जून, 2017 के उस ट्वीट को भला कौन भूल सकता है, जिसे अलस्सुबह करीब 8 बजे पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक यूजर के ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा था। करण सैनी नाम के यूजर ने श्रीमती स्वराज को टैग करके लिखा था, ‘‘मैं मंगल पर अटक गया हूं। मंगलयान से भेजा गया खाना अब खत्म हो रहा है। मंगलयान-2 कब भेजा जाएगा?’’ तब उन्होंने ट्वीट का जवाब देते हुए कहा, ‘‘अगर आप मंगल ग्रह पर भी फंसे हों, तो भारतीय दूतावास वहां भी आपकी मदद करेगा।’’ बाद में सैनी ने एक अन्य ट्वीट में कहा कि मेरा ट्वीट पूरी तरह से मजाकिया लहजे में था। लेकिन तत्कालीन विदेश मंत्री ने जिस अंदाज में जवाब दिया, तब उसकी सोशल मीडिया में खूब चर्चा हुई। लोगों ने उनकी यह कहकर तारीफ की कि उन्होंने जवाब देने के साथ ही विदेश मंत्रालय की ताकत और संकट के समय अपने लोगों के साथ डटकर खड़े रहने का जो वचन दिया, वह अपने नागरिकों के प्रति प्रेम को दर्शाता है। कुल मिलाकर बतौर विदेश मंत्री श्रीमती स्वराज के ट्वीट का सार यह था कि भारत अब अपने नागरिकों को किसी भी स्थिति में अकेला छोड़ने वाला नहीं है। दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे भारतवासी अगर मुश्किल में हैं, तो भारत सरकार उनके साथ खड़ी है।
रूस—यूक्रेन के मध्य भीषण युद्ध के दौरान केंद्र सरकार के भारतीय छात्रों की सकुशल वतन वापसी के लिए चलाए गए आॅपरेशन गंगा ने यह बात फिर से साबित की कि भारत का एक—एक नागरिक कितना कीमती है। महाराष्ट्र के सिम्बायसिस विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती समारोह में प्रधानमंत्री के संबोधन में भी इस बात की झलक मिलती दिखी। नरेंद्र मोदी ने आॅपरेशन गंगा को केंद्र में रखते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि बड़े-बड़े देशों को भी अपने लोगों को युद्धग्रस्त यूक्रेन से सुरक्षित निकालने में दिक्कत हो रही है, लेकिन यह भारत के बढ़ते प्रभाव का असर है कि हम हजारों छात्रों को घर लाने में सफल रहे हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब भारत ने इतने बड़े पैमाने पर अपने लोगों की सुरक्षित वतन वापसी कराई है। विदेशी मामलों के जानकार मानते हैं कि विदेश में आपदा के समय फंसे अपने नागरिकों को निकालने में भारत का ट्रैक रिकॉर्ड काफी अच्छा रहा है। हमने कई बार मुश्किल समय में दूसरे देशों के नागरिकों को भी बाहर निकालने में मदद की है।
हाल के कुछ वर्षों के राहत अभियानों पर नजर डालें तो केंद्र की मोदी सरकार ने असंभव को भी संभव कर दिखाया है। पूर्व राजदूत जितेंद्र कुमार त्रिपाठी भारत द्वारा चलाए गए अभियानों के बारे में कहते हैं कि हाल के वर्षों में भारत ने अपने नागरिकों को मुश्किल से मुश्किल हालात में निकाला है। जब कई देश हाथ पीछे खींच रहे थे, तब भारत ने उस बहादुरी का परिचय दिया, जिसकी कल्पना करना तक कठिन है। वे कहते हैं, ''युद्ध की स्थिति में हर जगह कोहराम होता है। हवाई हमले हो रहे होते हैं। युद्ध के हालात में सड़कें खराब हो चुकी होती हैं, यात्रा के लिए साधनों की कमी होती है, सब कुछ अनिश्चित होता है। और इससे भी बड़ी बात आप दूसरे देश में होते हैं। ऐसे में वहां के लाखों लोग खुद सड़कों पर होते हैं। इस