चिकित्सा जगत की वैश्विक पत्रिका 'लैंसेट' ने एक बार फिर से भारत को नीचा दिखाने का काम किया है। हाल ही में उसमें प्रकाशित एक रपट में दावा किया गया है कि कोरोना के कारण भारत में 19,00,000 बच्चों के माता, पिता या दोनों का निधन हुआ है। यानी पत्रिका का कहना है कि कोरोना के कारण भारत में 19,00,000 बच्चे अनाथ हुए। पत्रिका के इस दावे को भारत सरकार ने देश में दहशत पैदा करने की एक शातिराना चाल बताया है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा है कि पत्रिका की रपट पूरी तरह से असत्य और आधारहीन है। उनका यह भी कहना था कि कुछ एजेंसियां गलत मंशा से काम करके भारत को बदनाम करना चाहती हैं। इसके साथ ही केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा है कि 15 फरवरी तक ऐसे बच्चों की संख्या 1,53,827 थी, जिनके माता या पिता अथवा प्राथमिक देखभालकर्ता का निधन हो गया है या उन्हें छोड़ दिया गया है या वे अनाथ हो गए हैं।
मंत्रालय के सचिव इंदेवर पांडे ने बताया कि कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों की संख्या की पूरी जानकारी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के बाल स्वराज पोर्टल पर उपलब्ध है। यह जानकारी जिलाधिकारियों द्वारा उपलब्ध आंकड़ों और सर्वोच्च न्यायालय में राज्य सरकारों द्वारा दिए गए शपथपत्र पर आधारित है। पांडे ने यह भी बताया कि 1,53,827 बच्चों में से 1,42,949 बच्चों के माता या पिता में से किसी एक की जान गई है, जबकि 10,386 बच्चों के माता और पिता दोनों का निधन हुआ है। वहीं छोड़ दिए गए बच्चों की संख्या 492 है।
अब सवाल उठता है कि आखिर लैंसेट ने किस आधार पर 19,00,000 बच्चों के अनाथ होने की बात कही है! इसका उत्तर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो से मिला! उन्होंने कहा कि लैंसेट की मानसिकता ही भारत विरोध की है और इसलिए भारत को बदनाम करने के लिए तथ्यों को जांचे बिना रपट प्रकाशित की है। उन्होंने यह भी बताया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने लैंसेट को पत्र लिखकर पूछा है कि उसने किस आधार पर यह रपट प्रकाशित की है! लेकिन 10 दिन बीतने के बावजूद उसने कोई उत्तर नहीं दिया है। इसका अर्थ तो यही निकल रहा है कि उसने सच में तथ्यों की खंगाल नहीं की है।
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