छत्तीसगढ़ की ख्याति समूचे देश और दुनिया में भी ‘धान के कटोरे’ के रूप में यूं ही नहीं है। यहां की सश्य-श्यामला धरती देश के लिए दस करोड़ क्विंटल से भी अधिक धान उगाती है। यूं तो प्रदेश की पहचान इसके वन्य और खनिज संपदा से लेकर यहां के भले और भोले, अच्छे लोगों से भी है, लेकिन कृषि के मामले में भी यह छोटा कहा जाने वाला प्रदेश देश के बड़े प्रदेशों से प्रतिस्पर्द्धा करने को तैयार है। हालांकि हमेशा से ऐसा नहीं था। अविभाजित मध्य प्रदेश के ज़माने से लेकर छत्तीसगढ़ के निर्माण के शुरुआती कुछ वर्षों तक यहां के हालात अच्छे नहीं थे। वास्तव में इस राज्य के निर्माण की ज़रूरत ही इसीलिए महसूस हुई थी, क्योंकि यहां के संसाधनों का कांग्रेस के ज़माने में बंदरबांट कर लिया जाता था। यहां के किसान जहां फटेहाली में रहने को विवश थे तो वनवासी समाज मामूली चिकित्सा व्यवस्था को भी मुहताज रहा था।
भाजपा की सरकार के सत्ता में आने के बाद पंद्रह वर्ष प्रदेश में अनेक सुधारों के रहे। कृषि के क्षेत्र में हालात यह थे कि पहले जहां खुद कांग्रेस की सरकारें यहां की उपज धान को पानी में डूबा-डूबा कर देखती थी, वही भुगतान के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता था लोगों को। फिर डा. रमन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में धान खरीदी को तकनीकों से जोड़ा गया, मुफ्त कृषि ऋण, खाद-बीज-बिजली की सहज उपलब्धता और बेहतर धान खरीदी के मॉडल ने प्रदेश को कृषि के मामले में भी अवसरों की भूमि इसे बना देने में सफलता पायी। जल्द ही इसके धान खरीदी के मॉडल को जिसमें बिना किसी लीकेज के किसानों के खातों में चौबीस घंटे के भीतर रकम पहुंच जाती थी, की संयुक्त राष्ट्र तक में तारीफ़ होने लगी थी। मोटे तौर पर व्यवस्था ऐसी बन गयी थी कि किसानों को रोपनी के समय ही एक धान की कीमत अग्रिम मिल जाया करती थी। इसीलिए पड़ोसी महाराष्ट्र की कुख्याति जहां किसानों के आत्महत्या के मामले में थी, वहां छग में ऐसी खबरें लगभग नहीं आती थी। लेकिन पिछले तीन साल से जबसे कांग्रेस सत्ता में आयी है, दुर्गति का सिलसिला फिर से शुरू हो गया है।
शासकीय आंकड़ों के अनुसार ही पिछले क़रीब दो सालों में (साल 2020 में एक जनवरी से 23 नवंबर तक) छत्तीसगढ़ में 230 किसानों ने आत्महत्या की है। राज्य सरकार के मुताबिक़ ही आत्महत्या करने वाले किसानों में सर्वाधिक 97 वनवासी समुदाय से हैं। 42 किसान अनुसूचित जाति के हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि 2020 में छत्तीसगढ़ में कृषि क्षेत्र के 537 लोगों ने आत्महत्या की। ये तमाम आत्महत्याएं क़र्ज़ के कारण, अकारण किसानों की रकबा कटौती समेत ऐसे तमाम लालफीताशाही के कारण हुए हैं। कांग्रेस सरकार के आते ही पहले सत्र से ही किसानों के साथ बर्बरता, उन्हें जेल भेजने समेत तमाम प्रताडनाओं का दौड़ शुरू हो गया था, जबकि तथ्य यह है कि किसानों से बड़े-बड़े वादे कर ही कांग्रेस की यह सरकार सत्ता में आयी। अभी सांसद राहुल गांधी के अल्प प्रवास के दौरान प्रदेश में आंदोलनरत किसानों पर टूट कर पुलिसिया बर्बरता का दौर चला। आश्चर्य तो है कि यूपी के लखीमपुर तक में वोट के लिए दौड़ पड़ने, वहां जाकर छग के खजाने से करोड़ों मुआवजा बांट आने वाली भूपेश सरकार अपने ही किसानों के साथ ऐसे पेश आती है। कथित किसान आन्दोलन में कथित रूप से 700 किसानों की मौत का झूठ परोसने वाली कांग्रेस,अपने ही सरकार के कृषि विभाग के आंकड़े झुठलाते हुए कहती है कि वह किसानों की आत्महत्या के आंकड़े नहीं रखती, इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और क्या होगी भला?
बहरहाल, तमाम अव्यवस्थाओं और धोखाधड़ी, वादाखिलाफी आदि का रिकॉर्ड बना कर प्रदेश में धान खरीदी की प्रक्रिया इस वर्ष भी पूरी हुई। जहां भाजपा की सरकार में भूपेश बघेल 1 नवम्बर से धान खरीदी के लिए आन्दोलन चलाते थे, वहां खुद की सरकार में जान-बूझकर, विपक्ष द्वारा बार-बार याद दिलाने के बावजूद एक महीने विलम्ब से धान खरीदी शुरू की गयी इस बार भी। इस कारण बेमौसम बारिश से किसानों की तैयार फसल खेत में ही चौपट हो गयी। यहां नियम यह है कि चाहे आप जितना धान उपजाएं, लेकिन राज्य सरकार केवल 15 क्विंटल धान लेगी। जबकि राहुल गांधी साफ़-साफ़ वादा कर गए थे कि ऐसी कोई लिमिट नहीं रहेगी। फिर भी शासन द्वारा बेशर्मी से अपने वादे से मुकरने के कारण भी किसानों में निराशा व्याप्त है। इसी सत्र में सुरेश नेताम तो इससे पहले धनीराम मरकाम जैसे किसानों की आत्महत्या शासन के दबाने के बाद भी सुर्ख़ियों में रही।
तमाम लेटलतीफी और झंझट के बाद भी अपने ही लक्ष्य से शासन 8 लाख टन से अधिक धान खरीदने से पीछे रही। अर्थात शासकीय आकलन के अनुसार ही कम से कम 2 हज़ार करोड़ रूपये का धान किसान नहीं बेच पाए इस साल। विपक्ष भाजपा लगातार इस दो हज़ार करोड़ के रकम की भरपाई करने की मांग भी सरकार से लगातार कर रही है। इन तमाम परेशानियों से बेपरवाह सीएम बघेल चुनावी राज्यों में वोटों की फसल उगाने की नाकाम कोशिशों में व्यस्त हैं। प्रदेश के किसान आंदोलनरत हैं, खाद की कालाबाजारी के कारण उसकी किल्लत उफान पर है। मंडी टैक्स माफ़ करने का वादा कर आने के बावजूद टैक्स डेढ़ गुना बढ़ा दिया गया है। वादे अनुसार दो साल का बोनस भी किसानों का बकाया है ही। इधर किसान अगली फसल की तैयारी में व्यस्त हैं, तमाम तरह के छलनों के बावजूद। उधर सीएम बघेल कांग्रेस की दृष्टि से बंजर हो चुकी यूपी की राजनीतिक भूमि पर छत्तीसगढ़ के संसाधनों से प्रियंका-राहुल के लिए जमीन खोज रहे।छत्तीसगढ़ की परवाह करने की ज़रूरत क्यों हो, आखिर उन्हें? ढाई साल की जंग जो जो जीत ली है!
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