इलाका- मकरान। तारीख-25 जनवरी, समय- शाम 6 बजे। बलूचिस्तान के उत्तरी इलाकों में बर्फबारी के कारण ठंड बहुत बढ़ चुकी थी। शाम ढलने को थी, लेकिन सूरज अभी भी चमक रहा था। केच जिले की तहसील दाश्त के सबदान गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर काहिर कौर में पाकिस्तानी सेना की चौकी पर तैनात जवान सूरज की ढलती किरणों को महसूस कर रहे थे। तनाव की स्थिति में पूरे दिन सतर्क रहने के बाद कुछ फौजियों के मन में रात को आराम करने का विचार आ रहा होगा कि तभी बलूच क्रांतिकारियों ने उन पर कई दिशाओं से अचानक हमला कर दिया। हमला इतना गंभीर और अप्रत्याशित था कि पाकिस्तानी सैनिकों को संभलने का मौका ही नहीं मिला और पहले हमले में ही अधिकांश फौजी ढेर हो गए, केवल एक ही जान बचाकर भागने में सफल रहा। इस हमले में चेकपोस्ट पर मौजूद 13 सैनिक मारे गए।
विद्रोहियों ने सैनिक सहायता आने से पहले ही हथियारों पर कब्जा कर चेकपोस्ट को जला दिया, जिसका धुआं डेढ़ किलोमीटर दूर से देखा जा सकता था। फौजियों की मदद के लिए आने वाले अतिरिक्त सैन्य दस्तों पर भी बलोच क्रांतिकारियों ने हमला किया, जिसमें दो बाइक क्षतिग्रस्त हो गए और उन पर सवार चार फौजी भी मारे गए। मोटे तौर पर इस हमले में पाकिस्तान के 17 सैनिक मारे गए। बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है।
बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट बलूच राजनीतिक कार्यकर्ताओं का पहला ऐसा सशस्त्र प्रतिरोध संगठन है, जिसका नेतृत्व एक प्रभावशाली कबायली या शक्तिशाली व्यक्ति के हाथों में होने की बजाए सामूहिक रूप से काम करता है। इस संगठन की विशेषता यह है कि यह बढ़ा-चढ़ाकर दावे नहीं करता, बल्कि जानबूझकर अपनी रणनीति का जिक्र करने से बचता है। संगठन के कमांड काउंसिल के सदस्य रहमदुल मर्री के अपहरण और शहादत के बाद बीएलएफ की छवि खराब करने के लिए चलाए गए मीडिया अभियान को भी संगठन के नेतृत्व ने बर्दाश्त किया। इसने बलूच राष्ट्रीय आंदोलन को तबाही के कगार पर धकेलने वाली ताकतों और षड्यंत्रकारी तत्वों को नाकाम किया और अंततःअपने पूर्व विरोधियों के साथ 'ब्रास' के नाम से गठबंधन बनाने में सफल रहा।
बता दें कि सबदान, ईरान-पाकिस्तान की सीमा पर नहीं, बल्कि निकटतम तरीन इलाके से भी 181 किमी की दूरी पर है। सैन्य कब्जे वाले इलाके में 5 किमी अंदर तक घुसना बड़ी बात है। घुसपैठ की कहानी तो बनाई जा सकती है, लेकिन इसे साबित करना आसान नहीं है। बलूच क्रांतिकारी इन क्षेत्रों में गाडि़यों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। यदि उन्होंने जब्त हथियारों और अपने शहीद साथी के शरीर के साथ सीमा पार करने की कोशिश की होती, तो उन्हें बिना रुके लगभग 36 घंटे लग जाते।
सबदान, तुर्बत से महज 60 किलोमीटर दूर है, जहां सामान्य वाहन से एक घंटे में आसानी से पहुंचा जा सकता है। इस बीच पाकिस्तानी सेना के शिविर और चेक पोस्ट भी हैं, जहां से सैनिकों और काहिर कौर चेक पोस्ट को समय पर सहायता भेजना आसान है। फौजियों को समय पर मदद भी पहुंची, लेकिन बलूच क्रांतिकारियों ने न केवल उन्हें खदेड़ दिया, बल्कि अधिकांश को हताहत भी किया।
सबदान का इलाका मिरानी बांध के करीब है। बलूचिस्तान का यह इलाका घनी आबादी वाला नहीं है। यहां छोटे-छोटे गांव हैं, वह भी दूर-दूर। बलूचिस्तान के ज्यादातर बांधों और जलाशयों पर पाकिस्तानी सेना तैनात है। इससे यह बात आसानी से समझ में आती है कि विषम हालात में फौज स्थानीय आबादी के खिलाफ पानी का इस्तेमाल हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की सोच रखती है।
काहिर कौर स्थित चेकपोस्ट दुश्मन के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित था। इसलिए बलूच क्रांतिकारियों के लिए यह अपेक्षाकृत कठिन लक्ष्य था। वैसे भी बलूचिस्तान में सुरक्षित पनाहगाहों में भी पाकिस्तानी सैनिक बेचैन हैं, क्योंकि बलूच क्रांतिकारी गुरिल्ला युद्ध में विशेषज्ञ हैं, जो दुनिया की सबसे खतरनाक लड़ाई तकनीक है। पाकिस्तानी सेना ने स्थानीय आबादी पर कई हमले किए हैं। इनमें बलूच कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करना, लोगों को हिरासत में लेने के बाद जबरन गायब करने और उनके कटे-सड़े शवों को फेंकने जैसी यातनाएं शामिल हैं।
पाकिस्तानी फौज हमेशा से जानती है कि वह पहाड़ों में बलूच क्रांतिकारियों का मुकाबला नहीं कर सकती। इसलिए उसने सारा जोर शहरी इलाके में बलोच क्रांतिकारियों के हमदर्दों और आजादी का समर्थन करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं के खात्मे पर लगाया। इन बेरहम कार्यवाइयों में घर जलाए गए, औरतों का बलात्कार किया गया और उन्हें सामूहिक सजा दी गई। इसके बाद क्षेत्र में एक स्थानीय मौत दस्ते की स्थापना करके सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। समय-समय पर आईएसपीआर ने दावे किए कि बलूच क्रांतिकारियों कमर टूट गई है और वे भाग गए हैं। लेकिन क्रांतिकारियों ने जल्द ही पाकिस्तानी फौज के भ्रम को चकनाचूर कर दिया। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी फौज पर और अधिक घातक हमले होने लगे।
बलूच सशस्त्र स्वतंत्रता सेनानियों ने पहले से भी अधिक व्यवस्थित हमले किए और दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया। मकरान पहले से ही चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की वजह से दुश्मन के लिए महत्वपूर्ण हो गया था। क्रांतिकारियों ने मुख्य सैन्य छावनियों और चौकियों को निशाना बनाना शुरू किया और कुछ ही हमलों से पाकिस्तानी फौज की पूरी रणनीति रेत की दीवार की तरह ढह गई और सुरक्षा चौकियों का जाल तहस-नहस हो गया।
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