आज भी मामचंद शर्मा सिहर उठते हैं। मामचंद दिल्ली के उन लोगों में शामिल हैं, जिनकी पूरी दुनिया फरवरी, 2020 में हुए दंगों के कारण उजड़ गई थी। दिल्ली का वह दंगा 16 अगस्त, 1946 के बाद पहला ऐसा दंगा था, जिसमें जिहादियों के इरादे अलग देश बनाने और भारत को तोड़ने के थे। इससे भी बढ़कर अभियोजन पक्ष ने इसे 2001 में 11 सितंबर को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमले के समकक्ष बताया है।
कुल मिलाकर, सरकार या फिर कहें अभियोजन, यह कहना चाहता है कि दिल्ली दंगा भी एक आतंकवादी हमला था, जिसमें काफी बड़े पैमाने पर जनसहभागिता थी, बड़ी साजिश थी। जान-माल को भारी नुकसान पहुंचाने का इरादा था। इस मामले से जुड़े मुकदमों की सुनवाई में हर गुजरते दिन के साथ यह साबित होता जा रहा है कि दंगाइयों के निशाने पर भारत था, हिंदू थे।
नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 (सीएए) के विरोध में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे को लेकर हाल ही में कुछ नए खुलासे हुए हैं। इस मामले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार उमर खालिद की जमानत पर दिल्ली की एक अदालत में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने दिल्ली के दंगों की तुलना 9/11 के आतंकी हमले से की। सुनवाई में अभियोजन पक्ष ने गूगल मानचित्र के जरिए दिल्ली दंगे की पूरी साजिश की कड़ियों को जोड़ा। अभियोजन पक्ष की ओर से अमित प्रसाद ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के न्यायालय में कहा कि दंगाई पहले चरण में दिसंबर, 2019 में अपने मंसूबों को अंजाम देने में विफल रहे थे। फिर फरवरी, 2020 में ‘खामोश लेकिन सुनियोजित साजिश’ के तहत उन्होंने इसे अंजाम दिया। अभियोजन पक्ष ने दंगे के हफ्तेभर पहले की ‘चैट’ सामने रखते हुए बताया कि 17 फरवरी, 2020 को ही यह तय हो गया था कि दिल्ली में दंगे होंगे। ओवेस सुलेमान खान नाम के शख्स की इस ‘चैट’ के अनुसार, ‘‘अतहर मियां स्थानीय लोगों के पास सबूत है कि बीती रात तुम लोगों ने रोड ब्लॉक करने की योजना बनाई थी। तुम लोगों की दंगा भड़काने की योजना है।’’
क्या कहता है आरोपपत्र
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मामले की सुनवाई के दौरान 9 नवंबर, 2021 को अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों पर गौर कीजिए। अनवर हुसैन, कासिम, शाहरुख और खालिद अंसारी पर 25 फरवरी, 2020 को आंबेडकर कॉलेज के पास दीपक नाम के एक व्यक्ति की बेरहमी से पिटाई कर हत्या करने के आरोप तय करते हुए अदालत ने कई गंभीर बातें कहीं। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने आरोपियों के खिलाफ आवश्यक धाराओं के तहत आरोप तय किए। अदालत ने कहा, ‘‘उनके लामबंदी और इरादे के तरीके से जैसा कि उनके आचरण से लगता है, उक्त गैरकानूनी जमावड़ा दंगों और मृतक दीपक की हत्या जैसे अन्य अपराधों को अंजाम देने के उद्देश्य से किया गया था।’’
अदालत ने आरोप तय करने के अपने आदेश में साजिश वाले पहलू पर कहा कि गैरकानूनी तरीके से जमा होने से पीड़ित पर सुनियोजित हमले की साजिश भी व्यापक रूप से प्रतीत होती है। सबसे महत्वपूर्ण गवाह सुनील कुमार थे। न्यायालय के अनुसार गवाह ने पूरी तरह रेखांकित किया है कि कैसे मृतक दीपक को आरोपी व्यक्तियों समेत हथियारबंद मुसलमानों की भीड़ द्वारा मार दिया गया था।
इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी पाञ्चजन्य की इस पड़ताल पर मुहर लगा दी थी कि 2020 में दिल्ली में हुए दंगे एक सुनियोजित साजिश का नतीजा थे। न्यायालय ने कहा था कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था को ध्वस्त करने की यह पूर्व नियोजित साजिश थी। ये घटनाएं (हिंदुओं का कत्लेआम और संपत्ति को नुकसान) किसी क्षणिक आवेश में नहीं हुर्इं। अदालत ने इसी तथ्य के आलोक में हेड कांस्टेबल रतनलाल की हत्या और एक आईपीएस अधिकारी पर जानलेवा हमले के आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया था।
पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद के समक्ष रतनलाल की हत्या के मामले में गिरफ्तार मोहम्मद इब्राहिम की जमानत याचिका आई। न्यायमूर्ति प्रसाद ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कई गंभीर टिप्पणियां कीं। उन्होंने कहा कि घटनास्थल के आस-पास के इलाकों में सीसीटीवी कैमरों को सुनियोजित तरीके से नष्ट कर दिया गया। राष्ट्रीय राजधानी में जो घटनाएं हुर्इं, वे क्षणिक आवेग का नतीजा नहीं थीं। शहर की कानून-व्यवस्था को ध्वस्त करने की पूर्व नियोजित साजिश थी। अभियोजन ने अदालत के समक्ष हिंसा की वीडियो फुटेज को रिकॉर्ड पर रखा है।
