कई भारतीय सॉफ्टवेयर अपने क्षेत्र में वैश्विक लीडर के रूप में जाने जाते हैं। इनमें जोहो, तलिस्मा और रॉक अग्रणी हैं
भारत के मशहूर साफ्टवेयर उत्पादों की चर्चा में आज हम कुछ और कंपनियों और उनके कामकाज की चर्चा करेंगे जिनमें क्लाउड के जरिए विश्वस्तरीय सेवाएं देने वाली जोहो नामक कंपनी भी शामिल है। अन्य कंपनियों में तलिस्मा और स्यूबेक्स के बारे में जानते हैं, जिन्होंने प्रौद्योगिकी की दुनिया के झंझावातों को झेला और खुद को कामयाबी की बुलंदी पर खड़ा किया।
जोहो
भारत से संचालित बड़ी वेब परियोजनाओं में ‘जोहो’ बहुत महत्वपूर्ण है जिसकी स्थापना एडवेन्टनेट के नाम से 1996 में हुई थी। बाद में इसका नामकरण जोहो कॉरपोरेशन के रूप में किया गया। सन 2005 में उसने क्लाउड कंप्यूटिंग का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए इंटरनेट के जरिए जोहो आॅफिस सॉफ्टवेयर सुइट्स जारी किए। यदि आपके कंप्यूटर में माइक्रोसॉफ्ट या ओपन आॅफिस जैसा कोई आॅफिस सॉफ्टवेयर नहीं है तो आप जोहो की वेबसाइट पर जाकर अपने सभी जरूरी काम कर सकते हैं, जैसे वर्ड डॉक्यूमेंट बनाना, प्रेजेन्टेशन्स तैयार करना, वित्तीय आंकड़ों की स्प्रेडशीट्स बनाना आदि-आदि। आज आफिस 365 के जरिए माइक्रोसॉफ्ट और ‘गूगल डॉक्स’ के जरिए गूगल भी इसी तरह की सेवाएं दे रहा है, लेकिन जोहो को इस क्षेत्र के शुरूआती दिग्गजों में से माना जाता है जिसकी सेवाएं इन दोनों से कहीं ज्यादा व्यापक और सरल हैं। इतना ही नहीं, यहां प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और कोलेबरेशन मैनेजमेंट जैसी भारी-भरकम तथा जटिल सेवाएं भी मुहैया कराई जाती हैं और ढेर सारे बिजनेस अप्लीकेशंस भी उपलब्ध हैं। जोहो भारत से संचालित विश्व स्तर की एक बेहतरीन परियोजना है, जिसका नेतृत्व श्रीधर वेम्बु करते हैं। यह भारत की सबसे बड़ी इंटरनेट परियोजनाओं में है लेकिन दिलचस्प है कि आज तक उसने न तो वेंचर कैपिटल फर्मों से कोई मदद ली है और न ही बैंकों से।
तलिस्मा
सिटी बैंक, डेमलर-क्रिसलर, डेल, माइक्रोसॉफ्ट, सीमेन्स, सोनी, अमेरिकी विदेश विभाग जैसे संस्थान अगर किसी कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट (सीआरएम) सॉल्यूशन के ग्राहक हों तो उसकी अहमियत और काबिलियत के बारे में शायद बहुत कुछ कहने की जरूरत नहीं है। यह उत्पाद है बंगलुरु की तलिस्मा कॉरपोरेशन द्वारा विकसित ‘तलिस्मा’ जो अपने क्षेत्र के ग्लोबल लीडर्स में गिना जाता है। तलिस्मा की स्थापना सन 1998 में प्रदीप सिंह ने की थी। इसका टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म कंपनियों को ग्राहकों के लगातार संपर्क में रहने के लिए पारंपरिक माध्यमों के साथ-साथ एक ही सॉफ्टवेयर इंटरफेस के भीतर ईमेल, एसएमएस, पोर्टल, फोन, मोबाइल, चैट, वेब सर्विस जैसी सुविधाएं मुहैया कराता है।
बड़ी कंपनियों को संचालित करने के लिए जटिल और विस्तृत सॉफ्टवेयर तंत्रों तथा सेवाओं की जरूरत पड़ती है। ईआरपी और सीआरएम इसी श्रेणी में आते हैं। ईआरपी जहां बड़े संस्थानों को अपना भीतरी तंत्र कुशलता के साथ चलाने में मदद करते हैं, वहीं सीआईएम या सीआरएम उन्हें ग्राहकों के साथ बेहतर तालमेल रखने और कारोबार बढ़ाने के अवसर देते हैं। तलिस्मा सीआरएम प्रॉ़डक्ट सुइट में मार्केटिंग, सेल्स, सर्विसेज, चैनल्स, सोशल सीआरएम और बिजनेस इंटेलीजेंस जैसे मॉड्यूल्स हैं। सन 2013 में तलिस्मा के सीआरएम सुइट का अधिग्रहण अमेरिकी कंपनी एनजेनेरा ने 140 करोड़ में कर लिया था।
रॉक
रॉक (फडउ) स्यूबेक्स द्वारा विकसित रेवेन्यू एश्योरेंस सिस्टम है, जो दूरसंचार क्षेत्र के बड़े संस्थानों में काफी लोकप्रिय है। यह कंपनियों को अपनी आय पर लगातार नजर रखने का मौका देता है और रास्ते की बाधाओं (रेवेन्यू लीकेज, धोखाधड़ी, चूक, ग्राहकों द्वारा डिफॉल्ट आदि) का असरदार समाधान कर उत्पादकता को 90 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने में कामयाब हुआ। सामान्य शब्दावली में कहा जाए तो यह डूबत खाते पर अंकुश लगा देता है। जब आप टेलीफोन बिल नहीं भरते और तारीख निकलते ही फोन आने लगते हैं तो बहुत संभव है कि टेलीफोन कंपनी में किसी ने ‘इनचार्ज’ का इस्तेमाल किया हो। लेकिन यह तो इसका एक पक्ष मात्र है। वह आय बढ़ाने, खर्च घटाने और कारोबार का विस्तार करने में भी मदद करता है। बंगुलुरु स्थित स्यूबेक्स की स्थापना सुभाष मेनन ने 1992 में 20,000 रुपये का कर्ज लेकर की थी। कंपनी ने बहुत अच्छी तरक्की की। न सिर्फ अनेक देशों में उसके ग्राहक बने बल्कि कई देशों में शाखाएं भी खुलीं और एक ब्रिटिश कंपनी का अधिग्रहण भी किया। अलबत्ता 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान वह आर्थिक संकट में फंस गई जो 2012 में सुभाष मेनन के इस्तीफे के बाद नए नेतृत्व के आने पर धीरे-धीरे समाप्त हुआ। अब कंपनी मुनाफे में है और विनोद कुमार उसके सीईओ हैं। मुख्यालय बंगलुरु में है लेकिन अमेरिका, इंग्लैंड, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात में भी कार्यालय हैं।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट में निदेशक-भारतीय भाषाएं सुगमता हैं)
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