गत फरवरी को हैदराबाद में आयोजित श्री स्वामी रामानुजाचार्य जयंती समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत शामिल हुए। वहां उन्होंने पूजा—अर्चना की। इसके बाद उन्होंने श्री रामानुजाचार्य की स्मृति में बनाई गई ‘स्टैच्यू आफ इक्वालिटी’ (समानता की मूर्ति) के दर्शन किए। उनके साथ निवर्तमान सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान भी थे।
समारोह को संबोधित करते हुए श्री भागवत ने कहा कि हिंदू समाज किसी का विरोधी नहीं है। हम सदियों से फलते-फूलते आ रहे हैं। जिन लोगों ने 1,000 वर्ष तक हिंदुओं को नष्ट करने का प्रयास किया, वे अब विश्व भर में आपस में ही लड़ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर आज भी यहां भारत के ‘सनातन’ धार्मिक जीवन को देखा जा सकता है। इतने अत्याचारों के बावजूद, हमारे पास ‘मातृभूमि’ है। हमारे पास बहुत सारे संसाधन हैं। इसके बाद भी हम क्यों डरते हैं, क्योंकि हम स्वयं को भूल जाते हैं। स्पष्ट कमजोरी का कारण यह है कि हम जीवन के प्रति अपने समग्र दृष्टिकोण को भूल गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हम सब स्वयं, परिवार, पंथ, जाति, भाषा और अन्य पहचानों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय—हित को प्राथमिकता दें। उन्होंने कहा कि हिंदू—हित में ही राष्ट्र—हित है।

उल्लेखनीय है कि समानता की मूर्ति का उद्घाटन 5 फरवरी यानी वसंत पंचमी के दिन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र्र मोदी ने किया था। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा था कि जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य जी की इस भव्य प्रतिमा के माध्यम से भारत मानवीय ऊर्जा और प्रेरणाओं को मूर्त रूप दे रहा है। रामानुजाचार्य जी की यह प्रतिमा उनके ज्ञान, वैराग्य और आदर्शों की प्रतीक है।
बता दें कि इन दिनों श्री रामानुजाचार्य जी की जयंती मनाई जा रही है। इस निमित्त अनेक कार्यक्रम हो रहे हैं। 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में जन्मे रामानुजाचार्य एक वैदिक दार्शनिक और समाज सुधारक के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण कर समानता और सामाजिक न्याय का संदेश दिया था। उन्होंने भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित किया और उनके उपदेशों ने अन्य भक्ति विचारधाराओं को प्रेरित किया। उन्हें अन्नामाचार्य, भक्त रामदास, त्यागराज, कबीर और मीराबाई जैसे कवियों के लिए प्रेरणा माना जाता है।
संत रामानुजाचार्य जी के गुरु आलवन्दार यामुनाचार्य जी थे। अपने गुरु की इच्छानुसार रामानुजाचार्य जी ने ब्रह्मसूत्र,विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबंधनम् की टीका लिखने का संकल्प लिया था। इसके लिए उन्होंने गृहस्थाश्रम त्यागकर श्रीरंगम के यदिराज संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली थी। इसके बाद वे समाज से ऊंच-नीच का भेद मिटाने के लिए निकल पड़े। उनका कहना था कि सभी जातियां एक हैं। उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। मंदिरों के कपाट सबके लिए खुलें। यही कारण है कि उनकी स्मृति में बनाई गई प्रतिमा को ‘समानता की मूर्ति’ नाम दिया गया है।
श्री रामानुजाचार्य जी ने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए भी भारत का भ्रमण किया। वे इस धरा पर 120 वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम समय तक उन्होंने सामाजिक एकता और समरसता पर जोर दिया और 1137 में ब्रह्मलीन हो गए।
टिप्पणियाँ