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होम भारत

बांटने के दिन गए

by प्रो. भगवती प्रकाश
Jan 24, 2022, 03:02 am IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
मुस्लिम समाज भी भारतीय नागरिक व मतदाता के रूप में ही राष्ट्र के प्रति निष्ठापूर्वक मजहबी राजनीति से मुस्लिम वोट बैंक

मुस्लिम समाज भी भारतीय नागरिक व मतदाता के रूप में ही राष्ट्र के प्रति निष्ठापूर्वक मजहबी राजनीति से मुस्लिम वोट बैंक

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भारत की स्वाधीनता के इस अमृत महोत्सव के वर्ष में चुनाव जीतने के लिए वोट बैंक के रूप में साम्प्रदायिक अलगाव की उस विषबेल को सींचना सर्वथा अनुचित है जो इस देश के विभाजन का कारण बनी थी। मुस्लिम समाज भी भारतीय नागरिक व मतदाता के रूप में ही राष्ट्र के प्रति निष्ठापूर्वक देश, समाज व प्रदेश के हित में मतदान करे, यह सुनिश्चित करना चुनाव में हार-जीत से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है

पांच राज्यों के चुनावों में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कुछ दलों द्वारा मतों के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की अलगाववादी राजनीति अत्यंत खतरनाक रूप ले रही है। भारत के रक्तरंजित विभाजन के बाद 15 अगस्त 1947 को मिली स्वाधीनता के इस अमृत महोत्सव के वर्ष में चुनाव जीतने के लिए वोट बैंक के रूप में साम्प्रदायिक अलगाव की उस विषबेल को सींचना सर्वथा अनुचित है जो इस देश के विभाजन का कारण बनी थी।

मजहबी राजनीति अमानवोचित
भारतीय संविधान भारत को एक पंथ निरपेक्ष गणराज्य घोषित करता है, ऐसे में मतदाताओं को साम्प्रदायिक आधार पर बांट कर अपना राजनीतिक हित साधना असंवैधानिक, राष्ट्र विरोधी एवं अमानवोचित प्रयत्न है। शरिया अर्थात मुस्लिम विधान के अन्तर्गत शासन चलाने के लिए देश से पाकिस्तान व बांग्लादेश रूपी दो भुजाएं काट कर अलग कर देने के बाद साम्प्रदायिकता की राजनीति के लिए देश के नागरिकों में मजहबी अलगाव खड़ा कर वोट बैंक की राजनीति के लिए मुस्लिम मतदाताओं को एक प्रबुद्ध व उत्तरदायी मतदाता के रूप में राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा बनने से दूर रखने के लिए परिकल्पित आधार पर भावात्मक भयदोहन व दुष्प्रेरण राष्ट्र विरोधी षड्यंत्र से कम नहीं है।

देश के 1947 में हुए विभाजन के लिए मुस्लिम लीग द्वारा समाज में मजहबी अलगाव की भावना खड़ी करना तब लीग की सत्ता की महत्वाकांक्षा पूर्ति का साधन रहा था। इससे देश का विभाजन हो गया और लीग 23 प्रतिशत आबादी के लिए 33 प्रतिशत भूभाग लेकर अलग हो गई। तब भी उस पाकिस्तान का विश्व में कोई सम्मानजनक स्थान नहीं बन पाया? देश के उस मजहबी विभाजन के बाद भारत में रहे मुस्लिम तो इस देश की अस्मिता व अस्तित्व के लिए इस देश के अपने सदियों के साझे सुख-दु:खों की एक समान अनुभूतियों के साथ मुख्य भारत भूमि का अंग बने रहे। देश में समरस हो चुके उस समाज में अब वोटों के लिए साम्प्रदायिक अलगाव के प्रयास सर्वथा निन्दनीय हैं। ऐसे राजनीतिक दलों की दल के रूप में मान्यता और आम जनमानस से ऐसे दलों के प्रति सहानुभूति व उनकी स्वीकारोक्ति को निर्मूल करना आज की पहली आवश्यकता है। पांच वर्ष पूर्व 2017 के चुनावों में ही इन अलगावादी दलों को नकार कर एक मन व एक मानस से देश की राष्ट्रीय एकता के पक्ष में, अखण्ड भारत के पक्षधर रहे राष्ट्रवादी दल के पक्ष में मत दिया था। उसी के परिणामस्वरूप आज उत्तर प्रदेश साम्प्रदायिक दंगों से मुक्त हो विकास मार्ग पर चल रहा है। इसके परिणामस्वरूप अच्छी कानून व्यवस्था के साथ राज्य में सुशासन की स्थापना हुई है।

