दिल्ली के हौज खास स्थित मीनार। इसके ऊपर अनेक छेद दिख रहे हैं। इन छेदों में नरमुंडों को रखा जाता था। ये नरमुंड किसी दुश्मन, किसी चोर या फिर उस व्यक्ति का होता था, जिसे बादशाह पसंद नहीं करता था।
सुबोध गुप्ता
यद्यपि सुनामी की तरह आए अनेक आक्रमणकारियों का भारतीयों ने अपने हैरतअंगेज शौर्य से मुकाबला किया था, परन्तु इनकी शौर्य-गाथा को किसी इतिहासकार ने अपनी पुस्तक में स्थान नहीं दिया। मुसलमान हमलावरों ने अपने हिसाब से इतिहास का लेखन करवाया। अंग्रेजों ने भी यही किया। दुर्भाग्य से स्वतंत्र भारत के बाद जो सरकार आई उसने भी इतिहास लेखन की जिम्मेदारी उन्हीं को दे दी, जो मुगलों को ही अपना आदर्श मानते थे। इन लोगों ने स्वतंत्र शोध के बिना आक्रमणकारियों द्वारा लिखित तथ्यों को ही ज्यों का त्यों परोस दिया। इस कारण इतिहास में मुसलमान शासकों की महिमा तो मिलती है, लेकिन उन्होंने हिंदुओं के साथ किस तरह के अत्याचार किए, इनकी जानकारी नहीं मिलती। इस लेख में मुसलमान इतिहासकारों द्वारा लिखी गर्इं अनेक पुस्तकों के आधार पर यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि उन्होंने हिंदुओं को कुचलने के लिए कैसी-कैसी क्रूरता की थी।
सेकुलरों ने ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की फर्जी बात निकाली थी और दुर्भाग्य से देश के लोग उनके झांसे में आ गए। इस कारण अधिकतर लोग अपने पूर्वजों के साथ होने वाले अत्याचारों को जानने की भी कोशिश नहीं करते। यही कारण है कि भारत के टुकड़े होते जा रहे हैं। यदि हम भारतीय चाहते हैं कि अब भारत का और कोई विभाजन न हो तो हमें अपने इतिहास से सबक लेना ही होगा। |
इतिहास की इन घटनाओं को छिपाने के लिए ही सेकुलरों ने ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की फर्जी बात निकाली थी और दुर्भाग्य से देश के लोग उनके झांसे में आ गए। इस कारण अधिकतर लोग अपने पूर्वजों के साथ होने वाले अत्याचारों को जानने की भी कोशिश नहीं करते। यही कारण है कि भारत के टुकड़े होते जा रहे हैं। यदि हम भारतीय चाहते हैं कि अब भारत का और कोई विभाजन न हो तो हमें अपने इतिहास से सबक लेना ही होगा।
(लेखक मुस्लिम कालीन इतिहास के विशेषज्ञ हैं)
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