सबके बीच आप अपने लोगों की सुरक्षित निकासी कराते हैं, जो अद्भुत कार्य होता है। कई बार लोग बिना जाने-समझे दूतावास के अधिकारियों पर सवाल दागने लगते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि जब दूतावास के अधिकारी पहुंचेंगे तब ही तो राहत पहुंचा पाएंगे।'' वे बताते हैं, चीन ''यूक्रेन में फंसे अपने लोगों को अब निकाल रहा है। वहीं इटली, जर्मनी और पाकिस्तान ने तो हाथ खड़े कर दिए। ऐसे भीषण समय में भारत ने जो कार्य करके दिखाया है, उसकी मुक्त कंठ से जितनी सराहना की जाए, कम है। ''
राहत भरे अभियानसाल, 2014 के बाद विदेशो में फंसे भारतीय की सकुशल वापसी के लिए कई सफल अभियान चलाए गए। इन अभियानों के जरिए—जरिए एक—एक भारतीय की वापसी सुनिश्चित करते हुए उन्हें एयरलिफ्ट किया गया।
आपरेशन गंगा (2022) आपरेशन देवी शक्ति (2021) वंदे भारत (2020) आपरेशन समुद्र सेतु (2020) आपरेशन राहत (2015) आपरेशन मैत्री (2015) |
तोहे देख कै मोए बहुत खुसी है रईउत्तर प्रदेश स्थित बरसाना के जगदीश गोयल की बेटी राधिका ने जैसे ही घर में पैर रखा, आंखों से झरते आंसू और रुंधे गले से मां सुमन एक ही बात कह रही थी —तेरे बिना मेरो कलेजो फट रहै। तू जब तक ना आई, मेरी जान अटक रई। अब तोहे देख कै मोए बहुत खुसी है रई। बेटी ने भी मां के आंसू पोंछते हुए कहा— मां अब तू चुप्प है जा, देख तेरी बेटी आ गई। यूक्रेन की इवानो यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस कर रही राधिका रूस—यूक्रेन के बीच युद्ध के दौरान फंस गईं। राधिका बताती हैं, ''22 फरवरी की रात करीब तीन बजे अचानक धमाकों की आवाज सुनाई दी। छात्रावास में मौजूद मैं और मेरे सभी साथी यह आवाज सुनकर सहम उठे। किसी तरह सुबह हुई। हम सभी डरे हुए थे। 25 फरवरी तक इवानो शहर में लगातार हमले हो रहे थे। इसी बीच एक धमाका शहर के एयरपोर्ट पर भी हुआ। एक बारगी लगा कि घर पहुंच भी पाएंगे। फिर किसी तरह हिम्मत बांधी और और कुछ साथियों के साथ रात में ही टैक्सी से रोमानिया की सीमा पर पहुंचे। इस दौरान हमें कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। लेकिन अंतत: रोमानिया के रास्ते हम भारत सकुशल आ गए। राधिका भारतीय होने पर बड़े गर्व से बताती हैं कि जब हम टैक्सी से रोमानिया पहुंच रहे थे तो हमारी गाड़ी पर तिरंगा झंडा लगा हुआ था। इस झंडे की ही ताकत थी कि ना तो यूक्रेन और ना ही रूस के सैनिक हमसे कुछ पूछ रहे थे। हमें सम्मान मिल रहा था। निश्चित ही यह देखकर बहुत खुशी हो रही थी। मैं मानती हूं कि केंद्र सरकार के प्रयासों से ही हम युद्ध के बीच से सुरक्षित घर वापस लौट पाए हैं। |
एक सवाल के जवाब में त्रिपाठी कहते हैं, ''साल, 2014 के पहले अपने लोगों को निकालने के लिए राहत अभियान चलते थे, लेकिन न तो इतने बड़े पैमाने पर और न ही इतनी सन्नद्धता के साथ। 2014 के पहले देखें तो प्रवासी भारतीयों की इतनी पूछ भी नहीं थी। और न ही हमारे दूतावास इन लोगों का कोई बहुत ज्यादा ख्याल रखते थे। लेकिन अब स्थिति में पूरी तरीके से बदलाव आया है। एक तरीके से कहें तो 2014 के बाद एक—एक भारतीय की क्या कीमत होती है, उसे समझा जाने लगा। ठीक उसी तरह जैसे अमेरिका आदि देश अपने नागरिकों के बारे में सोचते हैं।''
कितने लोग आए सुरक्षित
