बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है। वहां अब प्रदीप रावत भारत के नए राजदूत बनाकर भेजे गए हैं। उनसे पूर्व विक्रम मिसरी वहां राजदूत के तौर पर कार्य कर रहे थे। उन्हें अब भारत का उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया है।
यह बदलाव बहुत महत्वपूर्ण दौर में हुआ है और इसे भारत—चीन संबंधों में बहुत अहम माना जा रहा है। सोमवार 14 मार्च को बीजिंग के भारतीय दूतावास में कार्यभार संभालने वाले राजदूत प्रदीप कुमार रावत चीनी मीडिया में खासे चर्चित रहे हैं। 4 मार्च को बीजिंग पहुंचने के बाद रावत को 10 दिन के लिए क्वारंटीन में रहना पड़ा था। चीन में कोरोना के फिर से बढ़ रहे मामलों के चलते कोविड-19 प्रोटोकॉल कड़े हो गए हैं। ।
उल्लेखनीय है कि प्रदीप रावत रावत 1990 बैच के भारतीय विदेश सेवा अधिकारी हैं। पूर्व की नियुक्तियों में वह नीदरलैंड्स, इंडोनेशिया और तिमोर लेस्टे में भारत के राजदूत रह चुके हैं। इतना ही नहीं, उन्हें हांगकांग तथा बीजिंग में भी पहले भी कार्य करने का अनुभव है। रावत चीन भाषा मंदारिन धाराप्रवाह बोल लेते हैं।
प्रदीप रावत के लिए चीन कोई अनजान देश नहीं है। हांगकांग और बीजिंग में वे पहले सेवाएं दे ही चुके हैं। विदेश सेवा में आने पर उन्होंने अपनी विदेशी भाषा के नाते मंदारिन को चुना था। वे 1992—1997 के दौरान बीजिंग के भारतीय दूतावास में थे फिर 1997 में दिल्ली लौटकर विदेश विभाग में पूर्वी एशिया विभाग में सेवा दी। तत्पश्चात, वे मॉरीशस में भारतीय मिशन में प्रथम सचिव के पद पर रहे।
प्रदीप कुमार रावत का बीजिंग में ऐसे समय में भारत का राजदूत बनाना इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि दोनों देशों के मध्य जून 2020 में गलवान में संघर्ष के बाद से पूर्वी लद्दाख सीमा पर सैन्य गतिरोध बना हुआ है। दरअसल इस गतिरोध की शुरुआत अप्रैल 2020 से ही हो चुकी थी, जून में भीषण संघर्ष हुआ और अब भी बड़ी तैयारी के साथ दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं। वहां सीमा से रह—रहकर तनाव बढ़ने—घटने के समाचार प्राप्त होते रहते हैं।
इस बीच हैरानी की बात है कि चीन के मीडिया ने रावत की नियुक्ति के बारे में अनेक समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किए हैं। चर्चा सिर्फ उनके मंदारिन को जानने के कारण ही नहीं हो रही है बल्कि उन्हें बीजिंग की राजनीति को करीब से जानने वाला भी माना जाता है। ग्लोबल टाइम्स सहित चीन के सभी प्रमुख टीवी चैनलों, समाचखर पत्रों व पोर्टल जैसे नेटईज, टेंसेंट, शिन्हुआ, चाइना मीडिया ग्रुप, चाइना डेली अन्य अनेक ने रावत की नियुक्ति को विस्तार से प्रकाशित किया है।
प्रदीप रावत ने चीन में अपनी पिछली नियुक्ति के दौरान मंदारिन भाषा को करीब से जाना—समझा था। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने नाम को भी चीनी अनुवाद करके अपना चीनी नाम रखा हुआ है लुओ गुंदोंग। चीनी मीडिया उनके इस चीनी नाम को भी खूब प्रचारित कर रहा है।
दरअसल प्रदीप रावत के लिए चीन कोई अनजान देश नहीं है। हांगकांग और बीजिंग में वे पहले सेवाएं दे ही चुके हैं। विदेश सेवा में आने पर उन्होंने अपनी विदेशी भाषा के नाते मंदारिन को चुना था। वे 1992—1997 के दौरान बीजिंग के भारतीय दूतावास में थे फिर 1997 में दिल्ली लौटकर विदेश विभाग में पूर्वी एशिया विभाग में सेवा दी। तत्पश्चात, वे मॉरीशस में भारतीय मिशन में प्रथम सचिव के पद पर रहे।
भारत—चीन संबंधों में रावत के आने के बाद से चीन एक नया आयाम आने की संभावनाएं देख रहा है। इस संदर्भ में रावत का चीन को करीब से जानना महत्वपूर्ण माना जा रहा है। चीन में एक वर्ग का यह भी मानना है कि क्योंकि रावत पूर्वी एशिया नीति के मर्मज्ञ हैं इसलिए उन्हें बीजिंग भेजकर संभवत: भारत चीन से अपने संबंधों को वापस पटरी पर लाने का इच्छुक है।
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