उत्तराखंड में 14 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार,कोविड बंदिशों के चलते कुछ फीका जरूर है,लेकिन डिजिटल तकनीक और कार्यकर्ताओं की मेहनत से ही राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों का जनसंपर्क मतदाताओं तक पहुंच रहा है।
उत्तराखंड मेंभाजपा के सामने वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सत्ता में वापसी की चुनौती है। भाजपा को इसका लाभ भी मिल रहा है कि उनके पास मुख्यमंत्री पद के लिए एक युवा चेहरा है जिसने पिछले छह माह में जनसेवा करके,मतदाताओं को ये विश्वास दिला दिया है कि युवा नेतृत्व ही उत्तराखंड की तस्वीर बदल सकता है। धामी अपने एक हाथ में फ्रÞैक्चर के बावजूद सड़कों पर दुकान-दुकान, घर-घर जाकर प्रत्याशियों के लिए वोट मांग रहे हैं। भाजपा ने नारा दिया है ‘मोदी के साथ धामी सरकार’।
उधर कांग्रेस किसके नेतृत्व में उत्तराखंड में चुनाव लड़ रही है, इसे लेकर मतदाताओं में संशय बना हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खुद को ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया है जिसपर कांग्रेस नेता ही उनकी हैसियत पर सवाल खड़े करते हैं। उन्हें हाईकमान ने रामनगर से टिकट दिया जहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ही उनका विरोध कर दिया और उन्हें वहां से भाग कर लालकुआं से चुनाव लड़ना पड़ा, जहां पहले घोषित कांग्रेस प्रत्याशी संध्या डालाकोटी उनके सामने ही निर्दलीय खड़ी हो गईं। ब्राह्मण समाज को हमेशा कोसने वाले हरीश रावत के लिए पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा है कि लालकुआं,हरीश रावत की राजनीतिक मौत का कुआं बनने जा रहा है।
उत्तराखंड में तीसरी शक्ति के रूप में आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी,समाजवादी पार्टी और क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल के बीच अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा होने जा रही है। कुछ सीटोंपर बागी भी भाजपा-कांग्रेस का चुनावी नतीजों को प्रभावित करने जारहे हैं।
मैदानी क्षेत्र के उधम सिंह नगर,हरिद्वार,देहरादून और नैनीताल जिले की 26 सीटों पर सपा और बसपा चुनाव के नतीजों पर असर डाल सकती है, जबकिं पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं आआपा और कहीं उक्रांद प्रत्याशी व्यक्तिगत छवि के आधार पर चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं।
उत्तराखंड के70 विधानसभा क्षेत्रों में कुछ में तो एक लाख मतदाता भी नहीं है और जब यहां 60 से 70 प्रतिशत मतदान होता है तो हार-जीत का अंतर हजार मतों का भी नहीं रहता। ऐसे में बसपा,सपा या आप जैसे दलों के प्रत्याशियों को मिलने वाले वोट भाजपा-कांग्रेस का खेल बिगाड़ देते हैं।
उत्तराखंड में पिछली बार 70 सीटों में से भाजपा को 57 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला था। प्रधानमंत्री मोदी की उत्तराखंड की जनता से डबल इंजन की सरकार देने की अपील ने इतना बड़ा जनादेश दिया था। पीएम मोदी ने एक लाख चालीस हजार करोड़ की योजनाएं में शुरू करवा कर उत्तराखंड की जनता से किया अपना वादा पूरा किया है। प्रधानमंत्री केदारनाथ मंदिर के सामने खड़े हो कर जनता को ये विश्वास दिलाकर गए हैं कि अगला दशक उत्तराखंड का होगा और जब ये राज्य 2025 में अपनी रजत जयंती मनाएगा, तो ये देश के अग्रणी राज्यों में खड़ा होगा।
