कुछ समय से राजमहल की पहाड़ियों में एक शोध चल रहा है। यह शोध लखनऊ स्थित नेशनल बॉटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से किया जा रहा है। उस शोध के अनुसार राजमहल की पहाड़ियों और उसकी तलहटी में जुरासिक काल के अनगिनत जीवाश्म (फॉसिल्स) विद्यमान हैं। भूगर्भ शास्त्रियों और पुरा-वनस्पति (पैलियोबॉटनी) विज्ञानियों ने इन जीवाश्मों की आयु 20 करोड़ वर्ष आंकी है। इस शोध में शामिल रहे और साहिबगंज स्थित पीजी कालेज में भूगर्भशास्त्र के प्राध्यापक डॉ. रंजीत प्रसाद सिंह का कहना है कि राजमहल की पहाड़ियां एक बड़े भू-गर्भीय उथल-पुथल से बनी हैं। यह एक बड़ा समुद्रीय क्षेत्र था और ज्वालामुखी विस्फोट की कई घटनाओं ने यहां की भूवैज्ञानिक संरचना और पारिस्थितिकी को बदल दिया।
उल्लेखनीय है कि नेशनल बॉटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक दल ने लगभग डेढ़ साल पहले दूधकोल नामक स्थान पर जिन जीवाश्मों को खोजा था, उन पर जुरासिक काल के पेड़ों की पत्तियों की छाप (लीफ इंप्रेशन) है। इसके 150 से लेकर 200 मिलियन वर्ष पुराने होने का अनुमान है। शोध का एक निष्कर्ष यह भी है कि जीवाश्म उन पेड़ों के हैं, जो कभी शाकाहारी डायनासोर का भोजन रहे होंगे। यह भी बता दें कि राजमहल क्षेत्र में विश्वभर के वैज्ञानिक आते रहते हैं। कुछ समय पहले ही न्यूजीलैंड से वैज्ञानिकों का एक दल आया था। कुछ वर्ष पहले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से जुड़े वैज्ञानिकों को यहां के कटघर गांव में अंडानुमा जीवाश्म मिले थे। कार्बन डेटिंग से पता चला है कि राजमहल की पहाड़ियां हिमालय से 500 करोड़ वर्ष पुरानी हैं। ये पहाड़ियां लगभग 2,600 वर्ग किलोमीटर में फैली हैं और इसकी सर्वाधिक ऊंचाई 567 मीटर है। साहिबगंज, सोनझाड़ी और पाकुड़ जिले के महाराजपुर, तारपहाड़, गरमी पहाड़ बड़हरवा इलाकों में भी बड़ी संख्या में जीवाश्म मिल चुके हैं। यह क्षेत्र में सबसे पहले जीवाश्म की खोज भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान यानी इंडियन पैलियोबॉटनी के जनक प्रो. बीरबल साहनी ने की थी। वे 1935 से 1945 के बीच कई बार इस क्षेत्र में आए थे। उनके द्वारा खोजे गए जीवाश्मो के कई नमूने लखनऊ स्थित बीरबल साहनी संस्थान में रखे गए हैं।
यहां मिल रहे जीवाश्मों को सुरक्षित करने के लिए राज्य सरकार साहेबगंज के मंडरो में 16 करोड़ रु. की लागत से 'फॉसिल्स पार्क' बना रही है, जिसका काम जल्दी ही पूरा होने वाला है।
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