उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल रंग पकड़ रहा है। परंतु भाजपा विरोधी दलों के पास ठोस मुद्दों का अभाव दिख रहा है। ऐसे में मुद्दे गढ़ने की कोशिश हो रही है। ऐसी ही कोशिश में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कुर्ते की जेब में अन्न की पोटली ले कर चल रहे हैं। राजनीतिक कार्यक्रमों में अन्न की पोटली लोगों के हाथ में देकर किसानों के हित में शपथ दिला रहे हैं। उन्होंने घोषणा की है कि अगर उनकी सरकार बन गई तो किसानों के जीवन को खुशहाल कर देंगे। दरअसल अतीत में हुए किसान आंदोलन को दृष्टिगत रखते हुए अखिलेश मान रहे हैं कि किसान सरकार से नाराज होंगे। परंतु वे यह भूल जाते हैं कि वह आंदोलन योगी सरकार से किसी तरह की नाखुशी के चलते नहीं था बल्कि मात्र संसद द्वारा पारित चुनिंदा कानूनों के विरुद्ध था, दूसरे उसमें आम किसानों की सहभागिता भी नहीं थी।
अब चुनाव में इसे मुद्दा बनाने की कोशिश में जुटे अखिलेश यादव यह भी भूल जाते हैं कि योगी सरकार से ठीक पहले वे 5 वर्ष तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। किसान हित को मुद्दा बनाते समय वे यह नहीं बता पाते हैं कि उनकी सरकार में गन्ना किसान अपनी फसलों को आग के हवाले क्यों कर रहे थे? वर्ष 2017 में उनकी सरकार का कार्यकाल जब समाप्त हुआ, तब गन्ना किसानों का 15 हजार करोड़ रुपये बकाया क्यों था?
गन्ना किसानों का भुगतान बढ़ा
इस मुद्दे पर जब वर्तमान सरकार का आकलन करते हैं तो अखिलेश के बयान से बिल्कुल उलट तस्वीर नजर आती है। योगी सरकार ने गन्ना किसानों को अपने कार्यकाल में 1 लाख 12 हजार 829 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया। आज चीनी उत्पादन में यूपी, देश में पहले नंबर पर है। इसके साथ ही आज 70 करोड़ लीटर एथनॉल उत्पादन करके भी यूपी देश में पहले नम्बर पर आ गया है। प्रदेश में लॉकडाउन के दौरान एक भी चीनी मिल बंद नहीं हुई। सभी 119 चीनी मिलें चलीं और लॉकडाउन में भी 5,954 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। पिछली सरकारों में 2007 से 2017 तक 21 चीनी मिलें बंद की गईं जबकि योगी सरकार नें बंद पड़ी बीस चीनी मिलों को फिर शुरू कराया। पिपराइच-मुंडेरवा में नई चीनी मिलें लगाई गईं। खांडसारी उद्योग को बढ़ावा देते हुए 243 नई खांडसारी इकाइयों को लाइसेंस जारी किए गए।
मऊ जनपद के किसान अरुण कुमार राय कहते हैं ‘गन्ना समितियों की संपत्तियों पर अतिक्रमण हो रहा था और समितियों को कब्जा हासिल करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। योगी सरकार ने गन्ना समितियों को अवैध माफियाओं के कब्जे से मुक्त कराया।’ बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना समितियों की सभी 968 सम्पत्तियों को चिन्हित कर उनकी जियो-मैपिंग कराई। इसके बाद इन सम्पत्तियों में से 65 अतिक्रमित सम्पत्तियों को भू-माफिया पोर्टल पर दर्ज कराया गया। इनमें से 16 करोड़ रुपये की 33 सम्पत्तियां अवैध कब्जे से अभी तक मुक्त कराई गई हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह कहते हैं कि ‘जनता की नजरों से गिर चुकी समाजवादी पार्टी इन दिनों किसान आंदोलन की भूमि पर वोट बैंक की खेती करने की कोशिश कर रही है। अखिलेश यादव जब तक सत्ता में रहे, किसान कभी भी उनकी प्राथमिकता में नहीं रहा। किसानों के हितों पर कुठाराघात करने का एक भी अवसर नहीं छोड़ा। पिछली सरकार की तुलना में योगी सरकार ने छह गुना अधिक धान की खरीद सुनिश्चित की है। यही नहीं, प्रदेश में 102 मक्का क्रय केंद्रों से अब तक किसानों से 3 लाख 52 हजार क्विंटल से अधिक मक्का की खरीद की जा चुकी है।’
