हिंदुओं के नरमुंडों से बनाई जाती थीं मीनारें

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मुस्लिम आक्रमणकारी पराजित हिंदुओं को मारकर उनके नरमुंडों से मीनारें बनवाया करते थे। कुतुबुद्दीन ऐबक, अलाउद्दीन खिलजी, तैमूर, बाबर, अकबर, औरंगजेब, नादिर शाह, हुमायूं आदि ने जब भी विजय हासिल की उसके बाद आम हिंदुओं को मारा और उनके नरमुंडों से मीनारें बनवाईं। इतिहास के इन काले पन्नों को जानबूझकर बाहर नहीं आने दिया गया

सुबोध गुप्ता
यद्यपि सुनामी की तरह आए अनेक आक्रमणकारियों का भारतीयों ने अपने हैरतअंगेज शौर्य से मुकाबला किया था, परन्तु इनकी शौर्य-गाथा को किसी इतिहासकार ने अपनी पुस्तक में स्थान नहीं दिया। मुसलमान हमलावरों ने अपने हिसाब से इतिहास का लेखन करवाया। अंग्रेजों ने भी यही किया। दुर्भाग्य से स्वतंत्र भारत के बाद जो सरकार आई उसने भी इतिहास लेखन की जिम्मेदारी उन्हीं को दे दी, जो मुगलों को ही अपना आदर्श मानते थे। इन लोगों ने स्वतंत्र शोध के बिना आक्रमणकारियों द्वारा लिखित तथ्यों को ही ज्यों का त्यों परोस दिया। इस कारण इतिहास में मुसलमान शासकों की महिमा तो मिलती है, लेकिन उन्होंने हिंदुओं के साथ किस तरह के अत्याचार किए, इनकी जानकारी नहीं मिलती। इस लेख में मुसलमान इतिहासकारों द्वारा लिखी गर्इं अनेक पुस्तकों के आधार पर यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि उन्होंने  हिंदुओं को कुचलने के लिए कैसी-कैसी क्रूरता की थी।

