बीजिंग शीतकालिन ओलंपिक खेलों के उद्घाटन के बहाने चीन के दौरे पर गए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच दिखी भाव—भंगिमाएं कुछ खास संकेत कर रही थीं। दोनों नेता ऐसे मिल रहे थे जैसे बहुत निकट का रिश्ता हो। या ऐसा कैमरों के सामने दुनिया को कुछ बताने की कोशिश थी? विशेषज्ञों का मानना है कि यूक्रेन तनाव के चलते पुतिन भी इस कोशिश में हैं कि अमेरिका की अगुआई में नाटो के सामने वे अकेले न दिखें, दुनिया देख ले कि चीन उनके पाले में है।
चीन, जिसके पास परमाणु अस्त्रों सहित शस्त्रों का बड़ा भंडार है, अत्याधुनिक उपकरण हैं और सैनिकों की भारी तादाद है। उधर शी जिनपिंग अपने तानाशाही रवैए, दमनकारी नीतियों और कोरोना को उपजाने के आरोपों को लेकर दुनिया के तमाम सभ्य देशों के निशाने पर हैं। इसलिए फिलहाल पुतिन और शी का यह अंदाज उनके कद को और बड़ा दिखाएगा। लेकिन सवाल है कि क्या यह निकटता लंबे समय तक कायम रहेगी?
चीन का स्पष्ट कहना है कि वह भी नाटो में किसी नए देश को शामिल करने का विरोधी है। उधर ताइवान के मुद्दे पर पुतिन ने शी की पीठ पर हाथ रखा है। पुतिन ने कहा कि उनका देश 'एक चीन की नीति' का समर्थक है। दोनों नेताओं की इस वार्ता के बाद संयुक्त बयान जारी किया गया जिसमें दोनों देशों का कहना है कि उनका 'यह नया रिश्ता शीत युद्ध के दौर के किसी भी राजनीतिक अथवा सैन्य गठबंधन से ज्यादा मजबूत होगा'।
पुतिन के बीजिंग पहुंचने पर शी ने उनका न सिर्फ गर्मजोशी से स्वागत किया, बल्कि साथ घूमकर चीन की खूबियां दिखाईं, लजीज चीनी व्यंजन चखाए और खूब नाच—गाना दिखाया। शी ने रूस को चीन का 'सबसे अच्छा मित्र' बताया। दोनों नेताओं ने घोषणा की कि दोनों देशों में दोस्ती का एक नया दौर शुरू हो रहा है।
इधर यूक्रेन में तनाव बढ़ता जा रहा है। यूरोपीय संघ, अमेरिका और अन्य देश मामले को निपटाने और सुलह—सफाई की कोशिश में लगे हैं, लेकिन दोनों पक्षों की हठधर्मी अपनी जगह बनी हुई है। लेकिन जब तक चीन में ओलंकिप खले चल रहे हैं तब तक रूस युद्ध जैसा कदम संभवत: नहीं उठाएगा। कारण, सूत्रों के अनुसार, शी ने पुतिन को कहा है कि फिलहाल ऐसा कुछ न करें जिससे दुनिया का ध्यान बीजिंग के इस आयोजन से हटकर दूसरी तरफ चला जाए।
लेकिन राष्ट्रपति शी ने यूक्रेन मामले में रूस का साथ देने की खुलेआम घोषणा जरूर की है। अमेरिका से यूं भी चीन का छत्तीस का आंकड़ा रहा है। अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध को वह भूला नहीं है जब उसकी अर्थव्यवस्था को बड़ा आघात लगा था। चीन ने नाटो देशों को भी एक संकेत दिया है कि चीन को अकेला न समझें। मुलाकात के बाद दोनों नेताओं की तरफ से यह भी कहा गया कि बीजिंग और मास्को के बीच संबंधों में अब कोई सीमा नहीं होगी, दोनों देश आपस में एक—दूसरे का पूरा सहयोग करेंगें।
चीन का स्पष्ट कहना है कि वह भी नाटो में किसी नए देश को शामिल करने का विरोधी है। उधर ताइवान के मुद्दे पर पुतिन ने शी की पीठ पर हाथ रखा है। पुतिन ने कहा कि उनका देश 'एक चीन की नीति' का समर्थक है। दोनों नेताओं की इस वार्ता के बाद संयुक्त बयान जारी किया गया जिसमें दोनों देशों का कहना है कि उनका 'यह नया रिश्ता शीत युद्ध के दौर के किसी भी राजनीतिक अथवा सैन्य गठबंधन से ज्यादा मजबूत होगा'। दोनों देशों का कहना है कि अब सहयोग का कोई क्षेत्र अब वर्जित नहीं होगा।
संयुक्त बयान में दोनों की तरफ से कहा गया है कि वे अब अंतरिक्ष, जलवायु परिवर्तन, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस तथा इंटरनेट पर काबू के मुद्दे पर साथ काम करेंगे। उधर रूस ने चीन को घेरने के लिए बने क्वाड मंच पर एक तरह से आपत्ति जताई। पुतिन ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड संगठन बनाने को लेकर बीजिंग के विरोध के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया। उल्लेखनीय है कि भारत भी क्वॉड का सदस्य है।
उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस को चेतावनी दी है कि अगर यूक्रेन पर हमला हुआ तो उसके बहुत गंभीर परिणाम होंगे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि पुतिन को तगड़े आर्थिक प्रतिबंध झेलने होंगे। संभवत: इस बयान पर अपना सख्त पैंतरा दिखाते हुए ही पुतिन के साथ शी जिनपिंग ने 'ऑकस रक्षा गठजोड़' पर गंभीर चिंता व्यक्त की। यह गठबंधन अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया के साथ किया है।
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