प्रधानमंत्री मोदी के विश्वास पर उत्तराखंड की जनता एक बार फिर वोट करेगी, ऐसा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का मानना है।श्री धामी कहते हैं किकेंद्र की योजनाओं को पूरा करने के लिए राज्य में भाजपा सरकार जरूरी है,वरना विपक्ष का इतिहास सभी को मालूम ही है।भाजपा को अपने कार्यकतार्ओं की फौज का फायदा मिल रहा है। बूथ प्रबन्धन में भाजपा ने ज्यादा मेहनत की है, कोविड पाबंदियों में भाजपा कार्यकतार्ओं की मेहनत का कोई सानी नहीं है।
भाजपा ने विकास के कार्यों के साथ-साथ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाया है जिसका जवाब कांग्रेस नहीं दे पा रही है। उत्तराखंड में बड़ी संख्या में भूतपूर्व सैनिक हैं जो मोदी सरकार की नई रक्षा और सैनिक परिवारों के लिए बनाई नीतियों से प्रभावित हैं।वहीं केदारनाथ-बद्रीनाथ को संवारने का काम शुरू होने और हरिद्वार के कायापलट से हिंदुत्व का मुद्दा मतदाताओं के मन में बस गया है।
बड़े कांग्रेसी नेताओं ने नहीं किया उत्तराखंड का रुख
उत्तराखंड में चुनाव घोषित होने से पहले प्रधानमंत्री मोदी तीन बड़ी जनसभाएं कर गए,राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह आदि बड़े भाजपा नेताओं का प्रवास रहा,लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं ने उत्तराखंड का रुख नहीं किया।एक जनसभा के बाद राहुल विदेश चले गए, प्रियंका-सोनिया झांकने तक नहीं आईं। इससे कांग्रेस कार्यकतार्ओं में हताशा रही। इसी वजह से कई पूर्व विधायक भाजपामें शामिल हो गएजिनमें पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सरिता आर्य प्रमुख हैं। इन्हें भाजपा ने टिकट भी दिया है।
भाजपा का 60प्लस का लक्ष्य
भाजपाने इस बार 60 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक कहते हैं कि कांग्रेसीनेता एक-दूसरे को ही निपटाने में लगे हैं, उनके पास कोई मुद्दा नहीं है। प्रदेश संगठन मंत्री अजेय कुमार कहते हैं किभाजपा की जीत सुनिश्चित है। हमारे पास कर्मठ कार्यकर्ता हैं और धामी जैसा युवा मुख्यसेवक है जिन्होंने अपने कार्यकाल से ये बता दिया है कि हमारा विजन सिर्फ विकास करना है। ल्ल
कांग्रेस का मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने का वादा
कांग्रेस चुनाव प्रचार के दौरान उत्तराखंड में मुस्लिम यूनिवर्सिटी की पैरवी कर रही है। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष अकील अहमद ने दावा किया कि उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश प्रभारी ने ये वादा किया है कि कांग्रेस सत्ता में आई तो सहसपुर विधानसभा के सेलाकुई क्षेत्र में मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना करेंगे।
कांग्रेस उपाध्यक्ष का ये वीडियो बयान उत्तराखंड में ही नहीं, बल्कि देशभर में वायरल हुआ,जिसपर उत्तराखंड की चुनावी राजनीति में गर्मी आगई। दरअसल अकील अहमद ने सहसपुर से अपना नामांकन किया था।यहां कांग्रेस ने अपने प्रदेश कोषाध्यक्ष आर्येन्द्र शर्मा को मैदान में उतारा था। मुस्लिम वोट न बंटे, इसलिए कांग्रेस नेताओं हरीश रावत,देवेंद्र रावत ने अकील अहमद को मनाते हुए उनकी कुछ शर्तों को मान लिया जिनमें ये शर्त भी थी कि सहसपुर में मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाई जाएगी। अकील अहमद को नाम वापसी के दिन ही प्रदेश का उपाध्यक्ष भी मनोनीत किया गया।जब उनके समर्थकों ने उनका स्वागत किया, तब अकील ने बताया कि किन शर्तों पर उन्होंने नामांकन वापस लिया।यही नहीं, अकील अहमद ने आयेंद्र शर्मा के समर्थन में आयोजित जनसभाओं में भी मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बातें कहीं।
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