सहारनपुर जनपद के किसान विकास त्यागी बताते हैं कि ‘पहले कागज की गन्ना पर्ची किसानों को दी जाती थी। अब गन्ना पर्ची एसएमएस पर भेजी जा रही हैं। यह काफी सुविधाजनक है’। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के लगभग 45 लाख गन्ना आपूर्तिकर्ता कृषकों को समय से एसएमएस गन्ना पर्ची उपलब्ध कराई गई। लापरवाही करने वाली चीनी मिलों पर कार्रवाई भी कई गई। अपर मुख्य सचिव गन्ना, संजय. आर. भूसरेड्डी ने बताते हैं कि ‘वर्ष 2021 के अगस्त माह में मलकपुर बागपत, चीनी मिल, गड़ौरा- महराजगंज चीनी मिल, सिम्भावली समूह की चिलवरिया-बहराइच चीनी मिल समेत कुछ चीनी मिलें लापरवाही कर रही थीं। इन सभी के विरुद्ध रिकवरी जारी की गई।’
कर्जमाफी, अनुदान, ऊर्जा की सुविधा बढ़ी
वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने किसानों की कर्ज माफी के मुद्दों को अपने संकल्प पत्र में रखा और जैसे ही सरकार बनी, प्रदेश के लघु एवं सीमान्त किसानों पर बकाया 36 हजार करोड़ रुपये माफ कर दिया। सहारनपुर जनपद के किसान दीपक शर्मा बताते हैं कि ‘उत्तर प्रदेश सरकार में भाजपा की सरकार बनते ही किसानों का कर्जा माफ किया गया। जिस किसान का जितना कर्ज शेष रह गया था, वो कर्ज सरकार ने माफ कर दिया। इससे छोटे और मझोले किसानों को काफी राहत हुई।’
किसानों को नवीनतम यांत्रिक अविष्कारों का लाभ मिले, इसके लिए सरकार ने 158 करोड़ रुपये का अनुदान देते हुए दलहन और तिलहन किसानों को साढ़े चालीस हजार कृषि यंत्र वितरित कराया। झांसी जनपद के किसान वीर सिंह सेंगर ने बताया कि ‘प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने से पहले केवल गेहूं और धान की खरीद की जाती थी। पहली बार प्रदेश में उड़द और मूंग की दाल की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर की गई।’ कृषि यंत्रीकरण के जरिए श्रम पर होने वाली लागत घटे, इसके लिए सरकार कृषि यंत्रों पर भारी अनुदान दे रही है।
प्रदेश के जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है, वहां पर मौसमी सब्जियों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 20 हजार सोलर पम्प लगवाए गए। दो से तीन हार्स पावर के सोलर पम्प 70 प्रतिशत अनुदान पर दिए गए। 5 हार्स पावर के सोलर पम्प 40 प्रतिशत अनुदान पर दिए गए। बुंदेलखंड के झांसी जनपद के किसान वीरेंद्र रावत बताते हैं कि ‘बुंदेलखंड में बारिश कम होती है। मगर बीते पांच वर्षों में कम पानी के प्रयोग से मौसमी सब्जियों की खेती ने इस क्षेत्र के किसानों को नई राह दिखाई है।’
सिंचाई के लिए अभूतपूर्व कार्य
