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मिशनरी की शह पर फूटे अलगाववादी स्वर

by रितेश कश्यप
Feb 10, 2022, 01:59 am IST
in भारत, दिल्ली
चाईबासा में पुलिस थाने के बाहर हंगामा करते ‘कोल्हान देश’ के समर्थक

चाईबासा में पुलिस थाने के बाहर हंगामा करते ‘कोल्हान देश’ के समर्थक

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झारखंड सरकार की लापरवाही से फिर फूटे चाईंबासा में कोल्हान के अलगाववादी स्वर, अलग पुलिस की भर्ती रोकने पर थाने पर हमला,थाना प्रभारी समेत एक दर्जन जवान घायल, घटना के पीछे मिशनरी और नक्सलियों के हाथ के आरोप

जब पूरा  देश गणतंत्र दिवस मना रहा था, तब झारखंड में एक ऐसी घटना घटी, जिसे सुनकर हर भारतवासी दंग रह गया। घटना चाईबासा में 23 जनवरी को घटी। उल्लेखनीय है कि कुछ लोग ‘कोल्हान देश’ के लिए पुलिस और ‘मुंडा’, ‘मानकी’ और ‘हो’ भाषा के शिक्षकों की भर्ती कर रहे थे। कोल्हान पुलिस के लिए 30,000 सिपाहियों और 10,000 भाषा शिक्षकों को नियुक्त किया जाना था। यह सब चाईबासा के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के तहत आने वाली कुर्सी पंचायत के लादुराबासा गांव के एक विद्यालय में चल रहा था।

लंदन तक पहुंची थी मांग

1981 में कोल्हान रक्षा संघ से जुड़े नारायण जोनको, आनंद टोपनो और अश्विनी सवैयां इस मामले को लेकर लंदन और जेनेवा भी गए थे। लंदन में इन लोगों ने राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों से ‘कोल्हान देश’ को समर्थन देने की अपील की थी। यही नहीं, इन लोगों ने उन प्रतिनिधियों को 2 दिसंबर, 1981 को चाईबासा पहुंचने का आमंत्रण भी दिया, ताकि वे ‘कोल्हान देश’ की विधिवत घोषणा कर सकें। इस कारण लंदन से वापस लौटते ही नवंबर, 1981 में आनंद टोपनो और अश्विनी सवैयां को गिरफ्तार कर लिया गया था।

पुलिस तब नारायण जोनको और के. सी. हेंब्रम को गिरफ्तार नहीं कर पायी थी। इन सबके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया गया था।  

जब पुलिस को इसकी जानकारी मिली तो उसने भर्ती प्रक्रिया को रुकवा दिया और चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद लगभग 400 लोगों की भीड़ ने पुलिस थाने पर हमला कर दिया। इसमें थाना प्रभारी पवन चंद्र पाठक सहित एक दर्जन जवान घायल हो गए। सिपाही बृजभूषण मिश्रा की कमर में तीर लगा है। अभी उनकी हालत गंभीर है। इस मामले में अब तक 200 लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई है। प्राथमिकी के अनुसार आनंद चातर मुख्य षड्यंत्रकारी है। प्राथमिकी में आनंद चातर सहित 18 लोगों को नामजद किया गया है। घटना के बाद राज्य की राजनीति भी गरमा गई। भाजपा विधायक बिरंची नारायण ने कहा कि यह सरकार की विफलता है कि कुछ लोग एक अलग ‘देश’ की मांग करने का दुस्साहस कर रहे हैं। यदि सरकार नहीं चेती तो आने वाले समय में स्थिति और भी भयावह होगी। वहीं राज्य सरकार में शामिल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि जैसे ही पुलिस को इसकी जानकारी मिली तो उसने कार्रवाई की।  

   
घटना के संदर्भ में पता चला कि कुछ लोग कोल्हान गवर्नमेंट स्टेट के नाम से समानांतर सरकार चला रहे थे। इसी संगठन के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में ‘कोल्हान देश’ के लिए शिक्षक और पुलिस की भर्ती की जा रही थी। भर्ती प्रक्रिया को पूरी करने में कोबरा बटालियन का एक जवान भी शामिल था, जिसे गिरफ्तार कर लिया गया है। पता चला है कि वह जवान वहां के लोगों को पुलिस का प्रशिक्षण भी देता था।

क्या है ‘कोल्हान देश’
दरअसल, झारखंड में कोल्हान नाम से एक प्रमंडल है। इसके अंतर्गत तीन जिले हैं। ये हैं— पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला—खरसावां। अंग्रेजी शासन के दौरान सर थामस विल्किंसन साउथ वेस्ट फ्रंटियर एजेंसी (छोटानागपुर प्रमंडल) का प्रमुख था। जनजातीय समाज के जानकार और आजसू के संस्थापकों में से एक सूर्य सिंह बेसरा बताते हैं कि उन दिनों मुंडा जनजाति के लोग कोल विद्रोह चला रहे थे। उस विद्रोह को दबाने के लिए विल्किंसन ने सैन्य कार्रवाई की।