‘आपरेशन गंगा’ के अंतर्गत अब तक करीब 18 हजार लोगों को सफलतापूर्वक निकाला जा चुका है। विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट किया, ‘आपरेशन गंगा के तहत हमने 76 उड़ानों के माध्यम से 15,920 से अधिक छात्रों को सफलतापूर्वक निकाला है। इसमें रोमानिया से 31 उड़ानों के जरिए 6,680 छात्र, पोलैंड से 13 उड़ानों में 2,822 छात्र, जबकि हंगरी से 26 उड़ानों में 5,300 और स्लोवाकिया से 6 उड़ानों के माध्यम से 1,118 छात्रों को सुरक्षित निकाला गया है। इन सभी को जमीनी सीमा चौकियों के जरिए यूक्रेन से निकलने के बाद हंगरी, रोमानिया, पोलैंड और स्लोवाकिया से हवाई मार्ग से स्वदेश लाया गया है। यूक्रेन का हवाई क्षेत्र रूस की सैन्य कार्रवाई के बाद 24 फरवरी से ही बंद है और भारत अपने नागरिकों को रोमानिया, हंगरी और पोलैंड के रास्ते विशेष विमानों के जरिये वापस ला पाया है।
इन राज्यों के छात्र फंसे थे यूक्रेन से
यूक्रेन में करीब 20 हजार भारतीय नागरिक फंसे हुए थे, जिनमें अधिकतर छात्र थे। इन छात्रों में गुजरात के 2,500, केरल के 2,320, तमिलनाडु के लगभग 5,000 छात्र और प्रवासी, महाराष्ट्र के 1,200 छात्र, छत्तीसगढ़ के 70 छात्रों सहित 100 निवासी, मध्य प्रदेश के 87 छात्र, राजस्थान के 600-800 छात्र, हिमाचल प्रदेश के 130 छात्र तो वहीं हरियाणा के 2,000 निवासियों सहित उत्तराखंड के लगभग 85 निवासी, पंजाब के 70 से अधिक लोग, कर्नाटक के 346 निवासी, आंध्र प्रदेश के लगभग 170 और पुद्दुचेरी के आठ निवासी भी यूक्रेन में फंसे थे। इसी तरीके से ओडिशा के करीब 1,500 छात्र और सिक्किम के 20 छात्रों को यूक्रेन से लाया गया है।
बंकर के वे कठिन पांच दिन
मथुरा के गोवर्धन रोड स्थित शिवाशा एस्टेट की रहने वाली गुंजिता ने कीव में अपने जीवन का वह कठिन समय देखा, जिसे याद करके वे डर जाती हैं। कीव में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही गुंजिता बताती हैं कि 24 फरवरी से 28 फरवरी तक वे लगातार फ्लैट के बंकर में छिपी रहीं। इस दौरान खाने-पीने की भी बड़ी मुश्किल हुई। वे बताती हैं,‘‘बंकर से थोड़ी ही दूरी पर रह-रहकर धमाके हो रहे थे। धमाकों की आवाज जैसे ही कानों तक पहुंचती डर बढ़ जाता था। मन में आता था कि क्या घर पहुंच भी पाऊंगी? मम्मी-पापा से मिल पाऊंगी? बार—बार वीडियो कॉल से बात करके मन को शांत करती थी। फिर किसी तरह हम हंगरी सीमा पर पहुंचे। इस दौरान भारतीय दूतावास लगातार हमसे संपर्क करके हमारी सकुशल वापसी के लिए प्रयासरत था। हंगरी सीमा के बाद दूतावास के अधिकारियों की मदद से हमारी सकुशल वतन वापसी हो पाई।’’
ट्रेन के ऊपर से जब गुजरी मिसाइल
राजस्थान स्थित नागौर के परबतसर के रहने वाले महेंद्र रूलानिया कीव से अपने घर पहुंचने पर कहा कि यूक्रेन में युद्ध की वजह से हालात भयावह हो रहे थे। कीव में हर तरफ से बमबारी और गोलीबारी की आवाजें आ रही थीं। रूस और यूक्रेन की सेना आमने-सामने थीं। जंग जारी थी। ऐसे में बम धमाकों की आवाज थीं और गोलियों की दहशत के बीच साथियों के साथ बंकरों में छिपना पड़ता था। हमारी पढ़ाई में सिर्फ 3 महीने ही बाकी रह गए थे। लेकिन वहां युद्ध छिड़ गया। इस दौरान हम भारतीय दूतावास द्वारा जारी की जा रही हर सलाह को बड़ी संजीदा तरीके से ले रहे थे। इस सबके बीच कुछ साथियों के साथ कीव से ल्वीव के बीच 10 घंटे का सफर ट्रेन से तय किया। लेकिन इस दौरान जब ट्रेन के ऊपर से मिसाइल निकली तो एक बारगी सांसें थम गर्इं। हम सभी यह देखकर डर गए। बड़ी मुश्किल से ट्रेन से पोलैंड सीमा पर पहुंचे, जहां केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह ने हम सभी की अगवानी की और ढांढस बंधाया। इसके बाद हमारी वतन वापसी के सभी सकुशल इंतजाम किए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार जताते हुए महेंद्र्र कहते हैं कि यह सब उनके प्रयासों से ही संभव हुआ कि हम सभी सुरक्षित रूप से घर वापस लौट पाए।
भारतीय होने पर जब हुआ गर्व का अहसास
पटना के कोल्हा रोड के रहने वाले कुमार विद्यांश यूक्रेन की इवानो फ्रैंकिवस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी से अपनी बहन प्राची के साथ एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं। यूक्रेन में चार साल से रह रहे विद्यांश बताते हैं कि फरवरी की शुरुआत से ही हालात खराब होने की खबरें आनी शुरू हो गई थीं। लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ज्यादा हलचल नहीं थी। पर 24 फरवरी को अचानक इवानो एयरपोर्ट पर रूसी हमला हुआ और स्थितियां बदलनी शुरू हो गर्इं। मैं बेरहवा के जिस इलाके में रहता था, वहां भगदड़ मचनी शुरू हो गई। मेरे अपार्टमेंट की बॉल्कनी से साफ तौर पर धुआं दिख रहा था। आनन—फानन में बाजारों में भीड़ बढ़ने लगी। एटीएम से पैसा निकालने के लिए लंबी—लंबी कतारें लगनी शुरू हो गईं। हम भी इसी कतार में थे। रात के बाद से हालत बदतर से बदतर होने लगे थे। शहर पर हमले की खबरें उड़नी शुरू हो गर्इं। इस दौरान छात्रों के लिए भारतीय दूतावास से लगातार एडवाइजरी आ रही थीं। वे हम लोगों को बराबर सलाह दे रहे थे। स्थिति को देखते हुए दूतावास की ओर से हम लोगों के लिए बसों का इंतजाम किया गया, लेकिन किसी कारणवश इसमें एक दिन से देरी जानकारी मिली। हम सब डरे हुए थे। एक—एक पल काटना कठिन हो रहा था। ऐसे में हम लोगों ने खतरे को भांपते हुए खुद ही बसों को तय किया और पहुंच गए रोमानिया बार्डर। यहां की स्थिति बेहद खराब थी। चारों तरफ भीड़ ही भीड़ नजर आ रही थी। कई देशों के छात्र यहां एकत्र थे। किसी तरह हमने यह बार्डर पार किया। यहां से भारतीय दूतावास की ओर से हमें पूरी मदद मिलनी शुरू हो गई। हम सभी का पूरा ख्याल रखा जा रहा था। यूं कहें कि हमें फिर कोई समस्या नहीं आई। हमें अच्छी जगह ठहराया गया और भोजन आदि का पूरा प्रबंध किया गया। अंतत: 1 मार्च को ओटोपेनी एयरपोर्ट से हमारी वतन वापसी सुनिश्चित हो पाई।
एक भारतीय होने पर अपने आपको भाग्यशाली बताते हुए विद्यांश कहते हैं कि सीमा पर कई देशों के छात्र फंसे हुए थे, लेकिन भारतीय छात्रों को प्राथमिकता मिल रही थी। निश्चित तौर पर मैं केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी जी को धन्यवाद देता हूं कि बड़े ही व्यवस्थित तरीके से आपरेशन गंगा चलाकर हम जैसे हजारों छात्रों की घर वापसी सुनिश्चित की गई है।
बंकर से तिरंगा अधिक मजबूत ढाल
