाते रहेंगे। तालिबान की गुप्चर एजेंसियों ने अमन की रिहाई के बाद बयान जारी किया है। उसने कहा है कि वे किसी को भी देश के इस्लामी तथा राष्ट्रीय मूल्यों को कुचलने की इजाजत नहीं देंगे। इसी पर नजर रखने के लिए तालिबान ने अलग विभाग बनाया है। उसी के कायदों पर चलते हुए इन पत्रकारों को हिरासत में लिया गया था।
माना जा रहा था कि इस बार तालिबान ने मीडिया के प्रति रुख कुछ नरम रहेगा। लेकिन सत्ता में आते ही उसने 'गैर-इस्लामी विषयों' वाले सीरियलों के प्रसारण पर रोक लगाने का नियम लागू ही नहीं किया, बल्कि इसे पूरी कड़ाई से लागू किया गया।
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' और 'अफगान इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन' ने अपनी 2021 की रिपोर्ट में दर्ज किया था कि तालिबान की सत्ता वापसी के बाद के महीनों में अफगानिस्तान के 543 मीडिया संस्थानों में से 231 बंद कर दिए गए थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उस समय में 6,400 से अधिक पत्रकारों को अपनी नौकरी खोनी पड़ी थी।
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