संजीव कुमार
भागलपुर धमाका अपने आप में कई प्रश्नों को समेटे हुए है। पुलिस इसे सामान्य धमाका बता रही है, जबकि बिहार में ऐसे धमाके लगातार हो रहे हैं। इसी प्रकार का धमाका 2005 में हुआ था। 11 वर्ष बाद उसकी सच्चाई सामने आई थी। वास्तव में वह आतंकियों की सोची समझी साजिश थी। यह धमाका जेहादी तत्वों द्वारा भोली भाली महिलाओं को झांसे में लाने की साजिश भी बताता है। जेहादियों द्वारा कैसे जमीन जेहाद किया जा रहा है, इसका जीवंत उदाहरण है यह धमाका।
4 मार्च को हुए भागलपुर धमाके को लेकर भाजपा ने कड़ा रुख अपनाया है। दिसंबर 2021 से भागलपुर में लगातार बम धमाके हो रहे हैं। बिहार भाजपा अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने भागलपुर बम धमाकों की जांच एसआईटी से करने की मांग की है। इस धमाके के पीछे एक बड़ी साजिश की बात कही है। उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि पटाखे के धमाके से 3 मंजिला मकान जमींदोज नहीं हो सकता। यह एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा हो सकता है। बिहार पुलिस के पूर्व महानिदेशक अभयानंद की आशंका भी यही है।
ठीक इसी तरीके से वर्ष 2005 में पटना के खुसरूपुर में बम धमाका हुआ था। 15 सितंबर 2005 को मियां टोली में हकीम मियां के घर हुए धमाके में 27 लोगों की मौत हुई थी। उस समय भी पुलिस ने पटाखा धमाका की बात कही थी लेकिन 11 वर्ष बाद पता चला कि इस धमाके की साजिश बांग्लादेश में रची गई थी। बांग्लादेश के रानी बाजार स्थित स्काई ब्यूटी पार्लर में रोनी ने अपने साथियों के साथ मिलकर इसकी पटकथा लिखी थी। वहीं से उन लोगों ने दिल्ली जाने वाली श्रमजीवी एक्सप्रेस उड़ाने की साजिश रची थी। 28 जुलाई, 2005 को राजगीर से नई दिल्ली जानेवाली श्रमजीवी एक्सप्रेस के जनरल बोगी में हरपालगंज के पास धमाका किया था। उसके कुछ दिन बाद ही इस घर को भी उड़ा दिया गया था। श्रमजीवी एक्सप्रेस में धमाका करने के लिए इसी मकान में विस्फोटक तैयार किए गए थे। इस घटना को अंजाम देने के लिए पश्चिम बंगाल के रास्ते आतंकी ट्रेन से खुसरूपुर आए थे। इस बात का खुलासा स्वयं रोनी उर्फ आलमगीर ने किया था।
वैसे भागलपुर बम धमाके के मुख्य अभियुक्त मो. आजाद ने पुलिस को चकमा देते हुए 7 मार्च के शाम को कोर्ट में सरेंडर कर दिया। मो. आजाद की गिरफ्तारी के लिए पुलिस लगातार उस पर दबाव बना रही है। बढ़ते दबाव के कारण उसने पुलिस को चकमा देते हुए कोर्ट में सरेंडर किया। जिले के वरीय पुलिस अधीक्षक बाबू राम आरोपी को रिमांड पर लेकर पूछताछ करने की बात कर रहे हैं। उन्होंने रिमांड के लिए कोर्ट में अर्जी देने का निर्देश तातारपुर पुलिस को दिया भी है। मो. आजाद का चरित्र बड़ा संदिग्ध रहा है। वह हबीबपुर के अज्जमचक का रहने वाला है। लेकिन, काजवलीचक स्थित घर के आगे गेट-ग्रिल की दुकान चलाता था। इस मकान में ही विस्फोट हुआ था। यह मकान उसने लीलावती के ससुर रघु मंडल से 2002 में खरीदा था।
लीलावती और मो. आजाद के रिश्ते को स्थानीय स्तर पर संदिग्ध बताया जाता था। तथाकथित पटाखा बनाने के कार्य का जिम्मा लीलावती के ऊपर था। लेकिन, इस पूरे कांड का सरगना मो. आजाद था। लीलावती की इलाके में बड़ी धमक थी। उसके पति की मौत 25 वर्ष पूर्व संदिग्ध परिस्थिति में हुई थी। 