‘पूरब से पश्चिम तक लहरा रही है हिन्दुत्व की पताका’ -डेविड फ्रॉली उपाख्य पं. वामदेव शास्त्री
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‘पूरब से पश्चिम तक लहरा रही है हिन्दुत्व की पताका’ -डेविड फ्रॉली उपाख्य पं. वामदेव शास्त्री

by WEB DESK
Jan 20, 2022, 02:18 am IST
in भारत, दिल्ली
डेविड फ्रॉली उपाख्य पं. वामदेव शास्त्री

डेविड फ्रॉली उपाख्य पं. वामदेव शास्त्री

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हिन्दू धर्म, दर्शन, संस्कृति  के गहन अध्येता डेविड फ्रॉली उपाख्य पं. वामदेव शास्त्री से हुई बातचीत 15/22 नवम्बर, 2015 के अंक में प्रकाशित हुई थी। उसका संपादित स्वरूप प्रस्तुत है- 

विश्व के संदर्भ में बात करें तो हाल के कुछ साल पहले तक सनातन धर्म को हेय दृष्टि से देखा जाता था। लेकिन आज स्थितियां काफी बदल चुकी हैं। इसके पीछे आप क्या कारण मानते हैं?
आधुनिक भाषा में हिन्दू धर्म की पुन: प्रस्तुति होने के बाद से यह विश्व के अनेक खुले विचार वाले लोगों में लोकप्रिय, प्रगत और भविष्योन्मुख बनकर उभरा है। इसके अनेक स्वरूप लोगों में खासे प्रचलित हो रहे हैं, जैसे योग, वेदान्त और आयुर्वेद। इसके प्रभाव का कई आंदोलनों और प्रवाहों में विस्तार होता गया है। लेकिन अब भी सनातन धर्म के संपूर्ण मूल्यों और विशिष्टता को विश्व में और मान्यता दिलाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। पर आधारशिला रखी जा चुकी है। लोग अब हिन्दू विचार के लौकिक आयाम को देखने-जानने लगे, जैसा पहले नहीं होता था। 

 स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी विभूतियों का इस दिशा में क्या योगदान रहा?
सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर, महात्मा गांधी ने समाज परिवर्तन के लिए अहिंसा के धर्म सम्मत सिद्धान्तों को अपनाया। उनसे पहले के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े अन्य नेताओं, जैसे लोकमान्य तिलक और महर्षि अरविंद ने भगवद्गीता और कर्म योग को प्रचारित किया। 

पिछले अनेक वर्षों से कई संत, आध्यात्मिक गुरु पश्चिमी देशों में प्रवचन-व्याख्यान के लिए जाते रहे हैं। क्या इससे वहां हिन्दुत्व के प्रति बदलाव लाने में कोई योगदान मिला?
पश्चिमी देशों में जाने वाले भारत के महान संतों, योग और ध्यान-शिक्षकों ने दुनिया में सनातन धर्म के प्रति आ रहे सकारात्मक बदलाव में केन्द्रीय भूमिका निभाई है। पूरी दुनिया में चेतना को उच्च आयाम पर ले जाने, शांति का मार्ग बताने और आध्यात्मिक क्षुधा को शांत करने में उनका अच्छा प्रभाव पड़ा है। लेकिन शुरू में ऐसा नहीं था। कई भारतीय मनीषियों को वहां भारी विरोध झेलना पड़ा था, यहां तक कि जान पर संकट आ गया था। उन पर मुकदमे हुए, एक अलग आध्यात्मिक मार्ग प्रस्तुत करने पर अपमान झेलना पड़ा, पश्चिम के ऐसे कई पांथिक संस्थानों की तरफ से चुनौतियां मिलीं जो पूरब की शिक्षा के विरुद्ध थे। लेकिन पिछले कुछ दशकों में ऐसी सब परिस्थितियां दरकिनार हो चुकी हैं। 

यू.के. और अमेरिका में आज अनेक हिन्दू मंदिर हैं। हिन्दू संस्कृति और मूल्यों के प्रसार में उनका क्या योगदान है?
कुछ वर्ष पहले मैं कनाडा में कई प्रमुख हिन्दू संस्थाओं के बीच व्याख्यान दे रहा था। मुझे बताया गया कि टोरंटो का नया स्वामीनारायण मंदिर मुख्य अंतरराष्टÑीय हवाई अड्डे के पास अलग से दिखता है। यह इतना शानदार और खूबसूरत बनाया गया है कि इसने हिन्दुत्व के प्रति कनाडा वालों के विचारों में इतनी सकारात्मकता ला दी जितनी कि भाषणों या व्याख्यानों से नहीं आई थी। तो ऐसा प्रभाव होता है मंदिरों का। 

भारत में कुछ लोग हिन्दुत्व का अनादर करते हैं। इस पर आप क्या कहेंगे?
पश्चिम में धार्मिक ज्ञान को प्रगतिवादी माना जाता है, वहीं भारत के बुद्धिजीवी पश्चिम के उन स्वच्छंद और भोगवादी चलनों की ही नकल करना पसंद करते हैं जिनको आज दुनियाभर के विचारक बड़ी सूक्ष्म नजर से परख रहे हैं। भारत के वामवादी पश्चिम के वामवादियों से एकदम अलग तरह के हैं। जहां पश्चिम में शाकाहार, पशुओं के अधिकार, योग, ध्यान और प्राकृतिक चिकित्सा जैसे हिन्दू मूल्यों को उदारवादी एजेंडा माना जाता है वहीं भारत के वामपंथी इन्हें दक्षिणपंथी और उग्र मानते हैं, विशेषकर इसलिए क्योंकि ये हिन्दू धर्म से जुड़ी हैं। 
प्रस्तुति : आलोक गोस्वामी

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