  • 1193 में अलीगढ़ के समीप हुए हिन्दुओं के विद्र्रोह को कुचलने के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने उनका कत्ल करवाया और उनके नरमुंडों की गगनचुम्बी तीन मीनारें खड़ी कीं। इसके बाद उनके लाशों को चील-कौवों का भोजन बना दिया। (साभार : ताज-उल-मासिर)
  • हिजरी सन् 593 रबी उल अव्वल माह की 13 तारीख (3 फरवरी,1197), दिन रविवार को माउंट आबू पहाड़ की तलहटी में राजा राय कर्ण के नेतृत्व में युद्ध कर रहे हिंदू परास्त हो गए। इसके बाद 50,000 से भी अधिक हिंदुओं को मारा गया और उनके नरमुंडों की इतनी ऊंची मीनार बनवाई गई कि वह पहाड़ की चोटी के समतुल्य हो गयी थी।   (साभार : ताज-उल-मासिर)
  • अलाउद्दीन खिलजी ने 1299 में 1,00,000 हिंदुओं का कत्ल कर उनके कटे सिरों से मीनार बनवाई थी।
    (साभार : खजाइनुल फुतूह अथवा तारीख-ए-अलाई)
  • तैमूर स्वयं ही गर्व से कहता है, ‘‘मेरे भय से 10,000 मनुष्य अपनी जान बचाने के चक्कर में नदी में कूद गए थे। अन्ततोगत्वा कश्मीर की दुर्गम पहाड़ियों की चोटी पर मई, 1398 में नरमुंडों का पिरामिड (मीनार) बनाकर हिंदुस्तान से उन लोगों के उन्मूलन के अपने अभियान का आगाज किया, जिन्होंने कभी भी अल्लाह के आगे अपना शीश नहीं नवाया था। इसके बाद अपने अधिकारियों को आदेश दिया कि नरमुंडों की उस मीनार पर एक पत्थर का अभिलेख भी लगा दिया जाए जिस पर मेरा नाम और अन्य विवरण भी अंकित हों, ताकि इतिहास में यह दर्ज हो जाए कि मैं काफिरों की इस भूमि पर कब आया था।’’ (साभार : मल्फुजत-ऐ-तैमूरी या तुजुक-ए-तैमूरी)
  • अजमेर में तैमूर के स्वागत के लिए 70,000 नरमुंडों की मीनार बनाई गयी थी। अकेले तैमूर ने लगभग 60,00,000 लोगों का कत्ल किया था, ताकि उसके शासनाक्षेत्र में कोई भी काफिर न रह सके। (साभार : दीन-ए-इलाही)
  • अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में बाबर कहता है, ‘‘चूंकि बाजौरवासी इस्लाम के शत्रु और विद्रोही थे। अत: 8 जनवरी, 1519 को उनका नरसंहार किया गया। एक अनुमान के अनुसार 3,000 व्यक्ति मौत के घाट उतारे गए, नर्क पहुंचाए गए। दुर्ग पर अपना अधिकार कर हमने उसमें प्रवेश किया और उसका निरीक्षण किया। दीवारों के सहारे, घरों में, गलियों में, गलियारों में, असंख्य विरोधी मृत पड़े हुए थे। आने और जाने वालों को शवों के ऊपर से ही जाना पड़ा था। मुहर्रम के नौवें दिन मैंने आदेश दिया कि मैदान में मृत इस्लाम के विरोधियों के सिरों की एक मीनार बनाई जाए।’’ (साभार : बाबरनामा)