1997 में पति की मौत के बाद मो आजाद से उसकी नजदीकी और बढ़ गई। मुहल्ले में घूम घूम कर कोयला बेचने वाली अनपढ़ लीलावती का प्रभुत्व बढ़ने लगा। उसके दबाव में उसके ससुर रघु मंडल को यह मकान मो आजाद को बेचना पड़ा था। मकान भले बिक गया, लेकिन लीलावती का आशियाना आजाद ने वहीं रहने दिया। मो. आजाद लीलावती के माध्यम से विस्फोटक या पटाखा का कारोबार करता था। ऐसा बताया जाता है कि कोयला बेचने वाली लीलावती को मो आजाद ही इस धंधे में लाया था। पिछले 20 वर्षों से पटाखा का कारोबार संभालने वाली लीलावती का वार्षिक टर्न ओवर लाखों में था। अपने बढ़ते व्यवसाय को संभालने के लिए उसने बड़ी बेटी को पति से अलग करवाकर अपने साथ रखने लगी। उसके प्रत्येक व्यक्तिगत निर्णय में मो आजाद की अहम भूमिका होती थी। 4 मार्च को हुए विस्फोट में लीलावती समेत 14 लोगों की मौत हो गई। इस धमाके में न सिर्फ लीलावती मरी बल्कि उसकी दोनों बेटियां आरती व पिंकी तथा दो नाती प्रियांशु और अयांश की भी मौत हो गई। रात को 11:30 बजे हुए इस जबर्दस्त बम धमाके में चार मकान जमींदोज हो गये थे। 5 मार्च की सुबह तीन जेसीबी मशीन से मलबा उठाकर वहां दबे लोगों की तलाश की गई थी।
इस घर में पहले भी बम धमाके हुए हैं। 2008 में हुए विस्फोट में तीन लोगों की मौत हुई थी। उस समय भी पुलिस ने केस दर्ज किया था। लेकिन, पुलिस कुछ खास हासिल नहीं कर पायी। तातारपुर ही 1989 के बहुचर्चित दंगों का केन्द्र बिंदु था। 24 अक्टूबर, 1989 को दिन के 12 बजे भागलपुर के ही पार्वती इलाके से शिलापूजन का जुलूस शुरू हुआ था। जुलूस जब तातारपुर की ओर बढ़ रहा था तो उसे मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण रोक देना पड़ा। उस समय पुलिस ने जुलूस का नेतृत्व कर रहे लोगों से कहा था कि तातारपुर वाले अड़े हुए हैं। वे चैक के बाद जुलूस को नहीं जाने देंगे। जुलूस पर तातारपुर में ही बम से धमाके हुए थे। पुलिस पर जो बम फेंका गया, वह पटाखा बम था। इन पटाखों से धुंए का गुब्बार बना था, जिसमें जिले के पुलिस अधीक्षक और जिलाधिकारी समेत सबको भागकर अपनी जान बचानी पड़ी थी।
वैसे भी भागलपुर में अक्सर बम धमाके की खबर आती रहती है। तीन महीने पहले दिसंबर, 2021 में नाथनगर का इलाका सीरियल ब्लास्ट से दहल उठा था। 9 दिसंबर से 13 दिसंबर तक नाथनगर में बम धमाके हुए थे। 9 दिसंबर, 11 दिसंबर और 13 दिसंबर को हुए बम धमाके हुए एक अधेड़ और एक बच्चे की मौत हो गई थी। पुलिस को कई टिफिन बम डिफ्यूज करने पड़े थे। इस मामले में कुख्यात चांद मियां नामजद अभियुक्त हुआ था। घटना के लगभग दो माह बाद उसने कोर्ट में सरेंडर किया था। इसके कुछ दिन पहले ही 6 दिसंबर, 2021 को देर रात कोचिंग संचालक जीत सिंह राणा पर बदमाशों ने बम से हमला किया था। इस मामले में आज तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी। 17 फरवरी, 2021 को भी नाथनगर स्टेशन के प्लेटफॉम संख्या-2 पर डेटोनेटर बम बरामद हुआ था। इस मामले में भी अब तक पुलिस के हाथ खाली हैं।
जिस प्रकार का धमाका दरभंगा में हुआ। वैसा धमाका पिछले कुछ दिनों से बिहार के अलग-अलग हिस्सों में हो रहा है। पिछले साल बांका के नवटोलिया मदरसा में जबर्दस्त बम धमाका हुआ था। जिसमें मदरसा पूरी तरह जमींदोज हो गया। उसके कुछ दिन पहले ही दरभंगा में भी बम विस्फोट हुआ था। इस विस्फोट में भी कई मकान पूरी तरह से तहस-नहस हो गये थे। दिन के समय हुए इस धमाके के कारण आस-पास के घरों के खिड़की के शीशे तक टूट गये थे। बिहार के हालात पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार देवेन्द्र मिश्र बिहार के स्थिति को बारूद के ढेर पर बताते हैं। बिहार जिहादी तत्वों के लिए प्रयोग भूमि बन गया है। तमाम तरह के प्रयोग जिहादी तत्व कर रहे हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार बिहार में पांच हजार से अधिक स्लीपर सेल बनाने का लक्ष्य जिहादियों ने रखा है। ऐसे में पुलिस की प्राथमिकता इन जिहादी तत्वों से कारगर तरीके से निपटने में होनी चाहिए।
टिप्पणियाँ