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फतवे पर देवबंद को नोटिस

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Jan 25, 2022, 07:43 am IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
दारुल उलूम देवबंद

दारुल उलूम देवबंद

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दारुल उलूम देवबंद अक्सर अपने फतवों के कारण विवादों में रहता है। इस बार उसने बच्चा गोद लेने पर फतवा जारी कर कहा है कि गोद लिए गए बच्चे को असली बच्चे की तरह अधिकार नहीं दिए जा सकते, लेकिन वयस्क होने पर उसे शरिया व्यवस्थाओं को मानना होगा।

बाल अधिकारों पर दारुल उलूम देवबंद द्वारा गैरकानूनी और भ्रामक फतवे जारी करने पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सख्ती दिखाई है। आयोग ने नोटिस जारी कर उत्तर प्रदेश सरकार से दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट की जांच करने को कहा है। साथ ही, राज्य के मुख्य सचिव से कहा कि जब तक इस तरह की सामग्री वेबसाइट से हटा नहीं ली जाती है, तब तक इसे बंद कर दिया जाए। आयोग ने कहा कि एक शिकायत के आधार पर यह कार्रवाई की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि देवबंद की वेबसाइट पर फतवों की सूची है जो देश के कानून के अनुसार दिए गए प्रावधानों के विरुद्ध है।

क्या है फतवे में?
दरअसल, दारुल उलूम देवबंद ने एक फतवे में कहा है कि बच्चा गोद लेना गैरकानूनी नहीं है, लेकिन वयस्क होने पर गोद लिए गए बच्चे को शरिया का पालन करना होगा। लेकिन उन्हें असली बच्चे जैसे अधिकार नहीं दिए जा सकते। बच्चे को गोद लेने भर से वास्तविक बच्चे का कानून उस पर लागू नहीं होगा। वयस्क होने के बाद उसे संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा और वह किसी भी मामले में वारिस या उत्तराधिकारी नहीं होगा। एक व्यक्ति ने आयोग से देवबंद द्वारा जारी फतवों की शिकायत की है। शिकायतकर्ता ने कई फतवों का भी जिक्र किया है, जो देवबंद की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। इनमें स्कूली पाठ्यक्रम, कॉलेज यूनिफॉर्म, गैर इस्लामिक माहौल में बच्चों की शिक्षा, लड़कियों की मदरसा शिक्षा, शारीरिक दंड आदि से संबंधित फतवे शामिल हैं। 
इसमें एक सवाल के जवाब में कहा गया है कि जब लड़की 14 साल की हो जाए तो उसे पुरुष शिक्षक वाले स्कूल में पढ़ाना उचित नहीं है। इसलिए यदि उसे और आगे बढ़ाना चाहते हैं तो ऐसे स्कूल का चुनाव करें जिसमें महिला शिक्षक हो। साथ ही, कहा गया है कि गुजरात और अलीगढ़ में ऐसे कई स्कूल हैं, जहां लड़कियों को पर्दे में पढ़ाया जाता है। सहशिक्षा के माहौल में बच्चियों को पढ़ाना अच्छा नहीं है। एक अन्य फतवे में कहा गया है कि शिक्षकों को बच्चों को पीटने की अनुमति है, जबकि स्कूलों में शारीरिक दंड पर कानूनन रोक है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सख्ती

  • बच्चों पर दारुल उलूम के फतवे कानून विरुद्ध, सहारनपुर के जिलाधिकारी कार्रवाई करें
  • प्रदेश के मुख्य सचिव को लिखा पत्र, संगठन की वेबसाइट की जांच हो और ऐसी किसी भी सामग्री को तत्काल  हटाया जाए
  • भारत के संविधान, आईपीसी, किशोर न्याय अधिनियम, शिक्षा का अधिकार अधिनियम के उल्लंघन के लिए देवबंद पर कार्रवाई करे राज्य सरकार