  • हुमायूं के समय की बात है। ‘‘हिंदुस्तान का सुल्तान सिकंदर सूर के पक्ष में युद्ध कर रही 80,000 हिंदुस्तानी सैनिकों की भागती हुई सेना के पीछे मुगल सैनिक दौड़ पड़े। दौड़ा-दौड़ा कर भारी संख्या में मुगलों ने उनका कत्ल किया था। फिर उनके नरमुंडों की बहुत ऊंची मीनार बनवाई, जिसका नाम ‘सिरमंजिल’ रखा गया था।’’ (साभार : मुन्तखब-उत-तवारीख)
  • 1556 में पानीपत के युद्ध में अंतिम हिन्दू सम्राट विक्रमादित्य हेमू के मूर्छित हो जाने पर अकबर ने उनके सिर को काट दिया था। इसके बाद अपनी विजय के प्रतीक के तौर पर ​​​​नरमुंडों से मीनार बनवाया था। उसी को इस चित्र में दिखाया गया है।  
  • 1556 में पानीपत के युद्ध में अंतिम हिन्दू सम्राट विक्रमादित्य हेमू के मूर्छित हो जाने पर मात्र 14 वर्ष के अकबर ने हेमू का सिर काट कर गाजी बनते हुए अपनी क्रूरता का परिचय दिया था। फिर तथाकथित महान ‘सहिष्ण’ अकबर ने अपनी जीत के जश्न के प्रतीक के रूप में अपने पूर्वजों की भांति ही कई हजार लोगों (अधिकांश हिन्दू) के सिर काट कर मीनार बनवाई। 2 सितंबर, 1573 को अमदाबाद में जीत के उपरांत अकबर ने 20,000 मनुष्यों के कटे हुए सिर का पिरामिड बनवाया था। (तबकात-ए-अकबरी)
  • 3 मार्च,1575 को अकबर के सेनापति मुनीम खां ने बंगाल में नरसंहार कर नरमुंडों की गगनचुम्बी 8 मीनारें बनवाई थीं।
    (विन्सेंट आर्थर स्मिथ)
  • महमूद गजनवी की इस्लामी सेना ने थानेसर में काफिरों का इतने बड़े पैमाने पर कत्ल किया था कि उनकी रक्त की धारा नदी में प्रचुर मात्रा में गिर रही थी। फलस्वरूप उस नदी का पानी इतना गंदा हो गया था कि अब पीने योग्य नहीं रहा। (तारीख-ए-यामिनी)
  • सोमनाथ पर हमला करने के बाद जब महमूद वापस अपने देश गजनी जा रहा था तो लगभग 8,000 नावों में सवार कई हजार जाटों ने बीच दरिया में महमूद गजनवी एवं उसकी सेना को ललकारा था। चूंकि महमूद गजनवी की नाव में लोहे की नुकीली कीलें लगी थीं इसलिए जब भी जाटों की नाव जिहादी नाव से टकराती, उनमें सुराख हो जाता था। इस कारण बीच दरिया में जाटों की नावें डूबने लगीं और जाट हार गए। अपने राष्ट्र की रक्षा हेतु कितने जाट बीच दरिया में ही शहीद हुए, इसका आंकड़ा इतिहासकार नहीं देते, किन्तु इतना जरूर बताते हैं कि दरिया का पानी लाल हो गया था। (तबकात-ए-अकबरी, मुन्तखब-उत-तवारीख,फिरिश्ता)