पंजाब स्थित नांगल की पीएसीएल कॉलोनी के रहने वाले मेडिकल छात्र आदित्य भारद्वाज हाल ही में यूक्रेन से सकुशल घर पंहुचे। आदित्य देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र्र मोदी सहित मीडिया का भी आभार जताते हुए कहते हैं आज दुनिया भर में भारत का डंका बज रहा है। बाहर युद्ध चल रहा था और बंकरों व तहखानों में ठहरे भारतीय विद्यार्थी भयाक्रांत थे। गोलाबारी थमी तो सैनिकों ने उन्हें बाहर निकाला और तिरंगा लगे वाहनों पर बैठाकर भारत के लिए रवाना कर दिया। तिरंगे लगे वाहनों को रूसी और यूक्रेन, दोनों के सैनिक सुरक्षित रास्ता दे रहे थे। हमें महसूस हुआ कि हम बंकर से अधिक तिरंगा लगे वाहनों में सुरक्षित हैं। भीषण युद्ध के बीच भी अगर आपके हाथ में देश का तिरंगा है तो आपको किसी भी बात का डर नहीं है। अब तो अपनी जान बचाने के लिए पाकिस्तानी भी तिरंगा थामे नजर आए। वह बताते हैं कि जब भी बमबारी व विस्फोट की आवाज सुनते थे तो दिल कांप उठता था और भागकर बंकरों में छिपना पड़ता था। किसी तरह हम रोमानिया सीमा पहुंचे, जहां केंद्र्रीय मंत्री सिन्धिया ने हम सभी को सांत्वना दी और हमारी वापसी सुनिश्चित कराई।
हमारा हर तरफ मान-सम्मान हो रहा था
मातृभूमि पर कदम रखते ही ऐसा लगा, मानो नया जीवन मिल गया। लेकिन इस कठिन समय में जो सबसे अच्छा लगा वह था एक भारतीय नागरिक के तौर पर हर तरफ मिला सम्मान। यह सब देखकर मन में एक अजीब सी खुशी हो रही थी और भारतीय होने पर गर्व का अहसास। यह कहना है उत्तर प्रदेश स्थित भदोही के रहने वाले शाहजादा फैजल का। दरअसल, फैजल इवानो फ्रैंकिवस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं। 25 साल के फैजल बताते हैं कि हालात धीरे—धीरे खराब हो रहे थे, लेकिन ऐसा भीषण युद्ध होगा, किसी को अंदाजा नहीं था। हां, इस बात की खबर यूक्रेन के मीडिया में थी कि रूस दो महीने पहले से ही बॉर्डर पर सेना बढ़ा रहा था। पर इन बातों पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं देता था।
कभी—कभी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर से पूछ लेते थे कि आगे कुछ होने वाला है क्या? वे भी कहते देते थे कि ये सब चीजें तो बॉर्डर पर चलती ही रहती हैं। हम सब यह सुनकर निश्चिंत हो जाते थे। लेकिन फरवरी में अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने नागरिकों को यहां से निकालना शुरू किया। उन्होंने एडवाइजरी जारी की कि जितने भी अमेरिकी नागरिक यूक्रेन में हैं, तुरंत देश छोड़ दें। क्योंकि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है। यह सब देखकर हम लोगों ने भी अपने दूतावास से संपर्क किया। उन्होंने कहा कि हम इस मसले पर नजर रखे हुए हैं, आप सब परेशान ना हों। लेकिन हालात खराब होते जा रहे थे। दूसरी ओर यूनिवर्सिटी भी हम लोगों को फंसाए हुए थी। कोई भी क्लास छोड़ने का मतलब आगे बड़ी समस्या खड़ी करना। आखिरकार 24 फरवरी को हमला हो ही गया।
भारतीय दूतावास ने सजगता दिखाते हुए हम सभी को सलाह दी कि नजदीक के जो चार बॉर्डर हैं- रोमानिया, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड पर पहुंच जाइए। हमारे शहर से रोमानिया की सीमा नजदीक थी, सो हम लोग 26 फरवरी को यहां पहुंच गए। यहां लगातार भीड़ बढ़ती जा रही थी। हम बराबर निकलने की कोशिश कर रहे थे तो कई बार यूक्रेन के छात्र हमें निकलने नहीं दे रहे थे। इस माहौल में हम सभी करीब 12-14 घंटे खड़े रहे। आखिरकार हमने किसी तरह सीमा पार की। इसके