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हाल के वर्षों में जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई, लोगों ने तालाबों को पाट कर कब्जा कर लिया जिसकी वजह से बीते कुछ दशकों में बारिश का पानी भू-जल तक ठीक से नहीं पहुंच रहा था। इस समस्या को दूर करने के लिए खेत-तालाब योजना के अंतर्गत बुंदेलखंड में तालाब खुदवाए गए। तालाब का जल किसानों और पशुओं के लिए उपयोगी साबित हो रहा है। इसके साथ ही भूजल स्तर में भी सुधार हुआ है। बुंदेलखंड के किसान ब्रज किशोर बताते हैं कि ‘हम लोगों का क्षेत्र पानी की कमी के कारण हमेशा पिछड़ा रहा मगर अबकी बार प्रदेश सरकार ने हर घर को नल से जल की योजना शुरू की और तालाब खुदवाए जिसकी वजह से बुंदेलखंड में काफी विकास हुआ है।’
कम पानी का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने की दृष्टि से किसानों को स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति के लिए प्रेरित किया गया। केंद्र सरकार की इस योजना के माध्यम से प्रदेश सरकार, लघु एवं सीमान्त किसानों को 90 प्रतिशत अनुदान पर स्प्रिंकलर मुहैया कराया जबकि सामान्य किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान पर स्प्रिंकलर उपलब्ध कराया गया।
खाद के मोर्चे पर किसानों को सुविधा
खाद के लिए किसानों को लम्बी कतारों में इन्तजार करना पड़ता था। कईझ्रकई बार तो अव्यवस्था हो जाने पर किसानों पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया। उस समय तक यूरिया को कई अन्य कार्यों में प्रयोग किया जाता था, इसलिए यूरिया खाद की किल्लत
रहती थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समस्या से देश के किसानों को राहत दिलाई। खाद के अतिरिक्त यूरिया का अन्य कोई इस्तेमाल न होने पाए, इसके लिए यूरिया की शत-प्रतिशत नीम कोटिंग की गई। कोरोना महामारी के दौरान ट्रांसपोर्ट पर असर पड़ा। इस कारण से अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर खाद की कीमतें बढ़ गईं। किसानों को आर्थिक रूप से राहत दी गई। केन्द्र सरकार द्वारा यूरिया के लिए सब्सिडी में 33 हजार करोड़ रुपये की वृद्धि की गई।
किसानों का सम्मान, मंडियों का उन्नयन
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पीएम किसान सम्मान योजना के अंतर्गत अब तक दो करोड़ से अधिक किसानों को लाभान्वित किया जा चुका है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना लागू होने के बाद यह देखने में आया कि कुछ किसानों को दस्तावेज के कारण योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था। उत्तर प्रदेश सरकार ने ऐसे 3 लाख 70 हजार से अधिक किसानों को चिन्हित किया। कागजात एवं अन्य किसी तकनीकी गलतियों के कारण ये किसान पीएम-किसान योजना से वंचित थे। इतनी बड़ी संख्या में किसानों की समस्या समाधान कर उत्तर प्रदेश, देश में नम्बर एक स्थान पर पहुंच गया है। केंद्र सरकार ने इसके लिए राज्य सरकार की सराहना की है। बीमा योजना के दायरे में पहली बार बंटाईदारों को शामिल किया गया। इसके अंतर्गत किसी किसान को अधिकतम पांच लाख रुपये तक की बीमा सुरक्षा मिलेगी। यूपी में चार करोड़ से अधिक किसानों के पास मृदा कार्ड है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने 100 मंडियों को इन्टरनेट से जोड़ा है। जो मंडियां आनलाइन हो चुकी हैं, वहां से किसान सीधे तौर पर अपना उत्पाद बेच सकते हैं। आनलाइन बिक्री करने के लिए यूनीफाइड लाइसेंस बनाया जाता है। इसका शुल्क पहले 1 लाख रुपये हुआ करता था। अब उसे घटाकर 10 हजार रुपये कर दिया गया है।
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