मेरी आवाज़ ही पहचान है…

Published by
Sudhir Kumar Pandey

नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा
मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे

फिल्म किनारा का ये गीत लिखा था गुलजार जी ने और संगीतकार थे राहुलदेव बर्मन।  इसे गाया था लता मंगेशकर जी ने। मेरी आवाज ही पहचान है… ये बोल तो जैसे लता मंगेशकर जी के लिए ही बने थे। करीब आठ दशक तक सिने जगत को हजारों गाने उन्होंने दिए। 

भारत रत्न और स्वर कोकिला लता जी के लिए जितना भी लिखा जाए उतना कम है। चार पीढ़ियों ने उनके गाने सुने। या यूं कहें कि उनके गीत जीवन के साथ कदमताल करते चलते हैं। ज्योति कलश छलके…. ऐ मालिक तेरे बंदे हम…पंख होते तो उड़ जाती…। ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी.. गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस पर बजने वाले इस गीत से साक्षात्कार बचपन में ही हो जाता है। इस गीत के साथ ही आंखें भर आती हैं। कहते हैं कि जब लता दी ने कवि प्रदीप के इस गीत को दिल्ली में पहली बार गाया था तब वहां मौजूद श्रोताओं की आंखें भर आई थीं। लता जी के साथ एक किंवदंती भी चली थी। यह  उनकी आवाज का ही जादू था कि लोग यहां तक कहते थे कि लता जी का गला करोड़ों में बिक चुका है। उनके निधन के बाद उनके गले पर वैज्ञानिक शोध करेंगे कि वह इतना अच्छा कैसे गा लेती हैं। यह किंवदंती बचपन में हो सकता है कि आपने भी सुनी हो। प्रख्यात अभिनेता आशुतोष राणा ने लता जी को श्रद्धांजिल देते हुए लिखा कि 

गायक नहीं वे गीत थीं
संगीतज्ञ नहीं संगीत थीं।

लता को पलटने पर ताल होता है, लय और ताल की प्रतिमान, स्वर और साधना का प्रतिबिंब श्रद्धेय लता दीदी को भावभीनी श्रद्धांजलि। आप थीं, हैं और सदा रहेंगी। शत शत नमन।

वास्तव में लता जी गीत थीं, संगीत थीं और ताल थीं। उनकी विनम्रता, उनकी सादगी, हिंदी के प्रति उनका लगाव और सोशल मीडिया पर उनके ट्वीट का लोग इंतजार करते थे। उनके ट्वीट हिंदी में ही होते थे। एक जनवरी को उन्होंने ट्विटर पर एक वीडियो अपलोड किया था। उसमें वह अपने पिताजी के बारे में बता रही हैं। वह मजहब और देश की सीमा से परे थीं, इसलिए पाकिस्तान में भी उनके निधन पर आंखें नम हैं। अटलजी को वह पितातुल्य मानती थीं। अटल जी की जयंती पर उन्होंने एक वीडियो अपलोड किया था। उसके स्वर थे.. टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर..

16 दिसंबर 1941 को उन्होंने रेडियो के लिए पहली बार गीत गाए थे। इसकी जानकारी उन्होंने स्वयं ट्विटर पर दी थी। वह लिखती हैं कि 16 दिसंबर 1941 को ईश्वर का, पूज्य माई और बाबा का आशीर्वाद लेकर मैंने रेडियो के लिए पहली बार स्टूडिओ में २ गीत गाए थे। आज इस बात को 80 साल पूरे हो रहे हैं। इन 80 सालों में मुझे जनता का असीम प्यार और आशीर्वाद मिला है। मुझे विश्वास है कि आपका प्यार, आशीर्वाद मुझे हमेशा यूँही मिलता रहेगा।

 

संगीतकार, गीतकार, कवियों के जन्मदिन वह याद दिलाती रहती थीं। जितना अच्छा स्वर था उतने ही अच्छे शब्दों का वह चयन करती थीं। उन्होंने पंचम दा की पुण्यतिथि पर चार जनवरी को एक ट्वीट किया था। मासूम फिल्म का गीत था- तुझसे नाराज नहीं जिंदगी, हैरान हूं मैं

 

लता जी का जन्म इंदौर में हुआ था। उनके निधन पर मध्य प्रदेश में दो दिन के राजकीय शोक की घोषणा की गई है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि स्वर कोकिला आदरणीय लता मंगेशकर जी नहीं रहीं। स्वर के महायुग का अंत हो गया। 

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि लता दीदी आपके बिना यह देश सूना है, गीत-संगीत सूने हैं, हर घर सूना है, ह्रदय घट सूना है। आपकी कमी कभी कोई पूरी नहीं कर सकता। गीत-संगीत की देवी मानकर आप की पूजा करते रहेंगे। देश ही नहीं, समूचे विश्व ने एक ऐसी स्वर साधिका को खो दिया, जिन्होंने अपनी मधुर आवाज से जीवन में आनंद घोलने वाले असंख्य गीत दिए। लता दीदी का तपस्वी जीवन स्वर साधना का अप्रतिम अध्याय है। उनका ममतामयी चेहरा और मुस्कान हमेशा आंखों के सामने रहेगी

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