बड़ी खामोशी के साथ चीनी ड्रैगन दुनिया भर के छोटे देशोें, खासकर भारत के ठीक पड़ोस के देशों को अपने पैसे के रौब से बिल्कुल दबा देने की शातिर चाल चल रहा है। गरीब, भूख से बेहाल, विकास से कोसों दूर अफ्रीकी देशों की हालत देख लीजिए। कौन सा देश है जहां चीन विकास के नाम पर कर्जा नहीं बांट रहा? कौन सा देश है जहां के सड़क—पुल और सरकारी इमारतें आसमान छूते दामों पर चीन की कंपनियां नहीं बना रहीं? किस अफ्रीकी देश की सरकार है जो चीन की 'पैसे से मदद करने की' नरमाई भरी बातों में नहीं उलझी?
भारत के पड़ोस में पाकिस्तान का मामला एक बार के लिए अलग रख भी दें तो कौन सा ऐसा देश है जो चीन की 'मदद' के जाल में नहीं फंसा है? नेपाल इन दिनों उबल रहा है। वहां के देशभक्त लोग चीन की चालाक नीतियों के अदृश्य शिकंजे के विरुद्ध सड़कों पर उतरकर विरोध प्रकट कर रहे हैं! वे कह रहे हैं कि नेपाल की सरकार भरोसेमंद और ऐतिहासिक रूप से मित्र रहे भारत से निकटता रखे, न कि धूर्त चीन के साथ।
भूटान के सीमांत इलाकों पर चीन की तिरछी नजर है, कुछ अपुष्ट खबरें तो बताती हैं, वहां कुछ गांव बसा लिए हैं ड्रैगन ने! डोकलाम में चीनी घुसपैठ बार—बार देखी गई है। श्रीलंका को बीजिंग ने कर्जे के बोझ से ऐसा दबा रखा है कि उसकी अर्थव्यवस्था सांसत में आ गई है। एक बड़े थिंक टैंक का तो यहां तक कहना है कि ज्यादा समय नहीं लगेगा, जब श्रीलंका का आर्थिक संकट मानवीय संकट बन जाएगा। वहां ईधन से लेकर ढांचागत विकास की परियोजनाओं के लिए चीन अपनी शर्तों पर कर्जा देता रहा है और श्रीलंका की कमजोर नीतियों का वह फायदा उठाता रहा है।
अभी बात करते हैं श्रीलंका की। जैसा पहले बताया, एक बड़े थिंक टैंक का मानना है कि वहां के मौजूदा आर्थिक संकट के लिए सिर्फ और सिर्फ चीन की 'कर्ज नीति' जिम्मेदार है। अमेरिका के इस थिंक टैंक ने एक तरह से बिगड़ते हालात के प्रति श्रीलंका की सरकार को सावधान किया है। उसने कहा है कि श्रीलंका में गहराते आर्थिक संकट को देखते हुए द्वीप पर बसे इस देश को अपनी अर्थव्यस्था पर नए सिरे से सोचने की जरूरत है, जो फिलहाल चीन के कर्ज के जाल में फंसती जा रही है।
अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन स्थित जाने—माने थिंक टैंक 'ग्लोबल स्ट्रैट व्यू' ने अपने ताजा विश्लेषण में कहा है कि श्रीलंका का वित्तीय संकट धीरे—धीरे मानवीय संकट की तरफ बढ़ रहा है। हालत यह हो सकती है कि देश दिवालिया हो जाए। कुछ अर्थ विश्लेषकों का कहना है कि देश में इस भयंकर आर्थिक संकट के लिए शुरुआती तौर पर चीन की वही गरीब और मुसीबत में फंसे छोटे देशों को कर्ज के जाल में फंसाने की शैतानी नीति ही जिम्मेदार है।
थिंक टैंक 'ग्लोबल स्ट्रैट व्यू' ने अपने ताजा विश्लेषण में कहा है कि श्रीलंका का वित्तीय संकट धीरे—धीरे मानवीय संकट की तरफ बढ़ रहा है। हालत यह हो सकती है कि देश दिवालिया हो जाए। कुछ अर्थ विश्लेषकों का कहना है कि देश में इस भयंकर आर्थिक संकट के लिए शुरुआती तौर पर चीन की वही गरीब और मुसीबत में फंसे छोटे देशों को कर्ज के जाल में फंसाने की शैतानी नीति ही जिम्मेदार है। |
जानकारी के अनुसार, 2014 के बाद श्रीलंका का विदेशी कर्ज धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हुआ था जो 2019 में सकल घरेलू उत्पाद का 41.3 प्रतिशत हो चुका था। श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में भी तेजी से गिरावट आती जा रही है। यह आज सिर्फ 1.6 अरब डालर रह गया है। कहीं ऐसा न हो कि सिर्फ कुछ हफ्तों बाद ही इस देश को अत्यंत आवश्यक सामान बाहर से आयात करना पड़े। फिलहाल इस देश पर विदेशी कर्ज का बोझ सात अरब डालर से आगे निकल गया है। इनमें बांड का भुगतान भी शामिल है।
उल्लेखनीय है कि श्रीलंका में नवंबर 2021 में महंगाई दर 9.9 प्रतिशत थी, जो अगले महीने 12.1 प्रतिशत हो गई। इस बीच खाने—पीने की चीजें 22 प्रतिशत महंगी हो गईं। रिपोर्ट बताती है कि नकदी के संकट से गुजर रहे श्रीलंका के आयातकों को बेहद जरूरी सामान के कंटेनरों को देने के लिए पैसे की तंगी महसूस हो रहा है। इस वजह से उत्पादकों तक कच्ची माल नहीं पहुंच पा रहा है।
ग्लोबल स्ट्रैट व्यू की रिपोर्ट में लिखा है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के बदतर होने में चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियेाजना (बीआरआइ) भी बहुत हद तक दोषी है। चीन की पहल पर शुरू हुईं परियोजनाओं की वजह से भी श्रीलंका चीन के कर्ज के जाल में फंसता गया। रिपोर्ट में श्रीलंका के सबसे बड़े बंदरगाहों में से एक हंबनटोटा पोर्ट परियोजना का हवाला दिया गया है जिसके माध्यम से ड्रैगन श्रीलंका का चौथा सबसे बड़ा कर्जदाता बन गया है।
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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