विश्व के 190 देशों से बड़ा है उत्तर प्रदेश
जनसंख्या के आधार पर विश्व के चार शीर्ष देशों चीन, भारत, अमेरिका व इण्डोनेशिया के बाद 24 करोड़ जनसंख्या के साथ उत्तर प्रदेश का स्थान आता है और विश्व के शेष 191 देशों में से प्रत्येक की जनसंख्या उत्तर प्रदेश से कम है। मुस्लिम जनसंख्या की दृष्टि से भारत तीसरा सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाला देश है और विश्व के दस इस्लामी देशों के बाद सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या उत्तर प्रदेश में है। सऊदी अरब आदि 47 इस्लामी देशों, जो अन्तरराष्ट्रीय इस्लामी देशों के संगठन के सदस्य हैं, की जनसंख्या से उत्तर प्रदेश की मुस्लिम जनसंख्या अधिक है। ऐसे में भारत जैसे पंथ निरपेक्ष देश के सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाले प्रदेश में सत्ता प्राप्ति का दिवा स्वप्न साधने के लिए साम्प्रदायिक आधार पर मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में संगठित कर अलगाववाद फैलाना राष्ट्रहित विरोधी है। भारत के सभी 139 करोड़ नागरिकों की तरह मुस्लिम समाज के लोग भी भारतीय नागरिक व भारतीय मतदाता के रूप में ही राष्ट्र के प्रति असन्दिग्ध निष्ठापूर्वक देश, समाज व प्रदेश के हित में मतदान करें, यह सुनिश्चित करना चुनाव में हार-जीत से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

चिन्ताजनक साम्प्रदायिक अलगाव की राजनीति
चुनावी वर्ष 2022 के पहले ही पिछले 3-4 माह से कांग्रेस व क्षेत्रीय दलों सपा व बसपा आदि द्वारा एकजुट मुस्लिम वोट बैंक बना, उस पर अपनी पैतृक विरासत का हक बनाए रखने के समाचार ही प्रमुखता लिये हुए हैं। आगे लिखे समाचारों के कुछ शीर्षकों पर दृष्टि डालने व विचार करने पर मुस्लिम समाज सहित देश के प्रत्येक संवेदनशील नागरिक का चिन्ताग्रस्त होना अत्यन्त स्वाभाविक है। ऐसे कुछ शीर्षक है ‘यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिम वोट को लेकर सियासत तेज‘ 17 जून 2021 न्यूजनेशन टीवी) ‘उत्तर प्रदेश का मुस्लिम वोट बैंक: औवेसी, अयूब या अखिलेश – उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों के कौन-कौन हैं दावेदार? (नवभारत टाइम्स: 10 सितम्बर 2021)। वेस्ट यूपी में मुस्लिम वोट में बंटवारा तय (नवभारत टाइम्स)। यूपी का रण – करवट बदलती मुस्लिम सियासत – (अमर उजाला: 20 दिसम्बर, 2021)। यूपी की वो सीटें जहां मुस्लिम मतदाताओं के वोट पलट सकते हैं उम्मीद्वारों की किस्मत – (एबीपी: 30 दिसम्बर, 2021)। तो क्या यूपी चुनाव में एकतरफा हो जाएगा मुस्लिम वोट बैंक! (पंजाब केसरी: 15 जनवरी, 2022)। यूपी में विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिम वोट बैंक से लेकर सियासत तेज (न्यूज नेशन – 17 जून 2021)। अखिलेश यादव को सता रहा मुस्लिम वोट खिसकने का डर (इन सीटों पर बढ़ रही चिंता – जी हिन्दुस्तान – 5 दिसम्बर, 2021)। डायरेक्ट एक्शन डे की तारीख पर खेला होबे की कैसी राजनीति (आप इंडिया – 16 अगस्त, 2021)। मुस्लिम लीग की राह पर ममता बनर्जी, डायरेक्ट एक्शन डे के दिन मनाएंगी खेला होबे दिवस (परफॉर्म इंडिया – जुलाई 21, 2021)

 

सपा के आजम खान पश्चिम उत्तर प्रदेश को मुस्लिम प्रदेश बनाने की मांग 2006 से जनसभाओं में खुले आम करते रहे हैं। ओवैसी देश में मुख्य धारा से अलग समानान्तर मुस्लिम नेतृत्व खड़ी करने में अपने पूरे बल से लगे हैं। मुस्लिमों को देश की मुख्यधारा से अलग पहचान के इसी अलगाववादी एजेण्डे के साथ बिहार के मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र से वे पांच विधानसभा सीटें जीत चुके हैं। उनकी यह जीत देश में साम्प्रदायिक सौहार्द व देश की एकात्मकता के लिए चुनौती है।