क्या कहा आयोग ने
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस तरह के फतवे को कानून के विरुद्ध बताते हुए सहारनपुर के जिलाधिकारी को भी कार्रवाई करने के लिए कहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को 15 जनवरी को लिखे पत्र में आायोग ने कहा है कि शिकायत पर बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम की धारा 13(1)(जे) के तहत संज्ञान लेते हुए शिकायत और वेबसाइट की जांच की गई। जांच में पता चला है कि लोगों द्वारा उठाए गए मुद्दों के जवाब में देवबंद की वेबसाइट पर दिए गए स्पष्टीकरण और उत्तर देश के कानूनों के अनुरूप नहीं हैं। साथ ही, कहा गया है कि इस तरह के बयान बच्चों के अधिकारों के विपरीत हैं और वेबसाइट तक खुली पहुंच उनके लिए हानिकारक है। इसलिए अनुरोध है कि इस संगठन की वेबसाइट की पूरी तरह से जांच की जाए और ऐसी किसी भी सामग्री को तत्काल हटाया जाए।

जब तक गैरकानूनी बयानों के प्रसार और पुनरावृत्ति से बचने तथा हिंसा, दुर्व्यवहार, उपेक्षा, उत्पीड़न बच्चों के खिलाफ भेदभाव की घटनाओं को रोकने के लिए इन सामग्रियों को नहीं हटाया जाता है, तब तक वेबसाइट तक पहुंच को रोका जा सकता है। साथ ही, आयोग ने राज्य सरकार से भारत के संविधान, भारतीय दंड संहिता, किशोर न्याय अधिनियम-2015 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिए देवबंद के विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई करने के लिए भी कहा है।

पत्र की प्रति उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक और मुख्य चुनाव आयुक्त को भी भेजी गई है। पत्र में फतवे से संबंधित देवबंद की वेबसाइट और उसके 10 लिंक भी दिए गए हैं, जिनमें बच्चों से संबंधित सवालों के जवाब फतवे के रूप में दिए गए हैं। आयोग ने प्रदेश सरकार को इस पर 10 दिनों के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। आयोग ने कहा कि इस तरह के फतवे देश के कानून को गुमराह करने वाले हैं और अवैध भी हैं। देश के संविधान में बच्चों के मौलिक अधिकारों के साथ समता का अधिकार और शिक्षा के अधिकार का प्रावधान है। इस तरह के फतवे हेग संधिपत्र का उल्लंघन है, जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किया है। इसके मुताबिक, जैविक बच्चों और गोद लिए गए बच्चों के समान अधिकार होंगे। इनमें किसी तरह का अंतर नहीं किया जा सकता।

आयोग पर निशाना
इस बाबत दारुल उलूम देवबंद ने कुछ भी बोलने से इनकार किया है, लेकिन स्टूडेंट्स इस्लामिक आॅर्गनाइजेशन आॅफ इंडिया (एसआईओ) ने देवबंद के विरुद्ध कार्रवाई करने के निर्देश पर आयोग पर निशाना साधा। संगठन ने इसे कुछ चुनिंदा फतवों के जरिये मदरसों और उसकी शिक्षा को निशाना बनाने का प्रयास करार दिया है। एसआईओ के राष्ट्रीय सचिव फवाज शाहीन ने एक बयान में कहा कि फतवे कुछ मजहबी विद्वानों के निजी विचार होते हैं, जो निजी व सामाजिक जीवन से जुड़े विभिन्न मुद्दों के संदर्भ में होते हैं। उनकी कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती है। वहीं, देवबंदी मौलाना मुफ़्ती असद कासमी का कहना है कि जब कोई व्यक्ति फतवा मांगता है तो कुरान और हदीस के तहत दारूल उलूम देवबंद फतवा जारी करता है। अगर कोई इसमें हस्तक्षेप करता है तो वह इस्लाम और शरियत में हस्तक्षेप करता है। जिसने भी फतवे की शिकायत की है, उसने इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश की है।     
 

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