युद्धग्रस्त यूक्रेन में मौत के मुंह से सकुशल अपने घर आकर भारतीय छात्र-छात्राओं को ऐसा लग रहा है, जैसे वे कोई जंग जीत कर आए हैं। इनमें पंजाब की तनुश्री भी हैं, जो गुरुवार को अपने घर लौटीं। लुधियाना के गांव बल्लोवाल की रहने वाली 21 वर्षीया तनुश्री यूक्रेन की ट्रानोपॉल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस तृतीय वर्ष की छात्रा हैं। तनुश्री ने बताया कि कीव पर हमले के बारे में पता चलते ही वह कुछ दोस्तों के साथ वहां से बस से निकलने की कोशिश की, लेकिन चालक ने रास्ते में ही बस से उतार दिया। इसके कारण उन्हें काफी पैदल चलना पड़ा। तनुश्री बताती हैं कि हालात इतने खराब थे कि यूक्रेन में कोई भी मदद करने को तैयार नहीं था।
रोंगटे खड़े कर देने वाली बताई दास्तां
लुधियाना पहुंचने पर तनुश्री ने सबसे पहले अपने पिता से वीडियो कॉल पर बात की, जो बेटी की चिंता में 7 दिन से सो नहीं पाए थे। उनके पिता सेना में नायब सूबेदार हैं और हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति में तैनात हैं। तनुश्री के लिए 7 दिन उसकी जिंदगी के सबसे भयानक दिन थे, जिसे वह कभी भूल नहीं पाएगी। उसने कहा, ‘‘मैं घर तो पहुंच गई हूं, लेकिन उन पलों के बारे में सोचकर आज भी रूह कांप उठती है। बीते 23 फरवरी तक सब कुछ सामान्य था। लेकिन 24 फरवरी के बाद सब कुछ एकदम से बदल गया। चारों ओर अफरा-तफरी मच गई। हमें कॉलेज के हॉस्टल के बंकर में भेज दिया गया। वहां से गोलाबारी और धमाकों की आवाजें सुनाई देती थीं। छोटे से बंकर में 500 से 800 विद्यार्थियों को जानवरों की तरह ठूंस दिया गया था। वहां बैठने के लिए भी बड़ी मुश्किल से जगह मिल रही थी। जैसे-तैसे हमने रात और दिन गुजारे। अगले दिन हमने तय किया कि बंकर में छुप कर बैठने की जगह दूसरे देशों के बॉर्डर तक पहुंचने की कोशिश करेंगे। इसके बाद करीब 60 छात्रों ने 100-100 डॉलर इकट्ठा कर बॉर्डर तक जाने के लिए बस बुक कराई। पोलैंड का बॉर्डर पास था। 25 फरवरी की रात को हम बस से निकले, लेकिन 26 की सुबह बस चालक ने हमें बॉर्डर से 50 किलोमीटर पीछे ही उतार दिया। तापमान -2 डिग्री सेल्सियस था और ऊपर से अफ्रीकी लड़के-लड़कियां हमें परेशान कर रहे थे। हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था। इसलिए पैदल ही बॉर्डर की ओर चल पड़े। पास में न तो कुछ खाने के लिए था, न ही पीने व ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े। हमने स्थानीय लोगों से बॉर्डर तक जाने के लिए मदद मांगी, लेकिन कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया।’’
यूक्रेन के सैनिकों ने बंदूक तानी
तनुश्री आगे बताती हैं, ‘‘आखिरकार शाम 5:00 बजे हम मैदुका बॉर्डर से पहले यूक्रेन के चेकप्वाइंट पर पहुंचे। वहां से सेना ने बॉर्डर पार नहीं करने दिया तो सभी सड़क पर ही बैठ गए। ठंड के कारण हमारी हालत काफी खराब होने लगी थी। पूरी रात हमने वहीं बैठे-बैठे गुजारी। यूक्रेन के सैनिकों ने हमें सोने भी नहीं दिया। गुस्से में जब कुछ छात्र चिल्लाने लगे तो सैनिकों ने उन पर बंदूक तान दी और हवा में फायर की। तब हम समझ गए कि यूक्रेन के सैनिक हमें जल्दी जाने नहीं देंगे। हमारी उम्मीद दम तोड़ने लगी थी। उधर, कुछ छात्रों ने वापस जाने के लिए कैब बुक करा ली थी। इसी के बीच हमें मोबाइल पर सूचना मिली कि बॉर्डर खुल गया है और 50-50 के समूह में सभी को जाने दिया जाएगा। 2 किलोमीटर आगे तक हमें एक पंक्ति में खड़ा रखा गया। इस दौरान हमें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 27 फरवरी की रात हमने आव्रजन कार्यालय के बाहर बैठकर गुजारी। वहां भी नशे में धुत स्थानीय युवकों ने हमारे साथ बुरा बर्ताव किया। 28 फरवरी की सुबह हमें पोलैंड में प्रवेश करने दिया गया। इस दौरान भारतीय लड़कों ने हमारी मदद की, लेकिन यूक्रेन के सैनिकों का उनके प्रति भी बहुत सख्त रवैया रहा। पोलैंड के प्रवेश नाके पर हमें वीजा की जरूरत ही नहीं पड़ी। भारतीय अधिकारियों के कहने पर मोहर लगाकर जाने दिया गया। वहां से हम भारतीय दूतावास पहुंचे, जहां से हमें बस से एक होटल में ले जाया गया। वहां सभी का इलाज कराया गया।’’
सरकार से अपील, एमबीबीएस की पढ़ाई सस्तीे हो
तनुश्री ने बताया कि भारत में एमबीबीएस की पढ़ाई बहुत महंगी है। यूक्रेन के हालात चाहे जैसे भी हों, हमें बाकी की पढ़ाई वहीं करनी होगी, क्योंकि हमने बहुत सारा पैसा खर्च करके 3 साल तक की पढ़ाई पूरी की है। तनुश्री की बुआ ने कहा कि हमें उम्मीद नहीं थी कि बच्ची सही सलामत घर लौट आएगी। हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है कि हम अपने देश में उसे मेडिकल की पढ़ाई करा सकें। हमारी भारत सरकार से अपील की है कि मेडिकल की पढ़ाई सस्ती की जाए ताकि हमारे बच्चों को कहीं और नहीं जाना पड़े।
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