प्रदेश के मजहबी विभाजन का दिवास्वप्न
देश के पंथ निरपेक्ष संविधान के विरुद्ध जाकर साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले दलों के नेता 2006 से ही प्रदेश के मजहबी विभाजन की भी विघातक मांग करते रहे हैं। सपा के मंत्री रहे आजम खान ऐसी मांग करते रहे हैं। मुस्लिम वोट बसपा के खाते में न चले जाएं, उसके लिए ऐसी मांग करना कितना उचित है? पश्चिम उत्तर प्रदेश को मुस्लिम प्रदेश बनाने की मांग वे 2006 से जनसभाओं में खुले आम करते रहे हैं। ओवैसी देश में मुख्य धारा से अलग समानान्तर मुस्लिम नेतृत्व खड़ी करने में अपने पूरे बल से लगे हुए हैं। मुस्लिमों को देश की मुख्यधारा से अलग पहचान के इसी अलगाववादी एजेण्डे के साथ बिहार के मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र से वे पांच विधानसभा सीटें जीत चुके हैं। बिहार की मुस्लिम बहुल अमौर व बहादुरगंज सीटों से तो वे कांग्रेस के क्रमश: 36 वर्ष व 16 वर्षों से विधायक रहे प्रत्याशियों को बुरी तरह से हराकर चुनाव जीते हैं। मुस्लिमों में अलगाववाद जगाकर एवं उनकी मजहबी पहचान स्थापित करने के मुद्दे पर पांच सीटों पर उनकी यह जीत देश में साम्प्रदायिक सौहार्द व देश की एकात्मकता के लिए चुनौती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि बिहार के सीमांचल की 24 सीटों में आधी सीटों पर मुस्लिम आबादी आधी से अधिक है।

रक्तरंजित विभाजन के जिम्मेदार जिन्ना का महिमामण्डन
सपा नेता अखिलेश ने तो सारी मयार्दाएं लांघकर भारत की अखण्डता के विघातक व शत्रु मोहम्मद अली जिन्ना का महिमामण्डन कर उन्हें महात्मा गांधी, नेहरू व सरदार पटेल की श्रेणी में खड़ा कर दिया। यही नहीं, देशभर में जिन्ना की प्रशंसा की आलोचना होने पर उन्होंने उल्टा लोगों को इतिहास पढ़ने की नसीहत दे डाली।

जिन्ना ने तो अलग पाकिस्तान के लिए संघर्ष का नेतृत्व ही नहीं किया वरन् मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दुओं के नरसंहार, लूटपाट व बलात्कार के लिए डायरेक्ट एक्शन का आवाहन कर देश भर में हिन्दुओं का भीषण नरसंहार करा डाला। कलकत्ता, नोआखली सहित अनेक स्थानों पर हजारों अलग पाकिस्तान बनाने के लिए कई हजार हिन्दुओं की हत्या कराई, महिलाओं से बलात्कार हुए और दुधमुंहे बच्चों तक को नहीं छोड़ा। नोआखली आदि अनेक स्थानों पर पूरे के पूरे गांवों का बन्दूक की नोक पर मतान्तरण कराया था। कानून को हाथ में लेकर देश विभाजन की मांग के साथ डाइरेक्ट एक्शन को कार्यरूप दिलाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना की प्रशंसा के गीत गाने वाले अखिलेश यादव और उनकी पार्टी चुनाव जीत गए तो वे किस प्रकार के तुष्टिकरण की राजनीति करेंगे, इसकी चर्चा ही अत्यंत चिन्ताजनक है।

ममता बनर्जी भी अखिलेश की मजहबी राह पर
अखिलेश यादव द्वारा लगातार जिन्ना की प्रशंसा से भी दो कदम आगे बढ़कर ममता बनर्जी ने तो 16 अगस्त के जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन डे, जो 1946 में हिन्दुओं के नरसंहार का दिन चुना गया था, को देश भर में ‘खेलो होबे‘ दिवस मनाने की घोषणा कर दी है। ममता बनर्जी की बंगाल में पिछले वर्ष सरकार बनते ही उनके मजहबी माफिया, रोहिंग्या व बांग्लादेशी मुस्लिमों ने डायरेक्ट एक्शन डे की तर्ज पर ही आगजनी, हत्याएं व बलात्कार से हजारों हिन्दू परिवारों को पड़ोसी राज्यों झारखण्ड व असम में शरण लेने को विवश कर दिया था। अब वैसा ही हिंसा के घिनौने खेल को देशभर में खेलने की तो साजिश नहीं है? विधानसभा के चुनाव में भी उनका यही नारा था।

यहां डायरेक्ट एक्शन डे के बारे में भी यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि मजहबी आधार पर भारत के विभाजन की मुस्लिम लीग की मांग का जब राजनीतिक हल न निकल सका, तब जिन्ना ने घोषित कर दिया कि मुसलमान लड़कर पकिस्तान लेंगे। मोहम्मद अली जिन्ना की घोषणा के परिणामस्वरूप डायरेक्ट एक्शन डे पर इतने भीषण दंगे हुए कि पहले ही दिन चार हजार से अधिक लोग मारे गए। यह जिन्ना के आह्वान का ही परिणाम था कि कलकत्ते के साथ-साथ नोआखाली, बिहार, पंजाब और केरल आदि में भी भीषण दंगे हुए। इन दंगों से कांग्रेस को भी जिन्ना की अलग देश की मांग को स्वीकार कर लेना पड़ा। अन्यथा महात्मा गांधी तो विभाजन के सर्वथा विरुद्ध थे और सदा यही कहते रहे थे कि विभाजन मेरी लाश पर होगा।

