हिजाब को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर यूपी के मौलवियों ने असहमति जताई है। मौलवियों का कहना है कि हिजाब मामले को लेकर वो उच्चतम न्यायालय में अर्जी दायर करेंगे। कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के बाद देवबंद के मुस्लिम मौलवी मौलाना आलिमा इस्हाक गौरा ने कहा है कि इस्लाम में पर्दा जरूरी है और इस्लाम में पर्दा फर्ज है। इस लिए कोर्ट का फैसला मान्य नहीं है।
मौलाना महमूद मदनी ने कहा है कि कोर्ट का फैसला धार्मिक स्वतंत्रता पर असर करने वाला है। समाज कानून की बारीकियों से नहीं परंपराओं से चलता है। धर्म गुरु मौलाना मुफ़्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा है कि हिजाब जरूरी है कोर्ट का फैसला ठीक नहीं है। ये मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन है। देवबंद के धर्मगुरुओं ने कहा है कि वो कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हैं और हम सर्वोच्च न्यायलय में इसे मुद्दे पर अर्जी दायर करेंगे। बरेली की आला हजरत दरगाह के मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी ने कहा है कि महिलाओं को क्या पहनना है क्या नहीं, इसका फ़ैसला कोर्ट कैसे कर सकता है? कोर्ट का फैसला हमारी मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकारों का हनन है।
पहले भी हुई याचिका खारिज: फरहा फैज- अधिवक्ता
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के मामले में विशेषज्ञ मानी जाती अधिवक्ता फरहा फैज ने कहा है कि कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है, उन्होंने बताया कि 2018 में केरल हाई कोर्ट ने ऐसी ही एक याचिका पहले भी खारिज की थी। उस याचिका में मुस्लिम लड़कियों के पूरी बाजू की कमीज और स्कार्फ पहनने की बात कही थी। जिसमे कोर्ट ने कहा था कि स्कूल कॉलेज की वेशभूषा का मामला स्कूलों के अपने यूनिफॉर्म तय करने का कोड ऑफ कंडक्ट है। फरहा फैज ये भी कहती हैं कि कानून के आर्टिकल 25 का हिस्सा हिजाब नहीं है। इसमें केवल तोहिद, नमाज, हज, रोजा और जकात ही संरक्षित है। इसी तरह सिखो की पगड़ी भी संरक्षित है। उन्होंने कहा कि बेवजह हिजाब मामले को मौलवियों ने राजनीतिक मुद्दा बना दिया है।
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