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देश की 13 बड़ी नदियों के संरक्षण की रिपोर्ट मोदी सरकार ने की तैयार

by दिनेश मानसेरा
Mar 15, 2022, 02:21 am IST
in भारत, उत्तराखंड
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

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विश्व जलवायु संरक्षण के तहत हुए पेरिस समझौते के अनुसार भारत को 2.5 से 3 बिलियन टन कॉर्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करना है। जिसके लिए 2030 तक का समय निर्धारित किया गया है।

 

भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद ने देश की 13 बड़ी नदियों के संरक्षण की एक डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) केंद्र सरकार को बना कर दी है। मोदी सरकार नमामि गंगे की तर्ज पर देश की अन्य प्रमुख नदियों और उनकी सहायक नदियों के बेसिन क्षेत्रों में वनों, जड़ी बूटियों, जल स्रोतों, भूमि जल आदि के संरक्षण का काम करना चाहती है। विश्व जलवायु संरक्षण के तहत हुए पेरिस समझौते के अनुसार भारत को 2.5 से 3 बिलियन टन कॉर्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करना है। जिसके लिए 2030 तक का समय निर्धारित किया गया है।

भारत ने गंगा के सफाई अभियान के बाद, देश की 13 बड़ी नदियों, यमुना, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी और इन नदियों के 202 सहायक नदियों के संरक्षण का प्रोजेक्ट तैयार कर लिया है। 13 नदियों के 18.90 लाख वर्ग किमी, सहायक नदियों के 42.83 हज़ार वर्ग किमी के बेसिन क्षेत्रों के संरक्षण की योजना बनाई गई है। बेसिन क्षेत्रों में वन लगाने, जल स्रोतों के संरक्षण करने और करीब 1889 मिलियन घनमीटर भूजल के पुनर्भरण के काम को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

जानकारी के मुताबिक नदी क्षेत्रों के पास बसने वाली आबादी को लकड़ी के कटान और लकड़ी जलाने के लिए प्रतिबंधित किया जाएगा। साथ ही साथ नदी किनारे, मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर वृहद वृक्षारोपण अभियान शुरू किया जाना है। 13 नदियों के किनारे 7417.37 वर्ग किमी में वन लगाने की योजना है। इससे वन क्षेत्र में वृद्धि होगी और इससे 50.21 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड सोखने में मदद मिलेगी। अगले 20 सालों में भारत ने 74.76 मिलियन टन कॉर्बन डाइऑक्साइड सोखने का लक्ष्य बनाया हुआ है। विश्व में हो रहे जलवायु परिवर्तन पर भारत ने भी हमेशा चिंता जाहिर की है। यही वज़ह है कि देश में धुंए को रोकने के लिए प्रयास तो हो ही रहे हैं। साथ ही साथ नदियों के संरक्षण के साथ-साथ वनों के क्षेत्रफल को भी बढ़ाने की कोशिशें तेज़ हुई हैं।

13 नदियों के संरक्षण के लिए 19.34 हज़ार करोड़ खर्च की डीपीआर तैयार हुई है, जिसमें 34 करोड़ मानव दिवस रोजगार दिया जाना है और 449 करोड़ की आय का भी प्रावधान किया गया है। अनुमान लगाया गया है अकाष्ठ अन्य वन उपज और ईको पर्यटन से सरकार को 449 करोड़ की आय होगी। भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के महानिदेशक ए एस रावत ने कहा कि हमने केंद्र को डीपीआर बना कर दे दी है, नदियों किनारे वन क्षेत्र बढ़ाने में आसानी होगी। भूजल से वन विकसित होते हैं और भूजल का संरक्षण भी होगा। रावत ने कहा कि जलवायु परिवर्तन विश्व व्यापी समस्या है। हमारी सरकार भी इसके प्रति जवाबदेह है। इसलिए हमारे प्रयासों से ही पर्यावरण संतुलन होगा।

वन विभाग बनेगा नोडल एजेंसी: केंद्रीय जल शक्ति मंत्री 

केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह  शेखावत ने कहा कि नमामि गंगे के बाद अब देश की 13 बड़ी और उनकी 202 सहायक नदियों के संरक्षण की योजना तैयार हो चुकी है। नदियों के बेसिन में चौड़ी पत्तियों के पेड़ लगने से ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ेगी और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम होगी। हम इस वृहद योजना के लिए वन विभाग को नोडल एजेंसी बनाने पर फैसला ले सकते हैं। 

नदियों के किनारे वन विकसित करने के लिए सेना की ईको टास्क फोर्स को लगाया जाए 

सामाजिक कार्यकर्ता रतन सिंह असवाल का कहना है कि नदियों के संरक्षण के लिए वृहद वृक्षारोपण अभियान में सेना की ईको टास्क फोर्स को लगाना चाहिए। हर साल हजारों फौजी रिटायर होते हैं, उन्हें इस टास्क फोर्स में भर्ती कर इस राष्ट्रीय अभियान में लगाया जाना चाहिए। 

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