बाद से रोमानिया के भारतीय दूतावास ने पूरी मदद की। हमें अच्छी जगह रुकवाया गया। हमारी सारी जरूरतों को ख्याल रखा गया। और फिर 1 मार्च को दिल्ली आ गए। और यह सब संभव हुआ भारत सरकार द्वारा चलाए गए आॅपरेशन गंगा के तहत। हमारा एक भी पैसा खर्च नहीं हुआ। सारा खर्चा भारत सरकार ने किया। फैजल बताते हैं कि इस कठिन वक्त में भारत का नागरिक होने पर बहुत अच्छा लगा। हमारे साथ हर जगह सम्मान से पेश आया गया। हमारी दिल खोलकर मदद की जा रही थी। जबकि दूसरे देशों के छात्रों के साथ ऐसा नहीं था। बता दें कि फैजल यूक्रेन से लौटे उन छात्रों में से एक हैं, जो हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काशी प्रवास के दौरान उनसे मिले थे।
तिरंगे का सम्मान कर रहे थे सैनिक
टर्नोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे ग्वालियर के वेदांत शर्मा उन छात्रों में से एक हैं जो केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे आपरेशन गंगा के तहत स्वदेश लौटे हैं। एक तरफ वह युद्ध के हालात बयां करते हैं तो दूसरी तरफ तिरंगे के सम्मान की बात आते ही फख्र से कहते हैं कि पहली बार दूसरे देश में भारत की ताकत का अहसास हुआ। बड़ा गर्व होता है भारतवासी कहलाने पर। वे यूक्रेन से लौटने की बात बताते हैं कि 23 फरवरी से बम गिरने शुरू हो गए। हर तरफ कोहराम सा मचने लगा। हमारे कई दोस्त पोलैंड में रहते थे। तो वहां भी बॉर्डर बंद कर दिया गया। फिर हम लोगों ने भी अपने दूतावास से संपर्क साधा और हालात को देखते हुए 26 फरवरी को बस से रोमानिया बॉर्डर निकल पड़े। हमें यहां रात गुजारनी पड़ी। हालात ऐसे थे कि यूक्रेन की सेना भीड़ को काबू करने के लिए हवा में गोलियां चला रही थी। खाने के नाम पर उबले आलू मिल जाते थे। साथ में मेरी बहन भी थी। हम बॉर्डर पार करने का इंतजार कर रहे थे। आखिर किसी तरह हमने रोमानिया की सीमा में प्रवेश किया। यहां से हमें सभी तरह का सहयोग मिलना शुरू हो गया। हमारी छोटी से छोटी चीजों का ध्यान रखा जा रहा था। आखिर में 1 मार्च को हम भाई-बहन साथ—साथ दिल्ली आ गए। वेदांत बताते हैं कि भारत सरकार के आॅपरेशन गंगा की जितनी तारीफ की जाए, कम है। किसी भी देश में वह भी युद्ध के हालात में अपने नागरिकों को सकुशल निकालकर लाना, वह भी बड़े सम्मान के साथ, कोई छोटी बात नहीं है। मैंने यह देखा कि यूक्रेन और रूस के सैनिक जहां तिरंगे को सम्मान दे रहे थे वहीं भारतीय छात्रों को सहयोग।
माइनस 7 डिग्री में जब काटे 15 घंटे
पश्चिम उत्तर प्रदेश स्थित शामली के अंश भार्गव की आंखों के सामने यूक्रेन के भयावह दृश्य अभी भी तैरते हैं। मेडिकल छात्र अंश बताते हैं कि जीवन में ऐसी भगदड़ और युद्ध जैसे हालात देखे ही नहीं थे। जब यूक्रेन में अचानक हालात बदले तो डर बढ़ता चला गया। फरवरी के अंतिम सप्ताह में धमाकों से पूरे यूक्रेन में स्थिति बिगड़ने लगी। हां, यहां मैं यह बताना चाहूंगा कि भारतीय दूतावास इस स्थिति के 20-25 दिन पहले से ही भारतीय छात्रों की जानकारी जुटाना शुरू कर चुका था। हालात खराब हुए तो दूतावास से सलाह आई कि जो छात्र यूक्रेन छोड़ना चाहते हैं, वे भारत लौटना शुरू करें। लेकिन हम लोग चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकते थे। क्योंकि हम एक भी क्लास नहीं छोड़ सकते थे। लिहाजा हम सभी दुविधा में फंसकर रह गए। इसी बीच हवाई जहाज का किराया आसमान छूने लगा।