एक आम भारतीय डायरेक्ट एक्शन डे जैसी वीभत्स ऐतिहासिक घटना के बारे में न जान पाए, इसके लिए स्वाधीनता के बाद भी सरकारी नीति ऐसी बनाए रखी गई कि इतिहास के उस घिनौने अध्याय को आम भारतीय न पढ़ सकें। ममता बनर्जी ने उस काले अध्याय को पुन: याद दिलाकर उन घावों पर नमक छिड़कने का ही काम किया है।

डायरेक्ट एक्शन डे के दिन शुरू हुए दंगे चार दिनों तक चले और उसमें करीब दस हजार लोग मारे गए। महिलाएं बलात्कार का शिकार हुईं और जबरन लोगों का कन्वर्जन करवाया गया। इन दंगों के प्रतिरोध में हिन्दुओं की ओर से गोपाल चंद्र मुखर्जी, जिन्हें गोपाल पाठा के नाम से भी जाना जाता है, की भूमिका की कहानी बहुत प्रसिद्ध है। गोपाल मुखर्जी ने एक वाहिनी का गठन किया था जिसने इन दंगों के दौरान हिन्दुओं की रक्षा की और वाहिनी से इस तरह से लड़े कि मुस्लिम लीग के नेताओं को गोपाल मुखर्जी से खून-खराबा रोकने के लिए अनुरोध करना पड़ा।

‘उत्तरदायी राजनीति से प्रदेश का रिकॉर्ड कायाकल्प’
लम्बे समय से उत्तर प्रदेश की गिनती व पहचान एक असुरक्षित और बीमारू राज्य के रूप में होती रही है। वर्तमान योगी सरकार के आने से पहले शासन में साम्प्रदायिक विभेद और अपराधियों का बोलबाला था। असंख्य अपराधी गिरोह व आतंकवादी सेल यहां सक्रिय थे। निरंकुश अपराध के कारण सामान्य नागरिकों, खासकर व्यापारियों व महिलाओं में निरंतर भय और असुरक्षा व्याप्त थी। निरंकुश अपराधों के कारण पिछले वर्षों में असंख्य लोग यहां से पलायन कर गए और बहुत सारे लोग पलायन के लिए सोच रहे थे। योगी सरकार के आने से पलायन पर काफी सीमा तक रोक लगी है। यहां तक कि पलायन कर गए लोग काफी संख्या में वापस भी आए हैं। सरकारों की आपराधिक साठगांठ व साम्प्रदायिक विभेद की नीतियों के अन्य अनेक हानियों के अतिरिक्त मुख्य क्षति यह हुई कि पूर्व में रही अराजकता व साम्प्रदायिकता की राजनीति के कारण यूपी में कोई विशेष निवेश नहीं हुआ जिससे बढ़ती बेरोजगारी भी अपराधों का बडा कारण बन गई। भाजपा सरकार ने पहले दिन से ही अपराधों के प्रति जो जीरो टॉलरेंस नीति अपना कर अपराधियों के विरुद्ध व्यापक अभियान छेड़ दिया था।

उत्तम प्रशासन, निवेश और रोजगार बढ़ाने के वादे पर भाजपा यूपी में चुनाव जीत कर आई थी। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निष्ठापूर्वक प्रयास किए। इनमें महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर अंकुश समेत अन्य अधिकांश प्रकार के अपराधों पर नियंत्रण, पुलिस व्यवस्था में सुधार, भू व खनन माफिया, अवैध बूचड़खानों पर नियंत्रण, भ्रष्टाचार पर रोक जैसे अनेक कार्य किए। इतना ही नहीं, भाजपा सरकार ने भविष्य में भी गुडों तथा माफिया राह बंद कर दी। पुलिस ने दो दर्जन से अधिक कुख्यात माफिया पर शिकंजा कस उनके नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया।

देश में चली तुष्टीकरण व मजहबी राजनीति से मुस्लिम वोट बैंक बनाने की साम्प्रदायिक मानसिकता वाली पार्टियों को देश के आम मतदाता द्वारा गोपाल पाठा जैसा उत्तर दिया जाना आवश्यक है। इन चुनावों में उत्तर प्रदेश सहित पांचों राज्यों में मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति कर रहे दलों को एक भी वोट जाना देश में अलगाववाद व अलगाववादी हिंसा को समर्थन होगा।     
 

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