विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा से मानव को न केवल बुद्धि-विवेक की प्राप्ति होती है, बल्कि वह गीत-संगीत और मधुरता के साथ सम्मान, सुख और मोक्षदायिनी भी मानी जाती हैं। यही कारण है देवी के उपासकों ने भारत सहित अनेक देशों में उनको समर्पित मंदिर बनवाए हैं। ऐसे ही कुछ मंदिरों की जानकारी इस लेख में दी जा रही है।
देवी की चार फुट ऊंची मूर्ति
तेलंगाना में मेंढक जिले के वारंगल में श्री विद्या सरस्वती मंदिर है। इसमें माता सरस्वती के साथ गणेशजी, भगवान शनिश्वर और शिवजी भी विराजमान हैं। इस मंदिर का निर्माण यायावाराम चंद्रशेखर ने किया था और वे देवी सरस्वती के परमभक्त माने जाते हैं। कहा जाता है कि उन पर देवी की असीम कृपा थी।
तेलंगाना में ही ज्ञान मंदिर के नाम से मां सरस्वती का दूसरा मंदिर है। इसे भारत में मां सरस्वती का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। यह मंदिर बासर जिले में गोदावरी नदी के किनारे है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद महर्षि वेदव्यास ने इसी स्थान पर देवी सरस्वती की तपस्या की थी। यह भी कहा जाता है कि रामायण लिखने से पूर्व इसी स्थान पर महर्षि वाल्मीकि ने देवी सरस्वती की स्थापना कर उनकी पूजा की थी। इस मंदिर में देवी की चार फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित है और देवी यहां पद्मासन मुद्रा में विराजित हैं। देवी सरस्वती के साथ यहां देवी लक्ष्मी भी विराजमान हैं। बच्चों का विद्यारंभ कराने से पहले उनका यहां अक्षराभिषेक कराया जाता है।
सरस्वती की सोने की प्रतिमा
हम सबको पता है कि आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। इसमें प्रथम मठ ऋृगेरी शारदापीठ है। कर्नाटक में तुंगा नदी के किनारे स्थित इस मंदिर को शारदाम्बा मंदिर के नाम से जाना जाता है। शंकराचार्य जी ने इस मंदिर में चंदन की लकड़ी से बनी देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की थी। बाद में 14वीं सदी में इस प्रतिमा को बदलकर सोने की प्रतिमा स्थापित कर दी गई।
24 घंटे जलता है दीपक
केरल में दक्षिणा मूकाम्बिका के नाम से सरस्वती देवी का एक मंदिर है। यह मंदिर एनार्कुलम जिले में है। इस मंदिर में देवी सरस्वती के साथ गणपति जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी भी विराजित हैं। इस मंदिर की स्थापना राजा किझेप्पुरम नंबूदिरी ने की थी। इस मंदिर की विशेषता है कि यहां देवी सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष 24 घंटे एक दीपक जलता रहता है।
त्रिकुटा वाली मैहर देवी
मध्य प्रदेश में देवी सरस्वती के मंदिर को मैहर देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह सतना जिले में लगभग 600 फुट की ऊंचाई वाली त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित है। मां सरस्वती यहां पर मां शारदा के रूप में विराजमान हैं, जिन्हें भक्त मैहर देवी के नाम से जानते हैं। मंदिर में देवी सरस्वती के साथ देवी काली, देवी दुर्गा, देवी गौरी, भगवान शंकर, वीर हनुमान, शेषनाग, बाबा काल भैरव भी विराजमान हैं। माता के दर्शन के लिए भक्तों को 1063 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। हालांकि अब यहां रोपवे की भी सुविधा हो गई है और आप चाहें तो अपने वाहन को भी मंदिर के लगभग पास तक ले जा सकते हैं।
मध्य प्रदेश के धार स्थित भोजशाला में प्रतिवर्ष वसंत पंचमी के अवसर पर मेला लगता है। इस मंदिर का वास्तुशिल्प देखने योग्य है। पुराणों के अनुसार राजा भोज मां सरस्वती के परमभक्त थे। उनके समय से ही यहां सरस्वती देवी की पूजा होती रही है।
सरस्वती का प्राकट्य स्थल
बद्रीनाथ से कुछ दूर सरस्वती नदी के किनारे देवी सरस्वती का एक मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि इस जगत में पहली बार इसी स्थान पर देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। यह मंदिर सरस्वती उद्गम मंदिर के नाम से प्रचलित है। कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां महर्षि व्यास ने देवी सरस्वती की पूजा करके महाभारत और अन्य पुराणों की रचना की थी।
ब्रह्माजी को श्राप
राजस्थान के पुष्कर में भगवान ब्रह्मा के मंदिर के पास ही एक पहाड़ी पर देवी सरस्वती का मंदिर है। यहां देवी सरस्वती नदी के रूप में भी विराजमान हैं। उनका यह रूप उर्वरता और शुद्धता का प्रतीक माना गया है। इनके दर्शन के बिना पुष्कर की तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है। पुराणों में उल्लेखित है कि देवी सरस्वती ने ही ब्रह्माजी को श्राप दिया था कि आपका मंदिर केवल पुष्कर
में होगा।
बाली का सरस्वती मंदिर
केवल भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी माता सरस्वती के मंदिर हैं। इनमें बाली का सरस्वती मंदिर पूरी दुनिया में विख्यात है। इस मंदिर के चारों ओर एक सरोवर है, जिसमें कमल फूल खिले रहते हैं। इस कारण मंदिर की छटा देखते ही बनती है। वसंत पंचमी के अवसर पर इस मंदिर के दर्शन के लिए अनेक देशों से सनातन-धर्मी बाली पहुंचते हैं। वहां कई दिनों तक मेला लगता है।
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