80 हजार से लेकर एक लाख तक की टिकट बिकने लगीं। इस उधेड़बुन में फंसे ही थे कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। हम सबने सोचा था कि हम राजधानी से छह सौ किमी दूर हैं और जिन इलाकों पर हमले की खबरें थीं, उनसे भी हमारे शहर की काफी दूरी हैं, तो हम निश्चिंत थे कि यहां हमला नहीं होगा। पर ऐसा नहीं हुआ। इत्तेफाक से सबसे पहला हमला इवानो शहर पर ही हुआ, जो घर से महज 1.5 किलोमीटर दूर पर था। शहर में भगदड़ मच चुकी थी। जगह—जगह अलार्म बज रहे थे। लोगों को घरों में ही रहने को बोला जा रहा था। इसी बीच हम लोगों ने मन बना लिया कि अब यहां नहीं रहना, चाहे कुछ करना पड़े। सबने मिलकर एक बस की। फिर यहीं से लगभग 1500 बच्चे एक साथ रोमानिया बॉर्डर के लिए निकल गये। सभी बसों पर भारत का तिरंगा लगा हुआ था, जिसके कारण हमें किसी ने भी कहीं नहीं रोका।
अंतत: हम बॉर्डर पहुंचे। लेकिन यहां भीड़ बढ़ती चली जा रही थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? रात में यहां का तापमान माइनस 7 से 10 डिग्री तक चला गया था। ठंड में सड़क पर ही 16 घंटे तक रहना पड़ा। इस दौरान भारतीय दूतावास से संपर्क बना हुआ था। आखिरकार काफी प्रयास के बाद हम सभी को बॉर्डर पार कराया गया और हम रोमानिया की सीमा में दाखिल हुए। यहां छात्रों के लिए दूतावास के सहयोग से हर तरह की व्यवस्था की गई थी। और फिर हम बूचारेस्ट एयरपोर्ट पहुंच गए, जहां से हवाई जहाज के रास्ते दिल्ली आ पाए। अंश कहते हैं कि हमें भारतीय होने पर बड़ा गर्व महसूस हुआ। जब दो देशों के बीच युद्ध चल रहा हो, तब हर परिस्थिति से मोर्चा लेते हुए अपने छात्रों को सकुशल वापस लाना, बड़ी बात है। मैं भारत सरकार को आॅपरेशन गंगा के लिए दिल से धन्यवाद देना चाहता हूं।
कानों में गूंज रही बमों की आवाज
यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही विदिशा निवासी सृष्टि घर लौट आई हैं। सृष्टि ने यूक्रेन से पोलेंड सीमा में प्रवेश किया था। वहां पर भारत सरकार ने एक फाइव स्टार होटल बुक कर रखा था, जहां भारतीयों के रुकने की नि:शुल्क व्यवस्था थी। सृष्टि को पोलैंड से ही भारत के लिए फ्लाइट मिली। इसके बाद वह वापस आई । सृष्टि कहती हैं कि शुरू में लग रहा था कि दोनों के देशों के बीच उपजी तकरार बड़े युद्ध में नहीं बदलेगी। लेकिन हालात बिगड़ते गए। कभी ऐसा सोचा नहीं था कि इतना भयानक युद्ध होगा जहां शहरों के शहर तबाह कर दिए जाएंगे। हमारे कानों में आज भी बमों की गूंज हैं तो वहीं आंखों के सामने भयावह मंजर है। चारों तरफ धुंआ और बर्बादी की तस्वीरें टीवी और सोशल मीडिया पर देखकर स्वदेश सकुशल वापसी के लिए भगवान से प्रार्थना करते थे। हमने किसी तरह पोलैंड के बॉर्डर को पार किया। इसके बाद उम्मीद जगी कि अब वतन लौट सकूंगी।
तिरंगा बना कवच
