पिछले दिनों अमेरिका जाने वाली अनेक देशों की हवाई उड़ानों को 5जीसे जुड़ी हुई कुछ चिंताओं के चलते रद्द कर दिया गया था। इनमें एयर इंडिया की उड़ानें भी थीं। दूरसंचार तकनीक 5जीको लेकर के पिछले कुछ महीनों से चली आ रही तमाम चिंताओं में सबसे खास यह है कि इसके विद्युत चुंबकीय विकिरण से लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। आलोचकों ने यहां तक कहा है कि इससे कैंसर भी हो सकता है। बहरहाल इस समय विवाद स्वास्थ्य से जुड़ा नहीं है बल्कि विमानों की सुरक्षा को लेकर है।
किंतु मुद्दा क्या है? असल में विमानन उद्योग की चिंताएं 5जीकी तकनीक को लेकर नहीं बल्कि उसकी फ्रीक्वेंसी के स्तर को लेकर हैं। 5जी दूरसंचार तकनीक को तीन बैंड-लो (न्यूनतम), मिडिल (माध्यमिक) और हाई (उच्चतम) पर प्रयुक्त किया जाता है। इन तीनों की फ्रिक्वेंसी अलग-अलग होती है। फ्रीक्वेंसी का मतलब विद्युत चुंबकीय विकिरण की रेंज या दायरा। इसे मेगाहर्ट्ज और गीगाहर्ट्ज के जरिए मापा जाता है। लो फ्रिक्वेंसी 1 गीगाहर्ट्ज से नीचे है जबकि मिडल फ्रिक्वेंसी1 से 6 गीगाहर्ट्ज के बीच मानी जाती है। हाई फ्रिक्वेंसी 6 गीगाहर्ट्ज से ऊपर गिनी जाती है। विमानन उद्योग को लो बैंड से कोई समस्या नहीं है। उसकी आपत्ति मिडल बैंड पर है। लेकिन इस आपत्ति को समझने के लिए पहले पूरा संदर्भ समझना जरूरी है।
अमेरिका में 5जी को शुरू किया जा चुका है और इसके लिए मिडिल बैंड का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह फ्रिक्वेंसी काफी ताकतवर है और तेज रफ़्तार से डेटा ट्रांसफर की क्षमता रखती है। इसे आप सौ मेगाबिट प्रति सेकंड से लेकर 500 मेगाबिट प्रति सेकंड तक गिन सकते हैं। हाई फ्रिक्वेंसी में डेटा ट्रांसफर की रफ्तार एक गीगाबिट प्रति सेकंड तक चली जाती है। कुछ देशों में 5जी के लो बैंड का प्रयोग किया जा रहा है लेकिन 5जी के लो बैंड और 4जी के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं है- ज्यादा से ज्यादा तीन-चार गुना अंतर मान लीजिए। लेकिन मिडल बैंड में यह अंतर दस गुना या उससे भी अधिक हो जाता है। इसीलिए अमेरिका की दूरसंचार कंपनियां- वेरीजॉन और एटी एंड टी मिडल बैंड पर 5जी की दूरसंचार सेवाएं दे रही हैं।
टी मोबाइल एक अन्य कंपनी है जो जल्द ही 5जी सेवाएं देना शुरू करेगी।
अब आते हैं विमानन उद्योग की आपत्ति पर। अमेरिका के हवाई अड्डों पर 5जी के टावर लगाए गए हैं जो मिडल बैंड का प्रयोग कर रहे हैं। जाहिर है कि इनकीविद्युत चुंबकीय किरणें हवाईअड्डे और उनके निकटवर्ती क्षेत्र में प्रसारित हो रही हैं। विमानन उद्योग को डर है कि ये विकिरण उनके विमानों के संचालन में दिक्कत पैदा कर सकते हैं और उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। दरअसल उड़ान के दौरान विमान की ऊंचाई मापने के लिए आल्टीमीटर नामक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का प्रयोग होता है। इसमें 5जी के मिडल बैंड के समान फ्रिक्वेंसी का प्रयोग होता है। विमान के उतरते समय यह उपकरण खास तौर पर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और कम दृश्यता, खराब मौसम, तेज बारिश या तूफान या फिर अंधेरे के समय इसकी उपयोगिता अपरिहार्य हो जाती है। तब पायलट विमान को उतारने के लिए अपने अनुभव के बजाय तकनीक पर ही लगभग पूरी तरह निर्भर रहता है।
कुछ विमानों को तो 5जी के विकिरणों के हस्तक्षेप से मुक्त माना गया है और उनकी विनिमार्ता कंपनियों ने ऐसे विमानों की सूची भी मुहैया कराई है। लेकिन कुछ विमान, जैसे बोइंग 777, ऐसे हैं जिनके बारे में संदेह है कि उनके उपकरणों के कामकाज में 5जी के विकिरणों के कारण विक्षोभ पैदा हो सकता है। यात्रियों की सुरक्षा के मद्देनजर इन कंपनियों ने अमेरिका के 5जी प्रयोग करने वाले हवाईअड्डों पर उड़ानें रद्द करने की घोषणा की।
विमानन उद्योग का कहना है कि हवाईअड्डा क्षेत्रों में दूरसंचार कंपनियों को लो बैंड पर काम करना चाहिए, ताकि उड़ानें बेअसर रहें। तीन दर्जन से अधिक देशों में 5जी की शुरूआत हो चुकी है लेकिन वहां या तो लो बैंड फ्रिक्वेंसी का प्रयोग किया जा रहा है या फिर हवाईअड्डों के पास उच्च फ्रिक्वेंसी से बचा जा रहा है। कुछ देशों में दूरसंचार टावरों को ऐसे कोण पर स्थापित किया गया है कि वे वहां उतरने वाले विमानों को प्रभावित न कर सकें। अमेरिका के मामले में भी ऐसा ही कोई समाधान निकलने की उम्मीद है। हालांकि 5जी से जुड़े इस विवाद ने इस दूरसंचार तकनीक के प्रति फैली अनेक अफवाहों और आशंकाओं को एक बार फिर हवा दे दी है।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट में निदेशक-भारतीय भाषाएं सुगमता हैं)
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