यहां प्रस्तुत है गत 75 वर्ष के दौरान प्रकाशित विशेषांकों में से कुछ प्रतिनिधि अंकों की एक झलक
तो आरम्भ से ही पाञ्चजन्य का हर अंक अपने कालखंड के विषय विशेष पर केन्द्रित रहा है, लेकिन हिन्दुस्थान के जन—जन में गौरव—भाव जगाने वाले वर्ष के चार विशेष अवसरों—गणतंत्र दिवस, वर्ष प्रतिपदा, स्वतंत्रता दिवस और दीपावली—पर किसी एक विषय को उसकी पूर्णता के साथ, समग्र बिन्दुओं को समेटते हुए पत्रिकाकार में प्रकाशित करने की परिपाटी रही।
यह क्रम, कुछेक मौकों को छोड़कर, अबाध जारी रहा है। स्वतंत्रता के तुरंत बाद देश की सत्ता के समाजवादी, साम्यवादी झुकाव की तरफ बढ़ने के प्रति देशवासियों को सावधान करते हुए विशेषांक सामने आए। इसके बाद भारत और विश्व के अन्य देशों के बीच संबंधों की मीमांसा करते विशेषांक प्रकाशित करके पाञ्चजन्य ने पत्रकारिता के प्रति अपना धर्म निभाया। इसी तरह देश के सामने आई मानव या प्रकृतिजन्य आपदाओं की अद्यतन सचित्र जानकारी और समीक्षा प्रस्तुत की गई।
देश के हुतात्माओं, जनजातीय—वनवासी वीरों, स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं के योगदान, समरसता के पुरोधाओं, रा.स्व.संघ के विशिष्ट आयोजनों, समाज को समर्पित विभूतियों, देश के मान—बिन्दुओं, आस्था केन्द्रों, श्रेष्ठ साहित्यकारों, उद्यमियों, शिल्पकारों, श्रमिकों, अर्थक्षेत्र की चुनौतियों, स्वदेशी अर्थचिंतन, विश्वकल्याण में एकात्ममानववादी दृष्टि, हिन्दू धर्म और धर्मज्ञों, हिन्दुत्व के अस्मिता—
जागरण से जुड़े विभिन्न आंदोलनों यथा श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन, गोरक्षा, देश के वीर नायकों, राष्ट्रपुरुषों, संतों, कश्मीर, युवा पीढ़ी, राष्ट्रीय भावधारा के उच्च सोपानों आदि पर अलग—अलग कालखंडों में प्रकाशित विशेषांकों ने पाठकों के दिल में जगह बनाई है। अनेक लोगों ने इन्हें सहेजा है और आज भी उनके निजी पुस्तकालयों में ये अंक श्रद्धापूर्वक रखे देखे जा सकते हैं।
इन सभी विशेषांकों की खूबी यह भी रही कि पाञ्चजन्य के नियमित लेखकों से इतर हर विषय के मर्मज्ञों ने विशेषांकों के लिए सहर्ष लेख लिखे, साक्षात्कार दिए। अलग विचारधारा या मतभिन्नता होते हुए भी पाञ्चजन्य में वे अपनी बात बेबाकी से रख पाए। पाञ्चजन्य में कामरेड डांगे या बी.टी. रणदिवे के आलेख छपे तो अन्य अनेक मुस्लिम, कम्युनिस्ट, कांग्रेसी या समाजवादी नेताओं ने भी विभिन्न विषयों पर अपनी सोच साझा की।
देशकाल, परिस्थिति जैसी भी रही हो, पाञ्चजन्य ने बात सदा भारत की ही की है। देशहित सर्वोपरि रखते हुए विशेषांकों के विषयों का चयन किया गया और प्रामाणिकता को कसौटी मानकर हर शब्द, विचार तोल—परखकर प्रकाशित किया गया। यही वजह है कि देश के ख्यातनाम पुस्तकालयों ने अपने यहां पाञ्चजन्य के विशेषांकों को सजिल्द संग्रहित किया है, कई पुस्तकालयों ने तो इनका डिजिटलीकरण करके ये अपने पाठकों को पढ़ने के लिए उपलब्ध कराए हैं। भारत में अनेक शोधार्धी इन विशेषांकों से लिए नवनीत के आधार पर अपने अध्ययन को प्रगाढ़ कर रहे हैं।
यहां प्रस्तुत है गत 75 वर्ष के दौरान प्रकाशित विशेषांकों में से कुछ प्रतिनिधि अंकों की एक झलक
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