उत्तर प्रदेश स्थित एटा जिले के पिलुआ कस्बे के रविराज यादव जकारपट्टिया ओब्लास्ट में इसी यूनिवर्सिटी से मेडिकल की तीसरे वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं। रविराज ने बताया कि खारकीव, कीव आदि शहरों की अपेक्षा जकारपट्टिया के हालात बेहतर थे। हंगरी बॉर्डर तक हम लोग बस के जरिये आसानी से पहुंच गए। इस दौरान रास्ते में कई चेक पोस्ट पर हमारी बस पर लगा तिरंगा देखकर हमें बिना किसी अवरोध के हंगरी बॉर्डर तक जाने दिया गया। इसके बाद दिल्ली में हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद हम लोग उत्तर प्रदेश भवन पहुंचे जहां आराम और भोजन की अच्छी व्यवस्था थी। रविराज ने बताया कि यूक्रेन में तिरंगा सुरक्षा का कवच बना हुआ है। तिरंगे की सुरक्षा में भारत ही नहीं अपितु अन्य देशों के छात्र भी यूक्रेन के पास के देशों के बॉर्डर तक पहुंच रहे हैं।
दूतावास अधिकारियों ने की पूरी मदद
हल्द्वानी (उत्तराखंड) की रहने वाली महक मलिक यूक्रेन के खारकीव शहर में एमबीबीएस की पांचवें वर्ष की छात्रा हैं। महक बताती है कि भारत सरकार ने जब यूक्रेन छोड़ने की एडवाइजरी जारी की, तब से वहां छात्रों में अफरातफरी सी मच गई। विमान कम्पनियों ने इसका फायदा उठाते हुए साठ से नब्बे हजार की टिकट कर दी। हम उसमें भी राजी थे लेकिन उड़ानें ही उतनी नहीं थी। आखिरकार मुंबई की 26 फरवरी की फ्लाइट कंफर्म की गई और 24 से युद्ध शुरू हो गया। खारवीर शहर रूस सीमा के पास था, इसलिए वहां बमबारी भी हो रही थी।
मोर्चे पर तैनात थे केंद्रीय मंत्रीकेंद्र की मोदी सरकार ने यूक्रेन में फंसे छात्रों समेत भारतीयों को बाहर निकालने की प्रक्रिया में समन्वय के लिए चार केंद्रीय मंत्रियों को युद्धग्रस्त देश के पड़ोसी देशों में भेजा। इसमें केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरेन रिजिजू और वीके सिंह शामिल थे। एक तरफ सिंधिया जहां रोमानिया और मोल्दोवा में डटे हुए थे तो वहीं क्रमश: रिजिजू स्लोवाकिया, हरदीप पुरी हंगरी एवं वीके सिंह पोलैंड में मोर्चा संभाले हुए थे। |
महक बताती हैं कि भारत सरकार ने छात्रों को सीमा पर पहुंचने को कहा। खारवीर से सीमा दो सौ किमी दूर थी। हम सुबह ट्रेन से सीमा के पास स्टेशन तक आए, वहां से टैक्सी लेकर पोलैंड सीमा तक आए। यहां पोलैंड के अधिकारियों ने हमें बहुत अच्छे से मदद की, हमें खाना दिया। फिर भारतीय दूतावास के अधिकारियों तक हमें पहुंचाया। पोलैंड में भारत के दूतावास ने हमारी पूरी मदद की और हमारे भारत जाने का सारा प्रबंध नि:शुल्क किया।
महक मलिक कहती है अब आगे हमारी चिंता इस बात की है कि हमारा कोर्स कैसे पूरा होगा? हालांकि हमे यूरोप के देशों की मेडिकल यूनिवर्सिटीज के मेल आ रहे हैं कि आप हमारे यहां आकर कोर्स पूरा कर लें और यहीं अपनी सेवाएं भी दें, लेकिन हमें अभी युद्ध रुकने का इंतजार रहेगा, तभी हम आगे फैसला लेंगे। अभी पीएम मोदी ने भी हमारे जैसे छात्रों के लिए कुछ सोच -विचार किया है। हमें उनसे भी उम्मीदें हैं।
जान जोखिम में डालकर तय किया रास्ता
बांदा जिले के छात्र हेमेंद्र सिंह के सुरक्षित घर पहुंचने पर उसकी मां भावविभोर हो गईं। पूरा परिवार बेटे की सलामती के लिए भारत सरकार का आभार व्यक्त कर रहा था। हेमेंद्र बताते हैं कि वह खारकीव में वीएन कराजिन नेशनल यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं। युद्ध से पहले यूनिवर्सिटी ने मेल पर छात्र-छात्राओं को आगाह कर दिया था कि युद्ध हुआ तो प्रशासन या यूनिवर्सिटी जिम्मेदार नहीं होगी। साथ ही छात्र-छात्राओं को छिपने के स्थान भी बता दिए। 24 फरवरी को बम धमाके
टिप्पणियाँ