दिलीप धारूरकर
एक मराठी दैनिक पत्रिका के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का साक्षात्कार संपादक गिरीश कुबेर ने किया। इस संवाद में उद्धव ठाकरे ने जो बातें कहीं उन्हें जोरशोर से मराठी हिंदी न्यूज चैनेल ने प्रसारित किया। इस संवाद में न तो शिवसेना की कोई भूमिका सामने आयी न तो महाराष्ट्र सरकार का कोई दृष्टिकोण लोगों के सामने आया। महाराष्ट्र सरकार के कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक को दाऊद से सम्बंधित जमीन के कारोबार के चलते गिरफ्तार किया गया, लेकिन इस विषय पर उद्धव ने चुप्पी साध ली। पूछे गए प्रश्न को घसीट कर भाजपा की आलोचना करने की ओर लेकर जा रहे थे उद्धव ठाकरे। मलिक के विषय से ध्यान बटाने हेतु यह कवायद थी क्या और कोई मकसद ?
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में शिवसेना -भाजपा गठबंधन तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्त्व मे लड़े थे। 288 में से 159 विधायक चुन कर जनता ने गठबंधन को स्पष्ट बहुमत दिया था। लेकिन उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनना था। इसलिए शिवसेना ने गठबंधन तोड़ा और कांग्रेस, एनसीपी के साथ महा विकास आघाडी कर सत्ता हाथ में ली। यह जनादेश का अपमान था। हिंदुत्त्व का पुरजोर समर्थन करने का दावा करने वाली शिवसेना हिंदुत्व के घोर विरोधी कांग्रेस, एनसीपी के बगल में बैठ गयी। अब शिवसेना को डर है कि हिंदुत्व कारण शिवसेना को चाहने वाला मतदाता उन्हें आनेेवाले हर चुनाव में नकारेगा। शिवसेना को जनता के सामने जाने के लिए कहने लायक कुछ नहीं है। पिछले दो साल के उद्धव ठाकरे की सरकार ने लोगों को केवल दर्द दिया है। कोरोना का कुप्रबंधन, मदद से वंचित किसान, घोटाले और वसूली के आरोप इसके अलावा सरकार के पास कुछ नहीं है। सरकार के गृहमंत्री वसूलीकांड में जेल में बंद हैं, दूसरे एक मंत्री को एक युवती की आत्महत्या के कारण पद छोडना पड़ा, इतना कम था कि नवाब मलिक का दाऊद का कांड सामने आया है।
जैसे-जैसे महानगर निगम के चुनाव नजदीक आ रहें हैं शिवसेना मे बेचैनी बढ़ रही है। शिवसेना के लिए मुंबई महानगर निगम महत्त्वपूर्ण है। पिछले 25 साल से मुंबई पर शिवसेना का राज है। मुंबई महानगर निगम का बजट किसी छोटे राज्य से भी बड़ा रहता है। शिवसेना के प्राण इस मुंबई महानगर निगम में बसते हैं, ऐसा कहा जाता है। मुंबई नगरनिगम के पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने लगभग शिवसेना जितने ही पार्षद जीते थे। उसके पश्चात हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मुंबई में शिवसेना को पीछे छोड़ दिया था। मराठी अस्मिता की बात करने वाली शिवसेना को मुंबई का अमराठी मतदाता दूर रखता है। मराठी मतदाता में जो हिंदुत्ववादी मतदाता है वह कांग्रेस के साथ जाने पर शिवसेना पर नाराज है। इस मतदाता को फिर से जीतने का शिवसेना का प्रयास है। इस प्रयास की शुरूआत उद्धव ठाकरे का यह साक्षात्कार था जिसमें भाजपा से गठबंधन तोड़ने का घुमा-फिराकर समर्थन करने का प्रयास उन्होंने किया। केंद्र सरकार, नरेंद्र मोदी और राज्य में नेता प्रतिपक्ष देवेन्द्र फडणवीस इनकी आलोचना की तो हिंदुत्ववादी मतदाता शिवसेना के नजदीक कैसे जाएगा इसका कोई तर्क शिवसेना के पास नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी ने मुंबई के अमराठी मतदाता में अच्छा संगठन किया है। मराठी मतदाता को भी साथ जोड़ा है। राज ठाकरे और भाजपा में तालमेल बिठाने के लिए चर्चा चल रही है। इन सब प्रयासों के कारण शिवसेना बौखला गयी है। उद्धव ठाकरे के साक्षात्कार में अपनी उपलब्धियां गिनने की जगह दो साल पहले भाजपा से गठबंधन क्यों तोड़ा इसका स्पष्टीकरण ज्यादा आता है। भाजपा पर आलोचना करने से हिंदुत्ववादी मतदाता शिवसेना का साथ देगा ऐसा मानकर भाजपा की आलोचना करते आ रहें हैं शिवसेना के नेता। समाचार पत्र के कार्यक्रम में अभिव्यक्ति, मीडिया, सरकार की उपलब्धियां जैसे विषय छोड़ कर उद्धव ठाकरे भाजपा पर तीखी आलोचना करना ज्यादा पसंद कर रहे थे। इससे अपनी बौखलाहट वे छुपा नहीं सके। मुंबई नगर निगम चुनाव और आनेवाले हर आम चुनाव में शिवसेना का संतुलन अगर बिगडता चला गया तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
लोकतंत्र का मजाक
केंद्र में भाजपा का शासन है, राज्य में भी वही फिर से आना चाहते थे और अब नगरनिगम भी उन्हें ही चाहिए, यह क्या चल रहा है ? सब उन्हीं को देंगे तो हम क्या झाडू पोछा करते रह जाएंगे या बर्तन मांजते रह जाएँगे ? ऐसा उद्धव ठाकरे ने कहा, भाजपा-शिवसेना गठबंधन में 25 साल शिवसेना भाजपा से आगे रहती थी। बालासाहब ठाकरे के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्त्व में पिछले सात साल में भाजपा आगे निकल चुकी है। यह सत्य शिवसेना पचा नहीं पा रही है। लेकिन सत्ता में न रहने का मतलब झाडू पोछा करना या बर्तन मांजना कैसे कहा जाएगा ? सालों साल विपक्ष में रहकर गैर कांग्रेस की राजनीति के लिए जीवन खपानेवाले हजारों कार्यकर्ता, नेताओं का यह अपमान है। विपक्ष लोकतंत्र की परिपूर्णता के लिए अनिवार्य है। उसे ऐसे शब्दों मे वर्णित करना यह लोकतंत्र का भद्दा मजाक नहीं तो क्या ?
टिप्पणियाँ