पूनम नेगी
देवाधिदेव शिव की महिमा अनंत है। वे महाकाल हैं। सृष्टि प्रक्रिया का आदिस्रोत हैं। शास्त्रीय कथानक है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, परंतु जब सृष्टि का विस्तार संभव न हुआ तब उन्होंने विष्णु जी के कहने पर शिव का ध्यान किया। शिव अर्द्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए और अपने शरीर के आधे भाग से एक स्त्री शक्ति को प्रकट किया जिन्हें मूल प्रकृति कहा गया और उनके सहयोग से ब्रह्मा ने सृष्टि का विस्तार किया। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव की इस विराट दिव्यता का महापर्व है। इस दिन सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा आराधना करने वाले पर देवाधिदेव महाकाल की असीम कृपा बरसती है।
ईशान संहिता के अनुसार महाशिवरात्रि को ही दिव्य ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। शिव पुराण में महाशिवरात्रि को शिव पार्वती के विवाह की रात्रि भी माना जाता है। इसीलिए इस पर्व पर प्रकृति एवं पुरुष के मिलन का उत्सव मनाया जाता है। यह मान्यता भी है कि इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव ने तांडव नृत्य करते हुए अपनी तीसरे नेत्र से सृष्टि का संहार किया था। इसलिए इस रात्रि को कालरात्रि भी कहा जाता है। शास्त्र कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन महादेव की चेतना उनके सभी द्वादश ज्योतिर्लिंगों में चारों पहर रहती है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय बाहर निकले कालकूट विष को जिस दिन भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था, वह तिथि भी महाशिवरात्रि की ही थी।
महाशिवरात्रि पर्व की महत्ता दर्शाने वाला एक रुचिकर प्रसंग शिवपुराण में वर्णित है। एक बार ब्रह्मा जी एवं विष्णु जी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालन कर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। जब वह विवाद अपने चरम पर जा पहुंचा तो अचानक वहां एक विराट ज्योतिर्मय लिंग अपनी संपूर्ण भव्यता के साथ प्रकट हुआ। उसका कोई और छोर दिखाई नहीं दे रहा था। तब आपसी सहमति से तय किया गया कि जो इस महान ज्योतिर्लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की जानकारी प्राप्त करने के लिए निकल पड़े। बहुत लंबे समय तक विष्णु जी कुछ भी खोज पाने में असमर्थ रहे और लौट आए। ब्रह्मा जी भी इस कार्य में सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने कहा कि वह छोर तक पहुंच गये और साक्षी के रूप में उन्होंने मार्ग से केतकी के फूलों को साथ ले लिया। तब ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहां प्रकट हुए। उन्होंने असत्य बोलने पर ब्रह्मा जी की आलोचना की और केतकी पुष्प को झूठी साक्षी देने के लिए दंडित करते हुए कहा कि यह पुष्प मेरी पूजा में प्रयुक्त नहीं होगा। तब दोनों प्रमुख देवों को अपनी भूल का भान हुआ और उन्होंने क्षमा मांगते हुए महादेव की स्तुति की। कहते हैं कि तभी से शिवलिंग की पूजा के साथ महाशिवरात्रि का पर्व प्रारंभ माना जाता है।
भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के मध्य का एक संवाद भी इस पर्व की महत्ता को दर्शाता है। एक बार माता पार्वती ने भोलेनाथ से पूछा- भगवन! मेरी यह जानने की जिज्ञासा है कि किस साधना, पूजा या व्रत से आप सबसे अधिक प्रसन्न होते हैं? तब महादेव ने कहा- फाल्गुने कृष्ण पक्ष की अंधकारमयी रात्रि को जो उपवास करता है, वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है। तात्विक विवेचन कहता है कि शिव का अर्थ है कल्याण। शिव सबका कल्याण करने वाले महादेव हैं। एकमात्र शिव ही ऐसे देवता हैं, जो सुर और असुर दोनों ही द्वारा समान श्रद्धाभाव से पूजे जाते हैं। उनके डमरू का नाद ब्रह्मांड का स्वर है। उनका त्रिशूल तीनों शूलों ( दैहिक, दैविक और भौतिक) का शमन करता है। परमार्थ के इस महानतम देवता का यह पर्व हमें अपने जीवन में देवाधिदेव की मंगलकारी शिक्षाओं को उतारने व आत्म चेतना को पुनर्जाग्रत करने की प्रेरणा देता है। शिव तत्व जितना गूढ़ है उतनी ही प्रेरणाप्रद हैं उनसे जुड़ी शिक्षाएं। शिव शरीर पर मसानों की भस्म रमाकर काया की नश्वरता की प्रेरणा देते हैं। देवाधिदेव के मस्तक पर सुशोभित चंद्रमा सीख देता है जीवन में कितनी भी बड़ी समस्या क्यों न आ जाए, दिमाग हमेशा शांत ही रखना चाहिए। इसी तरह सिर से गंगा को धारण करने का तत्वदर्शन यह है कि मस्तिष्क में ज्ञान की गंगोत्तरी तभी प्रवाहित हो सकती है जब साधक में शिवत्व का विकास हो। शिव का तीसरा नेत्र विवेक बुद्धि का स्रोत है जो हमें विपरीत परिस्थिति में सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है। भगवान शिव नाग को गले में धारण कर ये संदेश देते हैं कि जीवन चक्र में हर प्राणी का अपना विशेष योगदान है। शिव की आराधना हमें प्रकृति को पूजना और सहेजना सिखाती है। तीन पत्तों वाला अखंडित बिल्व पत्र शिव पूजन में चढ़ाने का तत्वदर्शन यह है कि बिल्व पत्र के ये तीन पत्ते धर्म, अर्थ व काम इन तीन पुरुषार्थों के प्रतीक हैं। जब आप ये तीनों पुरुषार्थ शिव को समर्पित कर देते हैं तो चौथा पुरुषार्थ यानी मोक्ष अपने आप ही प्राप्त हो जाता है।
महाशिवरात्रि पर्व पर चहुंओर गूंजने वाले हर हर महादेव! जय शिव शम्भो! बम बम भोले! के जयघोष हमारी अन्तस चेतना जाग्रत कर हमें आत्मचिन्तन एवं आत्म निरीक्षण को प्रेरित करते हैं। यह पर्व अंतस में शिवत्व को जागृत करने का सर्वाधिक फलदायी अवसर माना जाता है। महाशिवरात्रि का पावन दिन सभी कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर और विवाहित महिलाओं को अखंड सुहाग का वरदान दिलाने वाला सुअवसर प्रदान करता है। इस पर्व पर रुद्राक्ष की माला से ॐ नमः शिवाय’ और महामृत्युन्जय मंत्र का जप तथा देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों पर जलाभिषेक अति शुभ फलदायक माना जाता है।
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