तमिलनाडु के तंजावुर जिले के सेक्रेड हाई स्कूल की 17 वर्षीया छात्रा लावण्या को न्याय दिलाने के लिए मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के घर के बाहर प्रदर्शन कर रहे अभाविप कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। सोमवार को मुख्यमंत्री आवास के सामने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे अभाविप कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। फिर उन्हें हिरासत में लेने के बाद एक मैरिज हॉल कल्याण मंडपम ले जाया गया और वहां घंटों तक रखा गया। रात 11 बजे सभी को एसडीएम (ड्यूटी मजिस्ट्रेट) के सामने पेश किया गया। वहां रात 12:30 बजे तक सुनवाई चली। इस दौरान मजिस्ट्रेट पर दबाव बनाने के लिए बड़ी संख्या में डीएमके के कार्यकर्ता इकट्ठे हो गए थे। सुनवाई के बाद महिला और पुरुष सहित गिरफ्तार 36 लोगों में से तीन को छोड़कर शेष 33 लोगों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। जिन तीन लोगों को छोड़ा गया, वे नाबालिग हैं। बता दें कि लावण्या को ईसाई बनने के लिए प्रताडि़त किया जा रहा था और उसे मजबूर भी किया जा रहा था। तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली थी।
तमिलनाडु पुलिस ने बर्बरता दिखाते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे अभाविप कार्यकर्ताओं को बुरी तरह पीटा। इसके बाद झूठा आरोप लगाते हुए उन्हें हिरासत में ले लिया। जिन लोगों को न्यायिक हिरासत में भेजा गया है, उनमें राष्ट्रीय महामंत्री निधि त्रिपाठी, राष्ट्रीय मंत्री मुथु रामलिंगम, दक्षिण प्रांत प्रदेश मंत्री सुशीला सहित कई अन्य कार्यकर्ता शामिल हैं। सभी को धारा 353 (लोक सेवक पर हमला), जो गैर-जमानती अपराध है, के तहत गिरफ्तार किया गया है। हालांकि विरोध पूरी तरह से शांतिपूर्ण था और किसी भी कार्यकर्ता ने पुलिस का विरोध तक नहीं किया। वीडियो में भी इसे साफ देखा जा सकता है। कुछ दिन पहले ही निधि ने लावण्या प्रकरण में मुख्यमंत्री को खुला पत्र लिखा था, जिसमें पुलिस की कार्यशैली और सरकार के उदासीन रवैये पर सवाल उठाया गया था।
सौदापट मजिस्ट्रेट अदालत में डीएमके की अगुआई वाली राज्य सरकार ने अपना चेहरा बचाने की बहुत कोशिश की। देर रात तक सुनवाई के दौरान जब सरकारी वकील अपनी दलीलों को स्थापित करने में विफल रहे, तो वे आधी रात को मामले को लोक अभियोजक को अदालत में गए। लेकिन वहां भी सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील कानूनी दलीलों से अपनी बातों को साबित करने में विफल रहे। इस बीच, सुनवाई के दौरान देर रात को जुटे डीएमके के कार्यकर्ता ओं ने चेन्नई में उप-मंडल मजिस्ट्रेट अदालत में कानूनी प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास किया। अभाविप कार्यकर्ताओं का आरोप है कि डीएमके सरकार लोकतंत्र की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है। सरकार ने बदले की भावना के तहत सभी कार्यकर्ताओं को अवैध रूप से हिरासत में लिया है और उन्हें झूठे मामले में आरोपी बनाया है।
लावण्या प्रकरण में राज्य सरकार कितनी संवेदनशील है, उसका पता इसी बात से चलता है कि पीडि़त परिवार की मांग पर मद्रास उच्च न्यायालय ने सीबीआई से मामले की जांच कराने का निर्देश दिया तो स्टालिन सरकार इस आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय पहुंच गई। लेकिन शीर्ष अदालत ने सरकार की याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा और मामला सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया।
अभाविप के राष्ट्रीय मंत्री गजेंद्र तोमर ने कहा, "तमिलनाडु सरकार तथा प्रशासन, लावण्या मामले को दबाने के लिए सारे संभव हथकंडे अपना रहा है, लेकिन अभाविप का प्रत्येक कार्यकर्ता लावण्या को न्याय मिलने तक संघर्ष करेगा। अपनी गलती और मिशनरियों की करतूतों को छिपाने के लिए राज्य सरकार माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की भी अवहेलना करने से नहीं चूक रही है। हम लावण्या को न्याय मिलने तक लड़ते रहेंगे। लावण्या को न्याय दिलाने और कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग को लेकर अभाविप आज सभी राज्य मुख्यालयों पर धरना प्रदर्शन कर रही है।” अभाविप राष्ट्रीय मंत्री कु. प्रेरणा पवार ने कहा, “तमिलनाडु सरकार बर्बरता की हदें पार कर गई है। हम कन्वर्जन रोकने के लिए क़ानून बनाने के लिए भी सरकार से आग्रह करेंगे ताकि फिर किसी विद्यार्थी को ऐसे वीभत्स और दुर्दांत कृत्य का सामना न करना पड़े।"
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