हल्द्वानी के फतेहपुर फ़ॉरेैस्ट रेंज से लगे पनियाली गांव की महिला जोकि घास लेने गयी थी उसे आदमखोर तेंदुए ने अपना निवाला बना लिया। गांव वालों ने बताया कि पिछले कई दिनों से आदमखोर तेंदुआ गांव के आसपास घूम रहा था और गांववासी उससे सतर्क भी थे। इसकी सूचना वन विभाग को भी दी गयी थी लेकिन वन विभाग ने इस संबंध में पिंजरा लगाने जैसी कोई सुरक्षा नहीं बरती।
नैनीताल जनपद में पिछले दो महीने में ये चौथी मौत है, जोकि तेंदुए या गुलदार के हमले से हुई है। पहली मौत 9 दिसम्बर को दूसरी 13 जनवरी तीसरी 17 जनवरी को हुई और अब चौथी मौत हुई है। ये सभी घटनास्थल, जंगल से लगे गांव हैं, जहां तेंदुए और बाघ हमलावर हो रहे हैं। पिछले डेढ़ साल में नैनीताल जिले में ही बीस किमी के वनक्षेत्र के दायरे में ही आठ लोगों को बाघ-तेंदुए अपना शिकार बना चुके हैं।
वन विभाग अपने अटपटे नियमों की वजह से ग्रामीणों की सुरक्षा नहीं कर पा रहा है। जैसे जब तक एक बाघ या तेंदुआ चार लोगों को अपना शिकार नहीं बना लेता तब तक उसे आदमखोर घोषित नही किया जा सकता। 2000 से अभी तक उत्तराखंड में तेंदुए के हमलों में 985 से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं। 2021 में अकेले पिथौरागढ़ जिले में 19 लोगों को तेन्दुओं ने अपना शिकार बना डाला जिनमें ज्यादातर बच्चे और बूढ़े हैं।
वन्य जीव विशेषज्ञ सुमंता घोष बताते हैं कि तेंदुए अपने से कमजोर का शिकार करते हैं, इसलिए उनके निशाने पर पालतू आवारा कुत्ते, फिर घरों के बच्चे और कमर झुके बुजुर्ग और घास काटती महिला रहते हैं। तेंदुए शिकार करने से पहले रेकी कर जाते हैं फिर वो सूरज ढलते या सूरज उगते वक्त हमला करते हैं।
उत्तराखंड में तेंदुए के हमलों पर वन्य जीव प्रतिपालक डॉ पराग मधुकर धकाते कहते हैं कि बाघों की तुलना में तेंदुए की आबादी तेज़ी से बढ़ती है। जंगल कम होने से ये तेंदुए आबादी की तरफ शिकार के लिए जा रहे हैं और आदमखोर भी हो रहे हैं। हर साल करीब 70 से 80 लोग इनका शिकार हो रहे है। वन विभाग भी आदमखोरों को मारने के लिए शिकारी नियुक्त करता रहा है।
डॉ धकाते इस बात के लिए भी सावधान करते हैं कि चारे की लालच में गांव वाले जंगल जाते हैं और उन पर बाघ-तेंदुए हमले करते हैं उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि जंगल बाघों- तेंदुओं के घर हैं, उनके घर कोई आता है तो वो हमलावर होते हैं।
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