इब्राहिम ऐसे ही एक वीडियो फुटेज में हमलावर भीड़ के साथ था। इस भीड़ ने हमला करके रतनलाल की हत्या कर दी थी। साथ ही एक आईपीएस अधिकारी को गंभीर रूप से जख्मी कर दिया था। इब्राहिम भीड़ में तलवार लेकर शामिल था। अदालत ने टिप्पणी की कि यह वीडियो फुटेज बहुत भयानक है। यह इब्राहिम को हिरासत में रखने के लिए काफी है। उल्लेखनीय है कि इब्राहिम की जमानत याचिका में दलील दी गई थी कि वह कभी किसी विरोध प्रदर्शन या दंगे में शामिल नहीं था। यहां न्यायमूर्ति प्रसाद की टिप्पणी गौर करने लायक है, ‘‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता का इस्तेमाल सभ्य समाज के ताने-बाने को खतरे में डालने के लिए नहीं किया जा सकता।’’ न्यायालय ने इब्राहिम की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि उसकी मौजूदगी सीसीटीवी फुटेज में नजर आ रही है। यह टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है कि जिहादी, दंगाई, नक्सली, शहरी नक्सली कानून की गिरफ्त में आने के बाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता की ही दुहाई देते हैं। इसी आधार पर ये लोग अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हैं। इनकी जमानत के समय शहरी नक्सल खेमे के वकील, बुद्धिजीवी और पत्रकार इसी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की दुहाई देते हैं। उस समय ये भूल जाते हैं कि इन्होंने किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता ही नहीं, जीवन जीने के अधिकार तक को छीना है। अदालत ने कहा, ‘‘इब्राहिम फुटेज में तलवार लेकर भीड़ को उकसाता नजर आता है। वादी की हिरासत को बढ़ाने के लिए अदालत के पास ठोस सबूत है। इब्राहिम जो हथियार ले जा रहा था, वह किसी को गंभीर चोट या मौत का कारण हो सकता है।’’
हिंसा की पटकथा
फरवरी, 2020 आते-आते दिल्ली सुलगने लगी थी। नागरिकता संशोधन कानून की आड़ में हिंसा की पटकथा लिखी जाने लगी थी। 23 फरवरी को दिल्ली में दंगा शुरू हुआ। चार दिन तक चले दंगे में 53 लोगों की मौत हुई और 600 से अधिक लोग घायल हुए। सुनियोजित तरीके से हिंदुओं को निशाना बनाया गया। उस समय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की यात्रा पर थे। पूरी दुनिया का ध्यान भारत पर था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की लगातार मजबूत होती छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए ये दंगे किए गए थे। दिल्ली पुलिस ने दंगों से जुड़ी कुल 751 एफआईआर दर्ज की। पुलिस ने दंगों से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। दिल्ली पुलिस ने आरोपपत्र में लिखा है कि सरकार को अस्थिर करने के लिए एक साजिश के तहत दंगे कराए गए।
कैसे जुड़ती है कड़ी
षड्यंत्र का प्रारंभ 4 दिसंबर, 2019 से होता है। इसी दिन मुस्लिम स्टूडेंट आफ जेएनयू (एमएसजे) ग्रुप की शुरुआत हुई और शरजील इमाम इस ग्रुप का सबसे सक्रिय सदस्य था। इसी ग्रुप के जरिए शरजील इमाम स्टूडेंट आॅफ जामिया ग्रुप से जुड़ा। यही मुस्लिम कट्टरपंथी समूह जामिया हिंसा का प्रेरक बना। आरोपपत्र के अनुसार शरजील इमाम का उस्ताद उमर खालिद है। सात दिसंबर, 2019 को खालिद ने शरजील इमाम को योगेंद्र यादव से मिलवाया। जी हां, ये वही योगेंद्र यादव हैं, जो इच्छाधारी प्रदर्शनजीवी हैं। ये दिल्ली दंगे के दौरान भी सक्रिय थे, और अब किसान आंदोलन का मुखौटा पहने हैं। हर भारत विरोधी गतिविधि में योगेंद्र यादव का नाम न आए, यह नहीं हो सकता। इसके बाद आठ दिसंबर,2019 को जंगपुरा में शरजील इमाम, योगेंद्र यादव, उमर खालिद, नदीम खान, परवेज आलम, ताहिरा दाउद और प्रशांत टंडन ने बैठक की।
चक्का जाम की साजिश पहले से तैयार थी। इसे अमल में लाने का फैसला इसी बैठक में हुआ। इसे यूनाइडेट अगेंस्ट हेट, स्वराज अभियान, तमाम वामपंथी दलों, संगठनों, शहरी नक्सलियों और अन्य सेकुलर जमात ने समर्थन दिया और जहां तक हो सका सहयोग किया। आरोपपत्र में एक ‘प्रोटेक्टेड गवाह’ (ऐसा गवाह, जिसकी पहचान का खुलासा नहीं किया जा सकता) के हवाले से पुलिस ने कहा है कि 13 दिसंबर को उमर खालिद ने शरजील को आसिफ इकबाल तन्हा से मिलवाया। यहां चक्का जाम और धरने के बीच का अंतर समझाया गया। इसके लिए दिल्ली के मुस्लिम-बहुल इलाके को चुना गया। मकसद बहुत साफ था कि देश की सरकार को उखाड़ फेंका जाए, क्योंकि यह हिंदू सरकार है। जामिया के गेट नंबर 7 से चक्का जाम शुरू हुआ। उमर खालिद के तार अंकित शर्मा की जघन्य हत्या व दंगे के आरोपी आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन से भी जुड़े हुए थे। उमर खालिद ने इस बात का आश्वासन ताहिर हुसैन को दिया कि पैसे की चिंता मत करो। पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया यानी पीएफआई इस दंगे के लिए पैसे और अन्य जरूरी चीजों का इंतजाम करेगा।
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