प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बीते साल नवंबर में तीनों कृषि सुधार कानून वापस लेने और कथित किसान आंदोलन की समाप्ति के बाद पंजाब में भाजपा बैकफुट पर चली गई थी। कुछ दिन पहले तक गांवों में पोस्टर चिपकाए जा रहे थे कि ‘इस गांव में भाजपाइयों का आना सख्त मना है।’ लेकिन जिस तरह से भाजपा ने टिकट बंटवारे में हर वर्ग का ख्याल रखा है और नए व स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया है, उसके बाद से लोगों की एक भ्रांति भी दूर हुई है कि यह वर्ग विशेष की पार्टी है। यही नहीं, नए व पंथक चेहरों को भी मौका देकर भाजपा अब फ्रंट फुट पर खेलती दिखाई दे रही है।
इस बार भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब लोक कांग्रेस व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव ढींढसा के अकाली दल संयुक्त के साथ गठजोड़ कर चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने अपने कोटे के तहत जिन 34 उम्मीदवारों की घोषणा की है, उनमें 12 किसान हैं, जबकि अनुसूचित जाति आठ व 13 सिख उम्मीदवारों को टिकट दिया है। सूची में डॉक्टर, वकील, खिलाड़ी, युवा, महिलाएं और पूर्व आईएएस अधिकारी हैं। भाजपा ने पहली सूची में कांग्रेस छोड़कर आए अधिकांश नेताओं को जगह दी है, जिसमें विधायक राणा गुरमीत सोढी व निमिषा मेहता के नाम शामिल हैं। नए चेहरों के लालच में भाजपा ने अपने दिग्गजों को नहीं छोड़ा। इनमें भाजपा के मनोरंजन कालिया को जालंधर, तीक्ष्ण सूद को होशियारपुर, दिनेश सिंह बब्बू को सुजानपुर, सुरजीत कुमार ज्याणी को फाजिल्का और अरुण नारंग को अबोहर से टिकट दिया है।
पहली बार 65 सीटों पर लड़ रही चुनाव
1996-97 के राजनीतिक अस्थिरता के दौर में जब देश में थोड़े-थोड़े समय पर लोकसभा चुनाव हो रहे थे, उस समय अकाली दल बादल और भाजपा गठजोड़ हुआ और तब से भाजपा राज्य में लोकसभा की 13 में से 3 व विधानसभा की 117 सीटों में से 23 सीटों पर चुनाव लड़ती आ रही थी। 2007 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 23 में से 19 सीटों पर जीत हासिल की। कहने का भाव यह है कि भाजपा राज्य में अभी तक कुछ सीटों पर ही चुनाव लड़ रही थी, जिससे इसके बहुत कम विधायक विधानसभा पहुंच पाते थे। आज भाजपा 65 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने जिन नए चेहरों को उम्मीदवार बनाया है, उनसे काफी उम्मीदें हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि अकाली दल (बादल) की गठबंधन सरकार में भागीदार होने के बावजूद भाजपा के किसी भी नेता पर भ्रष्टाचार का दाग नहीं लगा। वहीं, अकाली नेताओं पर भ्रष्टाचार व मादक पदार्थों की तस्करी जैसे गंभीर आरोप लगे। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का खामियाजा भुगतना पड़ा। उस समय तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजय सांपला ने साफ कहा था कि जनता का आक्रोश अकाली दल के खिलाफ था, भाजपा के नहीं। भाजपा को तो अकालियों का साथी होने का दुष्परिणाम भुगतना पड़ा।
मोदी का नेतृत्व लुभा रहा
पंजाब में विपक्षी दलों के नेताओं और मीडिया, विशेषकर पंजाबी मीडिया में बैठे वामपंथियों ने हमेशा ही सिख समाज को रा.स्व.संघ व भाजपा के साथ लड़ाने व भड़काने की कोशिश की जिसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे। लेकिन अब पुरानी भ्रांतियां टूटती दिख रही हैं। सिख समाज को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व पसंद आ रहा है। भले ही मुट्ठी भर लोगों ने कथित किसान आंदोलन की आड़ में पंजाब का माहौल विषाक्त बना दिया, जिसके कारण सिख किसान व बुद्धिजीवी कृषि सुधार कानूनों के पक्ष में अपने विचार नहीं रख पाए, पर दबे स्वर में यह स्वीकार करते थे कि किसी सरकार ने किसानों की सुध तो ली। किसान इन कानूनों के पक्ष में तो थे, लेकिन दंगाई यूनियनों के भय के चलते मौन रहे। अब प्रधानमंत्री का वही प्रयास सिख समाज में विशेषकर किसानों की सोच में सकारात्मक बदलाव लाता दिखाई दे रहा है।
रही बात पंथक नेताओं की तो लगातार पांच बार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति के अध्यक्ष रहे पंथरत्न जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा के दोहते कंवरवीर सिंह टोहड़ा भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इतना ही नहीं, दिल्ली गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति के मनजिन्दर सिंह सिरसा भी भाजपा में आ चुके हैं और एक अन्य पन्थक नेता सुखदेव सिंह ढींढसा भाजपा के साथ गठजोड़ कर चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अतिरिक्त भी पन्थक क्षेत्रों से जुड़े लोग भाजपा में शामिल हो रहे हैं।
अकाली-कांग्रेस के दामन पर भ्रष्टाचार के दाग
ड्रग्स तस्करी मामले में फंसे पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के कारण अकाली दल को काफी नुकसान हुआ है। अकाली दल बादल अभी तक पंजाब सरकार पर हमलावर था, लेकिन मजीठिया के कारण वह बचाव की मुद्रा में आ गया है। सत्ताधारी कांग्रेस व अकाली दल के बीच मजीठिया को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चरम पर है। वहीं, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के रिश्तेदारों के घर पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी के बाद कांग्रेस की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं। इसी तरह, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के सलाहकार व राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक मोहम्मद मुस्तफा का हिंदू विरोधी बयान भी पार्टी के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है। हिन्दू विरोध के चलते पहले से ही हिंदू समाज का आक्रोश झेल रही कांग्रेस के लिए यह कोढ़ में खाज के समान है।
आआपा की दुविधा
वहीं, आम आदमी पार्टी दूसरी बार 117 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पिछली बार इसने 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी और इस बार भी पुराने चेहरों पर ही विश्वास जताया है। पार्टी में असंतोष भी है, जिसके कारण अब तक 6 विधायक व बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। दूसरी ओर, आआपा ने अपने एकमात्र सांसद भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है, जिन पर संसद में भी शराब पीकर जाने के आरोप लगते रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी अपने भाषण में एक बार इस पर परोक्ष रूप से टिप्पणी कर चुके हैं। एक तरफ पार्टी नशाखोरी खत्म करने का वादा कर रही है, वहीं मान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना समझ से परे है। पार्टी ने पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आगे किया, फिर अपने कदम खींच लिए। इससे साफ पता चलता है कि पार्टी दुविधा में है।
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