जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगे टुकड़े-टुकड़े नारों की घटना के मुख्य आरोपी कन्हैया कुमार ने कांग्रेस में शामिल होते समय कहा था कि एक ‘डूबते हुए जहाज’ में वह इसलिए शामिल हुए हैं ताकि उसे बचा सकें। लेकिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस डूबता हुआ नहीं, बल्कि डूब चुका जहाज है। पंजाब के संदर्भ में यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि इसको डुबाने में किसी और ने नहीं, बल्कि हाईकमान कहे जाने वाले गांधी परिवार ने ही अहम भूमिका निभाई है।
इस बार 92 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी 2017 के विधानसभा चुनाव में भी मजबूत स्थिति में थी। फिर भी कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में 77 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सबको चौंका दिया था। पिछले साल जून तक कांग्रेस अजेय सी लग रही थी। लेकिन चुनाव में औंधे मुंह गिर गई। इसने राज्य की सत्ता एक तरह से आआपा को थाली में परोस कर दे दी। कांग्रेस आज अगर डूबी है तो केवल अपनी नीतियों के कारण।
ये दिग्गज हारे
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अमृतसर पूर्व सीट से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू 6,713 और अकाली दल के बिक्रमजीत सिंह मजीठिया 14,408 वोटों से हार गए।
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पटियाला शहर सीट से कैप्टन अमरिंदर सिंह 19,697 वोटों से हार गए। पंजाब लोक कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला।
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भदौड़ और चमकौर साहिब से मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी क्रमश: 37,220 और 7,833 वोटों से हार गए।
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जलालाबाद सीट से अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल 30,374 वोटों से पराजित हुए।
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लंबी सीट से अजेय माने जाने वाले 94 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल 11,357 वोटों के अंतर से हारे।
कांग्रेस ने अपनी हार की पटकथा 2021 में उस समय लिखनी शुरू कर दी थी, जब पार्टी में तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने की साजिश रची गई। कैप्टन की गलती बस इतनी थी कि जीत के बाद उन्होंने अपना राजनीतिक कद इतना बड़ा कर लिया कि वह गांधी परिवार से ऊंचा दिखने लगा था। यही कारण था कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव को देखते हुए उन्हें हटाकर दलित कार्ड खेला व चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन न तो चन्नी और न ही पार्टी को इसका लाभ मिला। चुनाव में कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान अगर किसी ने पहुंचाया तो वे हैं कैप्टन अमरिंदर और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू। हालांकि चुनाव में कैप्टन हार गए, लेकिन उन्हें नीचा दिखाने वाले सिद्धू और चन्नी भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। खासकर चन्नी, जो दो जगह से मैदान में थे।
चन्नी और सिद्धू के बीच खींचतान के कारण कांग्रेस 18 सीटों पर सिमटी गई है। कैप्टन को रास्ते से हटाने के बाद सिद्धू ने चन्नी को भी नहीं बख्शा। वे लगातार उन पर हमले करते रहे और कांग्रेस इस मुगालते में रही कि चन्नी पर सिद्धू के हमले से आम आदमी के बीच उनकी छवि और मजबूत हो रही है। कांग्रेस तो यह भी तय मान बैठी थी कि दलित होने के नाते चन्नी न केवल दलित वोट बैंक को कांग्रेस के पाले में खींच कर पार्टी की नैया पार लगा देंगे, बल्कि अपनी ‘आम आदमी’ की छवि की बदौलत सिद्धू से भी निपट लेंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। चुनाव में न तो दलित मतदाताओं चन्नी पर भरोसा किया और न ही शहरी मतदाताओं ने कांग्रेस पर। कांग्रेस पर से हिंदुओं का विश्वास तो उसी समय उठ गया था, जब पार्टी ने सुनील जाखड़ की जगह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया। चुनाव के दौरान भी सुनील जाखड़ का यह दर्द छलकता रहा। यही नहीं, चुनाव के दौरान ही वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गए, इसके कारण हिंदू मतदाता कांग्रेस से और दूर हो गए।
कांग्रेस ने एक और गलती की। आशा कुमारी को पंजाब प्रभारी पद से हटाकर हरीश रावत को प्रदेश की कमान सौंप दी। रावत के आते ही कांग्रेस में अंतर्कलह शुरू हो गया। उन्होंने कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देकर सक्रिय राजनीति से दूर चल रहे सिद्धू को हवा दी। इसके बाद सिद्धू ने कैप्टन के खिलाफ ‘ट्वीट युद्ध’ छेड़ दिया। धीरे-धीरे कुछ कैबिनेट मंत्री भी कैप्टन के खिलाफ बगावत पर उतर आए और उन्हें पद से हटाने की मांग करने लगे।
आखिरकार कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। पार्टी हाईकमान को लगा कि कैप्टन से छुटकारा पाने का यह अच्छा समय है, इसलिए उसने पार्टी के भीतर उठते विद्रोह को दबाने की कोशिश नहीं की। इसका भी लोगों के बीच अच्छा संदेश नहीं गया। कैप्टन के जाने के बाद सिद्धू मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी जताने लगे। लेकिन जब उनकी बात नहीं सुनी गई तो उन्होंने नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि वे दर्शनीय घोड़ा नहीं बनेंगे और र्इंट से र्इंट बजा देंगे, तब भी पार्टी ने उन्हें नहीं रोका। आज कांग्रेस चन्नी और सिद्धू की खींचतान का खामियाजा भुगत रही है। इस बीच, कांग्रेस के हरीश चौधरी को प्रदेश का प्रभारी बना दिया। लेकिन वे भी दोनों के बीच की खाई को पाट नहीं सके। हरीश चौधरी हमेशा ही चन्नी के साथ खड़े नजर आए। इस दौरान पार्टी को लगातार संकेत मिल रहे थे कि शहरी वोट बैंक और हिंदू मतदाता कांग्रेस से दूर जा रहा है, लेकिन पार्टी ने आंखें मूंदें रखीं।
पंजाब में मतगणना खत्म भी नहीं हुई कि कांग्रेस सांसद जसबीर डिंपा ने पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी और स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अजय माकन पर हमला बोल दिया। उन्होंने कहा कि पंजाब में कांग्रेस की इस हालत के लिए यही दोनों नेता जिम्मेदार हैं। डिंपा ने दोनों पर टिकट बेचने के आरोप लगाए हैं। साथ ही, कहा कि तीन माह पहले तक कांग्रेस पंजाब में चुनाव जीत रही थी। लेकिन टिकट बंटवारे में हरीश चौधरी और अजय माकन का हस्तक्षेप हुआ और कांग्रेस बर्बाद हो गई। इन लोगों ने नोट अपनी जेब में डाले और विरोधी वोट ले गए।
1997 से भाजपा पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ती आ रही थी। पहली बार भाजपा अकेली 65 सीटों पर चुनाव लड़ी। हालांकि पार्टी ने दो ही सीटें जीतीं, लेकिन वह फायदे में है। 2017 में विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत 5.04 था, जो इस बार 6.60 प्रतिशत हो गया। रहा। इस चुनाव में पार्टी को 10.19 लाख वोट मिले हैं।
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