सेकुलरों ने ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की फर्जी बात निकाली थी और दुर्भाग्य से देश के लोग उनके झांसे में आ गए। इस कारण अधिकतर लोग अपने पूर्वजों के साथ होने वाले अत्याचारों को जानने की भी कोशिश नहीं करते। यही कारण है कि भारत के टुकड़े होते जा रहे हैं। यदि हम भारतीय चाहते हैं कि अब भारत का और कोई विभाजन न हो तो हमें अपने इतिहास से सबक लेना ही होगा।

 

  • कपक में उसने (मोहम्मद गोरी) इतना बड़ा नरसंहार किया था कि उसके रक्त की वेगधारा अचानक उसकी तरफ कुछ इस कदर प्रवाहित होने लगी कि उसके सैनिकों को पैर रखने तक की जगह नहीं मिल पा रही थी। (खजाइनुल फुतूह अथवा तारीख-ए-अलाई)
  • जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने हिन्दुओं का कत्ल इतने बड़े पैमाने पर किया था कि उनकी ररक्त की धारा बारिश के पानी की तरह सड़कों पर प्रवाहित होने लगी। बताया जाता है कि प्रचण्ड रूप में प्रवाहित हो रही रक्तधारा से युद्ध क्षेत्र जब कीचड़ में तब्दील हो गया तो उनके नरमुंडों पर पैर रख कर इस दरिन्दे की सेना अपने शिविर में वापस गई थी।
  • पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद दिल्ली में इन्द्रप्रस्थ के पास हिन्दुओं का इतने बड़े पैमाने पर कत्ल किया गया था कि खून की प्रचंड धारा चारों ओर प्रवाहित होने लगी थी।  (ताज-उल-मासिर)
  • सितंबर, 1192 में जतवान नामक स्थल पर इतने हिन्दुओं का कत्ल किया गया था कि पूरे युद्ध क्षेत्र की मिट्टी हिन्दुओं के मांस तथा रक्त से लथपथ हो गयी थी। गोरी और उसके दास ऐबक द्वारा 1203 में झेलम नदी के किनारे हिन्दुओं का इतना कत्लेआम हुआ था कि उनके रक्त की धारा ने नदी की लहरों को भी खून—सा लाल कर दिया था। (ताज-उल-मासिर)
  • 1194 में मोहम्मद गोरी बनारस के राजा, जिसके पास 1,00,000 सेना थी, को परास्त और कत्ल करने के बाद वहां के हिन्दुओं, महिलाओं एवं बच्चों का कत्ल तब तक करता रहा जब तक वहां का कण-कण रक्त से तृप्त नहीं हो गया। (कामिल-उत-तवारीख)
  • सुल्तान गयासुद्दीन बलबन (1266—1286), जिसे तबकात-ए-नासिरी ने उलुग खां बताया है, ने पूरे कटिहार में आग लगा दी थी। वहां के सभी हिन्दुओं, महिलाओं और साथ ही 8-9 वर्ष तक के सभी बच्चों का कत्ल करवा दिया था। फलत: हिन्दुओं का रक्त पूरे कटिहार में फैल गया। प्रत्येक गांव में हिन्दुओं की लाशों का अंबार देखा जा रहा था। लाशों की दुर्गन्ध को दूर स्थित गंगा नदी तक महसूस किया जारहा था। (तारीख-ए-फिरोज शाही)
  • 1298 में अलाउद्दीन खिलजी के भाई उलुग खां के नेतृत्व में इस्लामी सेना ने इस्लाम की खातिर कंबायत के इतने मूर्तिपूजकों का कत्ल किया था कि उनके रक्त की जबरदस्त धारा प्रवाहित होने लगी थी। (तजियात-उल-असर)
  • 1303 में मालवा के राजा महलक देव की हार के बाद खिलजी ने अपने अतिरिक्त सैनिकों को भेज कर इतने हिन्दुओं का सिर काटा था कि पूरी मालवा की धरती खूनी कीचड़ में तब्दील हो गई।
  • अप्रैल,1399 में खिलजी के प्रिय मलिक ने कंदुर के समीप ब्रह्मास्त्रपुरी नामक स्थल पर स्वर्ण से निर्मित एक विशाल मंदिर को लूटने के दौरान हजारों हिन्दुओं का सिर कुछ इस दरिंदगी से काट दिया था कि वे उनकी गर्दन पर ही झूल रहे थे तथा पूरे वेग से प्रवाहित हो रहे रक्त से कातिलों के पैर लथ-पथ हो रहे थे। (खजाइनुल फुतूह अथवा तारीख-ए-अलाई)
  • 1360 में ओडिशा में मंदिरों को खंडित करने के बाद फिरोजशाह तुगलक ने समुद्र किनारे एक द्वीप पर इतने हिन्दुओं का कत्ल किया था कि उनके रक्त से वह द्वीप इस्लाम का बेसिन बन गया था। सभी महिलाओं, जिनके बच्चे अभी गोद में थे या गर्भवती थीं, तक को रस्सी से बांध कर अपने सैनिकों को उपहार में दिया था। (सीरत-ए-फिरोज शाही)
  • 23 फरवरी, 1518 को मांडू में जब हिन्दू आपसी राग-द्वेष मिटाकर प्रेम-सद्भाव के प्रतीक होली के त्योहार को उत्साह और उमंग के साथ मना रहे थे, तब मुजफ्फर ने वहां प्रवेश किया और उसने वहां के 19,000 राजपूतों के सिर धड़ से अलग करवा दिए। फलत: खून इतना गिरा कि वह बारिश के पानी के लिए सड़क किनारे बनाई गई नाली में बहने लगा। (वूल्जले हेग)
  • जैसलमेर के राजा के परास्त हो जाने के बाद हुमायूं ने कितने भारतीयों का कत्ल किया था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब उस रेगिस्तान में मुगल सैनिक प्यास बुझाने कुए के पास गए तो उसके चहुंओर पानी की जगह खून बहता दिख। 
    (मुन्तखब-उत-तवारीख)

इतिहास की इन घटनाओं को छिपाने के लिए ही सेकुलरों ने ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की फर्जी बात निकाली थी और दुर्भाग्य से देश के लोग उनके झांसे में आ गए। इस कारण अधिकतर लोग अपने पूर्वजों के साथ होने वाले अत्याचारों को जानने की भी कोशिश नहीं करते। यही कारण है कि भारत के टुकड़े होते जा रहे हैं। यदि हम भारतीय चाहते हैं कि अब भारत का और कोई विभाजन न हो तो हमें अपने इतिहास से सबक लेना ही होगा।  

(लेखक मुस्लिम कालीन इतिहास के विशेषज्ञ हैं)

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