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उत्तराखंड : तोड़ा रचा इतिहास

by दिनेश मानसेरा
Mar 11, 2022, 05:01 am IST
in भारत, उत्तराखंड
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

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इस बार का विधानसभा चुनाव उलटफेर वाला रहा जिसमें कई दिग्गजों को पराजय का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस ने इस चुनाव से सत्ता में वापसी की उम्मीदें लगा रखी थीं, लेकिन भाजपा की वापसी से न केवल उसके सपने पर वज्रपात हुआ, बल्कि बारी-बारी सत्ता में आने का मिथक भी तोड़ा

 

उत्तराखंड के बारे में कहा जाता था कि यहां बारी-बारी भाजपा और कांग्रेस की ही सरकार बनने की परंपरा रही है। लेकिन इस बार भाजपा ने इस मिथक को तोड़ दिया। भाजपा ने इस बार विधानसभा चुनाव में राज्य की 70 में से 47 सीटों पर जीत दर्ज की। हालांकि पिछली बार के मुकाबले इस चुनाव में उसे 10 सीटों का नुकसान हुआ है। 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 57 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि पिछली बार की तुलना में कांग्रेस को 8 सीटों का फायदा हुआ है, लेकिन सत्ता में आने की उसकी हसरत धरी रह गई। इस बार कांग्रेस की झोली में 19 सीटें आई हैं।  वहीं बसपा और निर्दलीय उम्मीदवार 2-2 सीटें जीतने में सफल रहे। परिणाम आने से पहले तक तमाम राजनीतिक विश्लेषक उत्तराखंड में भाजपा को नुकसान होने की बात कर रहे थे। भाजपा की जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी भूमिका रही। पहाड़ की महिलाओं और पूर्व सैनिकों ने प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा जताते हुए मतदान किया और भाजपा के सिर जीत का सेहरा बांधा। 

 

उलटफेर वाला चुनाव
उत्तराखंड की राजनीति से एक मिथक जुड़ा है, जो इस बार नहीं टूटा। कहा जाता है कि यहां सत्ता में रहते कोई मुख्यमंत्री चुनाव नहीं जीतता। पुष्कर सिंह धामी ऐसे तीसरे मुख्यमंत्री हैं, जो सरकार में रहते हुए चुनाव हार गए। इससे पहले भाजपा के भुवन चंद्र खंडूरी और कांग्रेस के हरीश रावत भी मुख्यमंत्री रहते चुनाव में नहीं जीत पाए थे। इस चुनाव में बड़े उलटफेर हुए। एक ओर मुख्यमंत्री धामी ऊधमसिंह नगर जिले की खटीमा सीट से चुनाव हार गए। उन्हें कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष भुवन कापड़ी ने 6,579 मतों से पराजित किया। उधर कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत नैनीताल की लालकुआं और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल पौड़ी जिले की श्रीनगर सीट से हार गए। रावत को भाजपा के डॉ. मोहन सिंह बिष्ट ने 17,527  मतों के बड़े अंतर से, जबकि गोदियाल 587 वोटों से हारे। इसी तरह, कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद भी हार गए। उन्हें हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत ने पराजित किया। वहीं, पूरे उत्साह के साथ मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली, जबकि बसपा के वोट प्रतिशत में भी कोई बदलाव नहीं आया। बसपा ने हरिद्वार जिले की लक्सर व मंगलौर सीट जीत कर वापसी की है। तो दो निर्दलीय उम्मीदवार उत्तरकाशी जिले की यमुनोत्री व हरिद्वार जिले की खानपुर सीट से विजयी हुए हैं।

रावत की दूसरी बड़ी हार
पार्टी को हरीश रावत की सीट बदलने का नुकसान उठाना पड़ा। पहले हरीश रावत अपनी पारंपरिक सीट हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव लड़ते थे, लेकिन इस बार कांग्रेस ने उन्हें लालकुआं सीट से टिकट दिया जो कुमाऊं मंडल में पड़ता है। हालांकि रावत अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे। लालकुआॅ सीट से कांग्रेस की बागी प्रत्याशी संध्या डालाकोटी मैदान में थीं। माना जा रहा है कि संध्या ने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई, जिसके कारण रावत को हार का मुंह देखना पड़ा। पिछली बार भी वे बड़े अंतर से हारे थे। उधर देहरादून पार्टी कार्यालय पहुंचे धामी ने भाजपा को मिले जनादेश के लिए लोगों का आभार जताया। उन्होंने कहा कि जनता ने मोदी जी पर एक बार फिर से अपना विश्वास प्रकट किया है। वहीं, उत्तराखंड कांग्रेस संचालन समिति के प्रमुख हरीश रावत ने पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि हमारी मेहनत में कमी रह गई। 

पंजाब की तरह उत्तराखंड में भी कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण अंदरूनी खींचतान ही रहा। पार्टी को कई सीटों पर भितरघात का सामना करना पड़ा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेसी नेता पार्टी नहीं, बल्कि अपनी छवि के आधार पर चुनाव लड़ रहे थे। कांग्रेस के विजयी प्रत्याशी अपने प्रयासों से ही विधानसभा तक पहुंचे हैं। सूबे में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने पांच रैलियों को संबोधित किया था। लेकिन पार्टी को इसका खास फायदा नहीं हुआ। 

 
जनादेश के मुद्दे
उत्तराखंड में भाजपा को जो बहुमत मिला है, उसके पीछे कुछ ठोस कारण हैं। इनमें सबसे प्रमुख है, लोगों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा। प्रधानमंत्री ने सूबे में तीन रैलियां की थीं, उसका भी पार्टी को फायदा मिला। इसके अलावा, सूबे में केंद्र द्वारा चलाई जा रही 1.40 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं, केंद्र की दूसरी लाभार्थी योजनाएं, मजबूत उम्मीदवारों का चयन और सोशल मीडिया में प्रचार की सुनियोजित रणनीति का भी इस जीत में महत्वपूर्ण योगदान रहा। पार्टी नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर वोट मांगा। पार्टी के स्टार प्रचारकों ने अपनी जनसभाओं के जरिये राज्य में केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही विकास परियोजनाओं के बारे में लोगों को बताया। प्रधानमंत्री सहित पार्टी के तमाम नेता लोगों तक यह बात पहुंचाने में सफल रहे कि राज्य के विकास के लिए डबल इंजन की सरकार जरूरी है। राज्य में दो मंडल हैं- गढ़वाल और कुमाऊं। गढ़वाल के पहाड़ी इलाके की 21 में से 13 और मैदानी इलाके की 20 सीटों में से 9 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। कुमाऊं मंडल की 29 सीटों में भाजपा को 18 सीटें मिली हैं।     

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