पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए 20 फरवरी को मतदान होना है। लेकिन इससे पहले प्रदेश की राजनीति पल-पल बदल रही है। हालात इस कदर बदल चुके हैं कि जिस भाजपा को किसान व सिख विरोधी बताते हुए उसे दुत्कारा जा रहा था, आज वही सूबे का सिरमौर बनती दिख रही है। चुनाव परिणाम चाहे जो हो, यह तो तय है कि भाजपा राजनीतिक विश्लेषकों को चौंकाएगी जरूर।
तीन कृषि सुधार कानूनों का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी सिख और किसान विरोधी होने का ठप्पा लगाया गया। भाजपा नेताओं पर हमले तक किए गए। कृषि कानूनों का विरोध करते हुए जब शिरोमणि अकाली दल ने जब भाजपा से नाता तोड़ लिया तो पंजाब में उसकी हालत बद से बदतर हो गई। लेकिन 19 नवंबर, 2021 को गुरुपर्व वाले दिन प्रधानमंत्री मोदी ने माफी मांगते हुए कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की और भाजपा के खिलाफ किसानों के विरोध को खत्म कर दिया। इसके बाद, केंद्र सरकार ने करतारपुर गलियारा खोल कर सिख समुदाय को बड़ा उपहार दिया। इसी तरह, 1984 दंगों के दोषियों को सजा दिलाना, पीडि़तों को मुआवजा दिलवाना, श्री हरिमंदिर साहिब के लंगर से जीएसटी हटाना, अफगानिस्तान से श्री गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूपों व सिख परिवारों को वापस लाना, छोटे साहिबजादों की याद में 'वीर बाल दिवस' मनाने की घोषणा करने जैसे कदम उठाए। इन फैसलों ने कहीं न कहीं सिखों और भाजपा के बीच दूरियों को पाटने का काम किया। 5 जनवरी को सुरक्षा में चूक के कारण प्रधानमंत्री की फिरोजपुर रैली रद्द करनी पड़ी। लेकिन विपक्ष ने यह प्रचारित किया कि रैली में भीड़ कम थी, इसलिए बहाना बनाते हुए मोदी लौट गए। लेकिन पंजाब में हाल की तीन रैलियों में उमड़े जन सैलाब ने विपक्ष को करारा जवाब दे दिया।
कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींढसा तो पहले ही भाजपा के साथ आ गए थे, लेकिन मनजिंदर सिंह सिरसा, राणा गुरमीत सोढ़ी और फतेहजंग सिंह बाजवा जैसे सिख चेहरों को शामिल कर यह साबित कर दिया कि पार्टी सिख विरोधी नहीं है, बल्कि इसमें सिखों को पूरा सम्मान मिलता है। फिरोजपुर रैली को लेकर जो भी हुआ, उसने भाजपा को बैकफुट से सीधा फ्रंटफुट पर ला दिया। वहीं, आम आदमी पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में भी पूरे ताम-झाम के साथ उतरी थी। आआपा नेता विश्वास से इतने भरे हुए थे कि सरकार में अपनी भूमिका को लेकर भी चर्चा करने लगे थे, पर अचानक पार्टी के सर्वेसर्वा अरविन्द केजरीवाल के मोगा में एक खालिस्तानी आतंकी के घर रुकने और फिर मौड़ मंडी में हुए बम विस्फोट ने पार्टी की हवा निकाल दी। पार्टी पर खालिस्तानियों के साथ संबंध होने के आरोप तो पहले भी लगते रहे थे, पर इन दो इन दो घटनाओं से लोगों में आशंका और गहरा गई। इस बार भी वही सब दोहराया जा रहा दिख रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे कुमार विश्वास ने केजरीवाल और अलगाववाद को लेकर जो भांडाफोड़ किया है, उससे पंजाब के लोगों के मन में आआपा के प्रति आशंका बढ़ती दिख रही है। अब देखना है कि कुमार विश्वास के खुलासे से आआपा को कितना नुकसान होगा। लेकिन यह तय माना जा रहा है कि खालिस्तान की चर्चा से शहरी मतदाता आआपा से छिटक चुका है।
सुनील जाखड़ प्रकरण में तो पहले ही कांग्रेस का हिंदू विरोधी चेहरा सामने आ गया था। इसके बाद हिंदुओं का स्वाभिमान अभी जाग ही रहा था कि नवजोत सिंह सिद्धू ने ब्राह्मण विरोधी टिप्पणी कर काम और खराब कर लिया। आखिर में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने यूपी-बिहार के लोगों को 'भइये' कह कर अपने बहुत बड़े वोट बैंक को नाराज कर लिया है। पंजाब में कृषि से लेकर निर्माण उद्योग, फैक्ट्रियां, छोटे-मोटे तकनीकी कामकाज, सब्जी का व्यापार आदि कार्य यूपी-बिहार के लोगों के कारण ही चलते हैं। हर शहर-गांव में इनकी अच्छी खासी संख्या है। चन्नी के बयान से वे आक्रोशित हैं और सूबे में कई जगह प्रदर्शन भी कर चुके हैं।
पीएम मोदी की जालंधर (दोआबा), पठानकोट (माझा) और अबोहर (मालवा) में रैलियाें से शहरी वोटबैंक का ध्रुवीकरण होता दिख रहा है और भाजपा शहरी सीटों में मजबूत होने की स्थिति में आ सकती है। इन रैलियों में शहरी सिखों का शामिल होना, इस बात का संकेत है कि शहरी सिख और भाजपा की आपसी दूरियां खत्म हो रही हैंं। एक सर्वे के मुताबिक पार्टी दोआबा की 9, माझा की 7 और मालवा की 10 से 15 सीटों पर अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। मालवा की 69 सीटें हैं और 30 से 35 सीटों पर डेरा सच्चा सौदा का मजबूत जनाधार है। हर सीट पर औसतन 15 हजार वोटर डेरे से जुड़े हैं। इन 35 में से 10 से 15 सीटों पर राजग के प्रत्याशी विपक्षियों को दमदार चुनौती दे रहे हैं और अगर डेरा राजग के पक्ष में कोई फैसला लेता है तो इससे फायदा होगा।
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