इस कारण कोल्हान क्षेत्र के 620 गांवों के मुंडाओं (प्रधान) को ब्रिटिश सेना के समक्ष आत्मसमर्पण करना पड़ा। इसके बाद भी कहीं—कहीं विद्रोह की चिंगारी सुलग उठती थी। तब विल्किंसन को लगा कि इन लोगों को ऐसे नहीं संभाला जा सकता है। इसके बाद उसने 1833 में ‘कोल्हान सेपरेट एस्टेट’ की घोषणा कर चाईबासा को उसका मुख्यालय बना दिया। इसके साथ ही उसने लोगों को अपने पक्ष में करने के उद्देश्य से इस क्षेत्र में पहले से चली आ रही मुंडा-मानकी स्वशासन की व्यवस्था लागू कर दी। इसे ही 'विल्किंसन रूल' कहा गया। इसके तहत सिविल मामलों के निष्पादन का अधिकार मुंडाओं को मिल गया, जबकि आपराधिक मामलों के निष्पादन के लिए मानकी को अधिकृत कर दिया गया।

बेसरा ने यह भी बताया कि कोई भी सरकार सही ढंग से संथाल परगना कास्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट)—1876, छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट)—1908 और विल्किंसन रूल को समझ नहीं पाई है। अगर इन कानूनों को सरकार ने सही तरीके से लागू नहीं किया तो आने वाले समय में ऐसी मांगें और उठ सकती हैं।


रांची के सामाजिक कार्यकर्ता प्रमोद सिंह के अनुसार इसके पीछे मिशनरियों का हाथ है, क्योंकि 40 साल पहले भी 30 मार्च, 1980 को कोल्हान रक्षा संघ के नेता क्राइस्ट आनंद टोपनो, कृष्ण चंद्र हेंब्रम और नारायण जोनको ने विल्किंसन रूल का हवाला देते हुए कहा था कि कोल्हान इलाके पर भारत का कोई अधिकार नहीं बनता। उस वक्त भी उन लोगों ने अंग्रेजों की सरकार पर ही अपनी आस्था जताई थी।


उन्होंने यह भी बताया कि स्वतंत्रता के बाद देसी रियासतों के भारत में विलय के समय कोल्हान क्षेत्र में कोई रियासत प्रभावी नहीं थी। यह इलाका मुगलों के वक्त से ही पोड़ाहाट के राजा की रियासत थी, लेकिन अलग कोल्हान स्टेट बनने के बाद सारे अधिकार मुंडाओं के हाथों में आ गए थे। बाद में पोड़ाहाट के राजा का अस्तित्व भी नहीं रहा। इस कारण कोल्हान इलाके के भारतीय संघ में विलय का कोई मजबूत दस्तावेज नहीं बन सका और इस क्षेत्र में विल्किंसन रूल प्रभावी बना रहा। इसी को आधार बनाकर अलग ‘कोल्हान देश’ की मांग कर दी जाती है।

उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पहले रामो बिरूवा नामक व्यक्ति ने अपने आपको ‘कोल्हान देश’ का राष्ट्रपति घोषित कर ‘कोल्हान देश’ की मांग की थी। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। वहीं उसकी मृत्यु हो गई। उसी का सहयोगी आनंद चातर है। वह भी जेल में था। कुछ दिन पूर्व ही वह जमानत पर जेल से बाहर आया है। इसके बाद वह ‘कोल्हान देश’ के नाम पर पुलिस और शिक्षक की भर्ती कर रहा था।

रांची के सामाजिक कार्यकर्ता प्रमोद सिंह के अनुसार इसके पीछे मिशनरियों का हाथ है, क्योंकि 40 साल पहले भी 30 मार्च, 1980 को कोल्हान रक्षा संघ के नेता क्राइस्ट आनंद टोपनो, कृष्ण चंद्र हेंब्रम और नारायण जोनको ने विल्किंसन रूल का हवाला देते हुए कहा था कि कोल्हान इलाके पर भारत का कोई अधिकार नहीं बनता। उस वक्त भी उन लोगों ने अंग्रेजों की सरकार पर ही अपनी आस्था जताई थी। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि जनजातीय समाज के जो नेता हमेशा से अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ते रहे, वे अचानक अंग्रेजों के समर्थक कैसे बन सकते! इसीलिए इस घटना के पीछे ईसाई मिशनरी का हाथ माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि इसके पीछे नक्सली भी हैं। बता दें कि पूरा कोल्हान क्षेत्र नक्सल प्रभावित है। इसलिए कहा जा रहा है कि ‘कोल्हान देश’ की मांग के पीछे इन्हीं लोगों का हाथ है।

यह भी बता दें कि लगभग चार साल पहले झारखंड के कई जिलों में जनजातियों की एक बहुत ही प्राचीन परम्परा पत्थरगड़ी की आड़ में लोगों को उकसाया गया था। किसी गांव में चर्च और नक्सली संगठनों के लोग पत्थरगड़ी कर कहते थे कि यहां गांव वालों की अनुमति के बिना किसी का भी प्रवेश निषेध है। भाजपा की तत्कालीन सरकार ने पत्थरगड़ी करने वालों की ठीक से खबर ली और अनेक को जेल में बंद कर दिया। इसके बाद पत्थरगड़ी बंद हो गई। नवंबर, 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने। उन्होंने सबसे पहला काम पत्थरगड़ी के आरोप में बंद लोगों को जेल से छोड़ने का किया। इस कारण ऐसे तत्वों का दुस्साहस बढ़ा और वह दुस्साहस ‘कल्हान देश’ की मांग तक पहुंच गया है। 

रितेश कश्यप
Correspondent at Panchjanya | Website

दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।

 

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