पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के सिर पर अविश्वस प्रस्ताव की तलवार लटक रही है। ऐसे में उनकी कुर्सी बचना मुश्किल माना जा रहा है। सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव को लेकर वहां राजनीतिक उठापटक का दौर चल रहा है। अपनी सेना और सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा के 'तटस्थ' रुख से घबराए प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस पर परोक्ष रूप से नाराजगी जताते हुए भारतीय सेना की खुलकर तारीफ की है।
इमरान खान ने कहा कि भारत की सेना न भ्रष्ट है, न ही कभी चुनी हुई सरकार के कामकाज में दखल देती है। जबकि इधर पाकिस्तानी मीडिया में आ रहे समाचारों से पता चला है कि पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर बाजवा ने ही उन्हें पद छोड़ देने की 'सलाह' दी है। ऐसे वक्त में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री द्वारा भारतीय सेना की प्रशंसा के पुल बांधने का एक ही अर्थ लगाया जा रहा है कि वे ऐसा कहकर बाजवा को 'नसीहत' दे रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि अभी दो दिन पहले, रविवार को एक रैली में भाषण देते हुए इमरान खान बोले थे कि 'मैं हमारे पड़ोसी मुल्क भारत की तारीफ करता हूं। उन्होंने हमेशा अपनी फॉरेन पॉलिसी आजाद रखी है। आज हिंदुस्थान अमेरिका तथा पश्चिमी देश से मिला हुआ है। 'क्वाड' में भारत ने अमेरिका के साथ गठजोड़ किए हुए है। इसके बावजूद भारत कहता है कि वह 'तटस्थ' है। रूस पर दुनिया ने पाबंदियां लगा रखी हैं, लेकिन भारत उससे तेल खरीद रहा है। क्योंकि, इंडिया की पॉलिसी अपनी जनता और अपनी आवाम के लिए है'।
पाकिस्तानी फौज का दबदबा ऐसा है कि राजनीति की बिसात पर वही गोटियां बिठाती आ रही है। लेकिन अब सेनाध्यक्ष बाजवा का इमरान के साथ छत्तीस का आंकड़ा है, लिहाजा सेना से इमरान को फिलहाल कोई रियायत मिलती नहीं दिख रही है।
पाकिस्तान में कथित सेना की मदद से 2018 में सत्ता में आए इमरान खान को समर्थन दे रहे राजनीतिक गठबंधन के असेम्बली में 176 सांसद हैं, जिसमें 8 सांसद विद्रोह कर गए हैं। बहुमत में रहने के लिए 172 सांसदों की जरूरत है। पाकिस्तानी फौज का दबदबा ऐसा है कि राजनीति की बिसात पर वही गोटियां बिठाती आ रही है। लेकिन अब सेनाध्यक्ष बाजवा का इमरान के साथ छत्तीस का आंकड़ा है, लिहाजा सेना से इमरान को फिलहाल कोई रियायत मिलती नहीं दिख रही है।
बाजवा और इमरान के बीच रिश्ते में तल्खी आनी शुरू हुई थी पिछले साल अक्तूबर माह में जब उस वक्त के आईएसआई प्रमुख फैज हमीद के स्थानांतरण का मुद्दा गरमाया था। बाजवा ने जब फैज के स्थानांतरण की चिट्ठी दस्तखत के लिए इमरान के पास भिजवाई थी तब इमरान ने इसे अपने पास रोके रखा था। इस बात पर बाजवा की त्योरियां चढ़नी ही थीं। इस पर बाजवा ने जब नतीजे भुगतने की कथित धमकी दी तो इमरान ने लाचार होकर दस्तखत कर दिए, लेकिन दोस्ती में दरार तो आ ही चुकी थी।
याद रहे इमरान खान ने ही 2019 में कमर जावेद बाजवा का सेनाध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल के लिए बढ़ाया था। बताते हैं, अब इमरान मानकर चल रहे थे कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बाजवा उनके पाले में रहेंगे, लेकिन बाजवा ने इस मुद्दे पर 'तटस्थ' रहने की घोषणा करके इमरान की दिक्कतें ही बढ़ाई हैं।
ऐसे में विपक्षी गठबंधन का जोश में आना स्वाभाविक ही है। विपक्षी दल पीएमएल—नवाज की नेता मरियम नवाज ने तो खान पर हमला ही बोला हुआ है। उनका कहना है कि इमरान का खेल खत्म हो चुका है। महंगाई आसमान छू रही है, जिसे रोकने में सरकार पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। अब पाकिस्तान में सबको 27 मार्च का इंतजार है जब इस्लामाबाद में असली 'शक्ति प्रदर्शन' होने की संभावना है।
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