भारत के स्वतंत्र होने के साथ ही उसे पाकिस्तान के रूप में एक नया पड़ोसी शत्रु देश मिला। ठीक उसी समय चीन में कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी सेना सत्ता पर कब्जा करने के लिए संघर्षरत थी। इसमें वह 1949 में सफल भी हो गई और भारत के पड़ोस में एक नए कम्युनिस्ट शासन का उदय हुआ। जहां एक ओर पाकिस्तान का भारत के प्रति रवैया हमेशा से शत्रुतापूर्ण रहा, वहीं दूसरी ओर साम्राज्यवाद के विरोध के नाम पर सत्ता में आए कम्युनिस्ट शासन के अधीन चीन ने स्वयं ही प्रबल साम्राज्यवादी रवैया अपनाना शुरू कर दिया। इसके दुष्प्रभाव का सामना भारत को भी करना पड़ा।
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई के बीच पंचशील समझौता संदेह के वातावरण की पृष्ठभूमि में ही हुआ। लेकिन इसके तत्काल बाद ही यह बिखरने लगा और उसके बाद से लगातार भारत और चीन के संबंधों में दरारें आने लगीं और तिब्बत के मसले को लेकर चीन के आक्रामक रुख ने भारत को चिंतित कर दिया। अंतत: 1962 में भारत और चीन में हुए युद्ध ने इस स्थिति को स्पष्ट कर दिया कि चीन के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध संभव ही नहीं है।
इस बीच भारत के दोनों शत्रुओं ने अपने समान प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध गठबंधन करना शुरू किया, ताकि कहीं अधिक कुशलता और बल के साथ भारत को चुनौती दी जा सके। 1963 में चीन और पाकिस्तान ने आपस में एक संधि कर ली जो एक तरह से भारत के विरुद्ध ही थी। और भारत के एक क्षेत्र ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट, जिसे शक्सगाम घाटी भी कहा जाता है, और जिसे पाकिस्तान ने अवैध रूप से हस्तगत कर रखा था, को उसने चीन को दे दिया।
पाकिस्तान को चीन से शस्त्र आपूर्ति
एक तरफ जहां पाकिस्तान अमेरिका के नेतृत्व वाले गुट, जो कि कम्युनिस्ट खेमे के विरुद्ध था, में सक्रिय रूप से शामिल था, वहीं दूसरी ओर उसे कम्युनिस्ट चीन से सहायता लेने में कोई भी गुरेज नहीं था। इस प्रकार दोनों की मित्रता का प्रारंभ हुआ जो वर्तमान समय तक चली आ रही है। वर्तमान में चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा सामरिक सहयोगी बनकर सामने आया है। चीन उसे लगातार कई प्रकार के शस्त्रास्त्रों की आपूर्ति कर रहा है, जो कि इस क्षेत्र में शांति व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है।
वर्तमान में पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति इतनी ज्यादा बिगड़ चुकी है कि वह अपने ऋणों की अदायगी में असमर्थ हो चुका है। वह सऊदी अरब जैसे कुछ देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा उपलब्ध संसाधनों के जरिए अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की नाकाम कोशिशों में लगा हुआ है
खबर है कि चीन जल्दी ही पाकिस्तान को 25 जे-10सी लड़ाकू विमानों की आपूर्ति करने जा रहा है। एक चीनी सैन्य प्रकाशन के अनुसार, इस लड़ाकू विमान की पहली खेप का परीक्षण इसके निर्माता चेंगदू एयरोस्पेस कॉपोर्रेशन के चेंगदू स्थित एयर बेस में किया जा रहा है। पाकिस्तान वायु सेना के पायलटों और तकनीशियनों के विमान संबंधी प्रशिक्षण पूर्ण करने के बाद ये विमान पाक वायु सेना को हस्तांतरित कर दिए जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि भारत द्वारा राफेल विमानों का अधिग्रहण करने के बाद पाकिस्तान द्वारा इसे बड़े सामरिक असंतुलन के रूप में देखा जा रहा था जो उसने जे 10सी विमानों के अधिग्रहण के द्वारा पूरा करने की कोशिश की है। पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख अहमद राशिद ने दिसंबर 2021 में जे-10 सी समझौते का खुलासा करते हुए कहा भी था, ‘‘यह भारत के राफेल के विरुद्ध हमारी प्रतिक्रिया है।’’
