डॉ. विधि नागर
कथक नृत्य आकाश का एक दैदीप्यमान सितारा चला गया। बसंत पंचमी 4 फरवरी 1938 को जन्मे पंडित बृजमोहन नाथ मिश्र, जिन्हें सभी प्रेम से ‘बिरजू महाराज’ जी कहते हैं, को कथक का हस्ताक्षर एवं पर्याय भी माना जाता है। कथक बिरजू महाराज की देह में आत्मा सरीखा बसा हुआ था। उन्होंने कथक को वैश्विक पहचान दिलाई। आंखों के भाव, हाथों की भंगिमा, पैरों की गति और देहयष्टि की लचक से वो प्रतिपल रसमाधुर्य बिखेरते थे। ऐसा लगता था मानो स्वयं कृष्ण मंच पर उतर आए हैं।
बिरजू महाराज को तबला, पखावज, नाल, सितार, बांसुरी आदि कई वाद्य यंत्रों पर महारत हासिल थी। वह गाते तो ऐसा थे कि अनेक दिग्गज गायक भी उनके गायन पर अहा कर उठते थे। ठुमरी लिखना, फिर वह किस राग में गाई जाएगी, उस पर कौन सी ताल बजेगी, फिर उस पर किस प्रकार के भाव होंगे, नर्तक किस वेशभूषा में नृत्य करेंगे – इन सब छोटी से छोटी बातों पर उनका चिंतन प्रतिपल चलता रहता था। उनके भीतर प्रतिभा का महासागर था। वो बहुत अच्छे कवि व चित्रकार भी थे।
बिरजू महाराज ने कथक को लोक से जोड़ा, लोगों से जोड़ा, आम लोगों की रूचि के अनुसार कथक को समृद्ध किया। उन्होंने गिनती की तिहाइयां, प्रकृति में बिखरे सौंदर्य को लयकारी के माध्यम से तथा ट्रेन की ध्वनि को अनूठे पदाघातों से सजा कर रसिकों के सामने प्रस्तुत किया। गीत गोविंद, मालती माधव, कुमार सम्भव, एडिटिंग, फाइल कथा, रोमियो जूलियट जैसी अनेक अलौकिक नृत्य नाटिकाएं, कला और साहित्य के गूढ़ संबंध को भी प्रस्तुत करती हैं। पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज जी के असंख्य शिष्य-शिष्याएं हैं जो उनके सिखाए अनुसार कथक के महामंत्र का जाप कर रहे हैं।
आज मुझे भी महाराज जी से जुड़ा एक संस्मरण याद आ रहा है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत एवं मंच कला संकाय में नृत्य विभाग की प्रमुख एवं कथक नृत्यांगना प्रो. डॉ रंजना श्रीवास्तव ने कहा कि ‘नृत्य विभाग बनने पर अपने गुरु पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज जी को एक बार यहां बुलाना चाहती हूं। जब तक उनके कदम नवनिर्मित नृत्य विभाग के एक-एक कक्ष में नहीं पड़ेंगे, तब तक मुझे चैन नहीं आएगा। उनका भव्य सम्मान करना चाहती हूं।’ प्रो. प्रेमचंद होम्बल और मैं रंजना मैजी के साथ उत्साह से भर उठे। चर्चा के बाद तय हुआ कि 15 सितंबर 2011 को महाराज जी आएंगे। तय हुआ कि उन्हें ‘संगीत सम्राट’ की उपाधि से अलंकृत किया जाए (क्योंकि काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा महाराज जी को डी.लिट्. की मानद उपाधि से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था)।
मुझे याद है कि महाराज जी के अंगवस्त्रम के लिए मैं और माला होम्बल जी (भरतनाट्यम नृत्यांगना) बरसात में बनारस की पानी भरी सड़कों को दुपहिया वाहन से चीरते हुए लगभग 2 दिन की कड़ी मेहनत के बाद, महाराज जी पर क्या जंचेगा, यह सोच कर बनारसी अंगवस्त्रम लाए। निश्चित दिवस पर महाराज जी की प्रमुख शिष्याओं सुश्री शाश्वती सेन, सुश्री संगीता सिन्हा, प्रो. डॉ पूर्णिमा पांडे समेत अनेक विभूतियां पद्मविभूषण पंडित राजन साजन मिश्र, पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र, पद्मश्री प्रो. राजेश्वर आचार्य, प्रो. चितरंजन ज्योतिषी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति समेत हजारों लोग ऐसे अभूतपूर्व क्षण का साक्षी बनने के लिए उपस्थित थे।
और आखिरकार कथक हस्ताक्षर पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज जी के कदम काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नृत्य विभाग में पड़े और हम सब नाच उठे। हम सब का उत्साह देखकर महाराज जी ने बहुत आशीर्वाद दिया। विलक्षण कला के जादूगर के मंच पर आते ही सुर, लय और ताल का जादू सब पर चढ़ने लगा। एक के बाद एक उन्होंने गायन, वादन और नृत्य के शिल्पलेखों पर लय-ताल रूपी रंगों का चित्रण करना शुरू कर दिया। हम सभी मंत्रमुग्ध थे। उन पलों से प्राप्त आशीर्वाद को संजोए आज भी हम लोग कथक की लौ को पूरी चेतना और उत्साह के साथ जगाए हुए हैं।
17 जनवरी 2022, एक दिवस मात्र है जब इस भौतिक शरीर को आपने छोड़ा है परंतु मुझे पूरा विश्वास है कथक की इस यात्रा के 83 वर्षों में जो दो सदियां (20वीं तथा 21वीं सदी) आपने जी हैं, वह अद्भुत हैं। आपकी कथक की सेवा और सोच ने आपको अमर कर दिया। बसंत पंचमी के दिन जन्मा सरस्वती का यह मानस पुत्र आज पुन: बैकुंठ में श्री चरणों पर स्थापित हो गया।
(लेखिका काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत एवं मंच कला संकाय में नृत्य विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष हैं।)
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