अफगानिस्तान से आया एक ताजा समाचार हैरान करने वाला है। पिछले साल अगस्त में वहां तालिबान लड़ाकों के चढ़ बैठने से पहले देश के उपराष्ट्रपति रहे अमरुल्लाह सालेह का एक ताजा दावा चौंकाने वाला है। उनका कहना है कि अफगानिस्तान के पंजशीर प्रांत में पाकिस्तानी स्नाइपर जिहादी गुट हक्कानी नेटवर्क के साथ मिलकर घुसपैठ की कोशिश कर रहे हैं।
आजकल किसी अनजान जगह पर निर्वासित की तरह रह रहे अमरुल्ला ने अपने ट्वीट में लिखा कि 'पंजशीर में जिहादियों ने तंबू लगाया हुआ है। आने वाले दिनों में ये लोग पंजशीर में कोई बड़ी साजिश रच सकते हैं। मैं जल्दी ही इसके सबूत सामने रखूंगा'।
उल्लेखनीय है कि 31 जनवरी, 2022 को ईरान की राजधानी तेहरान में पंजशीर के लड़ाकों तथा तालिबान के बीच करार को लेकर लंबी बात हुई थी। लेकिन इस वार्ता से कोई रास्ता नहीं निकला था। इसके बाद लगने लगा था बहुत संभव है तालिबान फिर से पंजशीर पर हमला बोलेगा।
किसी अनजान जगह पर निर्वासित की तरह रह रहे अमरुल्ला ने अपने ट्वीट में लिखा कि 'पंजशीर में जिहादियों ने तंबू लगाया हुआ है। आने वाले दिनों में ये लोग पंजशीर में कोई बड़ी साजिश रच सकते हैं। मैं जल्दी ही इसके सबूत सामने रखूंगा'।
बता दें कि अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्जे बाद भी पंजशीर में तालिबान विरोधी लड़ाकों ने तालिबानी जिहादियों के विरुद्ध हथियारबंद संघर्ष छेड़ा था। उसमें कई मोर्चों पर उन्हें सफलता भी मिली और तालिबान लड़ाके कई इलाकों में घुस ही नहीं पाए थे। उसके बाद से पंजशीर के लोग लगातार तालिबान के विरुद्ध संघर्ष छेड़े हुए हैं। बताते हैं, इसे अमरुल्ला सालेह का समर्थन भी प्राप्त है।
नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट की अगुआई में पंजशीर के लोग तालिबान को अपने क्षेत्र में न घुसने देने की कसमें खाए हुए हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति सालेह भी पंजशीर के किसी जगह से निर्वासित सरकार बनाए हुए हैं और तालिबान पर लगातार हमलावर बने हुए हैं। वे भूले नहीं हैं कि पंजशीर में ही तालिबान के जिहादियों ने साल 2021 में उनके भाई की हत्या की थी।
पंजशीर अफगान राजधानी काबुल से सिर्फ 125 किलोमीटर दूर है। तालिबान की अभी वहां पूरी पकड़ नहीं बनी है, इसलिए कह सकते हैं कि कई मायनों में पंजशीर आज भी स्वतंत्र है। यह तालिबान विरोध के खास ठिकाने की तौर पर उभरा है। यहां कभी मुजाहिदीन नेता अहमद शाह मसूद का सिक्का चलता था। तबसे यह घाटी उनके बलों की सुरक्षा में बनी रही है। मसूद सालों पर गुजर चुके हैं, इसलिए आज कमान उनके बेटे के हाथ में है। 1996 में तालिबान के अफगानिस्तान पर पिछले कब्जे के वक्त भी पंजशीर के नागरिकों ने तालिबान की हुकूमत को नकारा था।
अब अगर सालेह कह रहे हैं कि पंजशीर में हक्कानी नेटवर्क के साथ मिलकर पाकिस्तानी स्नाइपर किसी साजिश में लगे हैं तो इससे साफ है कि आईएसआई अब भी इस इलाके में अपनी शैतानी मंशाओं को पूरा करने में जुटी हुई है।
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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