यह सर्वज्ञात ही है कि पाकिस्तान और चीन के बीच लंबे समय से घनिष्ठ संबंध रहे हैं। पाकिस्तान ऐसा तीसरा गैर-कम्युनिस्ट देश था, जिसने गठन के तीन महीने बाद ही पीपुल्स रिपब्लिक आॅफ चाइना को मान्यता दी। 1960 के दशक के बाद से यह सहयोग और भी मजबूत हुआ, जब चीन पाकिस्तान के लिए हथियारों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया और दोनों देशों ने अपने पहले औपचारिक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए। सैन्य आयात के लिए चीन पर पाकिस्तान की निर्भरता पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) के आर्म्स ट्रांसफर डेटाबेस के अनुसार, 2010 से पूर्व के दशक के आंकड़ों की तुलना में 2010 और 2020 के बीच चीन से पाकिस्तान के हथियारों का आयात दुगुने से भी अधिक हो गया है। चीन अब पाकिस्तान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार भी है। आॅब्जर्वेटरी आॅफ इकोनॉमिक कॉम्प्लेक्सिटी के आंकड़ों के अनुसार, 2009 और 2019 के बीच, पाकिस्तान से चीन को निर्यात में 87 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि आयात में 183 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
एसआईपीआरआई के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में चीन ने स्वयं को हथियारों के सबसे बड़े आयातक से हथियारों के बड़े वैश्विक निर्यातक के रूप में स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है। चीन ने हाल के वर्षों में अपनी सैन्य उत्पादन क्षमताओं का विस्तार किया है, और 2017 में वह अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक बन गया है। 2015 से 2019 तक चीन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार उत्पादक देश था और इस क्षेत्र में वह रूस को पीछे छोड़ चुका है। इस तीव्र वृद्धि का एक बड़ा कारण है चीन का विशाल रक्षा बजट। पिछले 26 वर्ष से चीन के सैन्य बजट आवंटन में लगातार भारी वृद्धि हुई है, जो किसी अन्य देश में नहीं देखी गई। चीन का सैन्य खर्च 2020 में अनुमानित 252 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 1.9 प्रतिशत अधिक है।
चीन ने पाकिस्तान को बनाया 'प्रॉक्सी'
सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ सामरिक संबंधों और भारत के साथ इन दोनों देशों की विरोधी भावना के कारण चीन इसे गैर-पारंपरिक युद्ध प्रशिक्षण और इस तरह के उन्नत उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करा सकता है। परंतु चीन के हथियार निर्यात के दुष्प्रभाव को केवल भारत पर ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया और कई मामलों में विश्व भर में देखा जा सकता है। क्योंकि अब चीन, पाकिस्तान के रक्षा उद्योगों को चीनी हथियारों की आपूर्ति का माध्यम बनाता जा रहा है और इसका एक बड़ा हिस्सा उन देशों को जाता है जहां लोकतंत्र की अनुपस्थिति है और अगर है भी तो अत्यंत बुरी स्थिति में है। एसआईपीआरआई की रिपोर्ट के अनुसार, 2019-20 के दौरान चीनी हथियारों के निर्यात का वैश्विक निर्यात में कुल हिस्सा 5.5 से घटकर 5.2 प्रतिशत रह गया। पर यह चीन की रणनीति का एक हिस्सा है, जिसमें वह कुछ ऐसे देशों को जहां वह सीधे तौर पर हथियारों का निर्यात नहीं करना चाहता, पाकिस्तान को सामने कर देता है। जैसे उदाहरण के तौर पर म्यांमार की में चीन विरोधी भावना की व्यापकता को देखते हुए, चीन म्यांमार सेना को अपनी सहायता जारी रखने के लिए पाकिस्तान को एक ‘प्रॉक्सी’ के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
वर्तमान में पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति इतनी ज्यादा बिगड़ चुकी है कि वह अपने ऋणों की अदायगी में असमर्थ हो चुका है। सऊदी अरब जैसे कुछ देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा उपलब्ध संसाधनों के जरिए वह अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की नाकाम कोशिशों में लगा हुआ है। उसकी 50 प्रतिशत से अधिक आबादी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है, क्योंकि उसके पास जीवन जीने के लिए आवश्यक संसाधनों का नितांत अभाव हो चुका है। इस स्थिति में भी पाकिस्तान आतंकी संगठनों को संसाधन मुहैया करा रहा है और लगातार सेना के लिए नए हथियार खरीद रहा है। वास्तव में चीन के ऋण के दुष्चक्र में पाकिस्तान इतना फंस चुका है कि उसकी संप्रभुता अब चीन के हाथों में आ चुकी है। जैसा कि बिस्मार्क कहा करता था कि प्रत्येक राजनीतिक गठबंधन में कभी भी दो समान प्रतिभागी नहीं होते, बल्कि एक घोड़ा और दूसरा सवार होता है। यह कथन वर्तमान अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कितना उपयुक्त है, यह तो विश्लेषण का विषय है, परंतु पाकिस्तान और चीन के गठबंधन पर बिल्कुल उपयुक्त सिद्धहोता है।
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