शहरी नक्सलियों द्वारा प्रधानमंत्री की हत्या करने का षड्यंत्र रचा गया। हिंसा और आत्मघाती स्तर तक जाने वाले ऐसे अराजक तत्वों को आप कैसे देखते हैं?
प्रधानमंत्री के संबंध में जैसे ही षड्यंत्र की बात सामने आई, मैंने तुरंत ही सुरक्षा से संबंधित सभी बड़े अधिकारियों की बैठक बुलाई और चाक-चौबंद सुरक्षा की समीक्षा की। मैंने अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया कि समय-समय पर सुरक्षा की समीक्षा होती रहनी चाहिए और कहीं भी कोई कमी नजर आती है तो उसे तुरंत पूरा किया जाए। इसमें एक बात समझने की है कि देश ही नहीं, विदेशी ताकतें भी भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचने का काम करती रहती हैं। इसके पीछे कारण है कि भारत विकास पथ पर तेजी से बढ़ता चला जा रहा है।
पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्र से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून हटा है। क्या मानना चाहिए कि यह स्थाई स्थिति है और पूर्वोत्तर बदल रहा है?
बिल्कुल, पूर्वोत्तर में बड़ा बदलाव हुआ है। शायद यह पहला अवसर है, जब स्वत: हम लोगों ने वह कानून हटाने की पहल की है। वैसे असम में भी अब पूरे राज्य से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून हटाया जा सकता है। असम के मुख्यमंत्री से इस संबंध में बात भी हुई है और वह भी इस बात से सहमत हैं। इसलिए वह दिन दूर नहीं जब वहां से भी अच्छी खबर आएगी।
जब सरकार बनी थी, उस समय लगभग 135 जिले माओवादी उग्रवाद से प्रभावित थे। आज यह संख्या कम होकर 90 रह गई है। लेकिन मैं यह बताना चाहता हूं कि जो 90 जिले भी हैं, उसमें कुछ जिलों को छोड़कर बहुत से जिलों में यदा-कदा ही ऐसी घटनाएं होती हैं। फिर भी हम उन्हें माओवाद से प्रभावित क्षेत्र मानते हैं।
इन अच्छे संकेतों के बीच में कुछ बुरे संकेत भी आते हैं। जैसे, बीच में गोतस्करी पर लगाम लगी थी, लेकिन फिर से गोतस्करी में तेजी आई है। कितनी सचाई है इसमें?
पहले की अपेक्षा गोतस्करी में कमी आई है, मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हूं। जहां से गोतस्करी के समाचार आते हैं, तो मैं बताना चाहता हूं कि भारत-बांग्लादेश की सीमा बहुत लंबी है और उस सीमा की चुनौतियां भी अलग-अलग हैं। गोतस्कर अलग-अलग तकनीक से तस्करी करते हैं। लेकिन पहले की अपेक्षा यह कम है।
नरेंद्र मोदी सरकार के चार वर्ष पूरे होने के बाद गृहमंत्री के रूप में आप आन्तरिक सुरक्षा में पिछली सरकार की तुलना में क्या अंतर पाते हैं?
देखिए, मैं कह सकता हूं कि चार वर्ष में आंतरिक सुरक्षा की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। आंतरिक मोर्चे पर जो प्रमुख चुनौतियां हैं वे हैं माओवादी उग्रवाद, पूर्वोत्तर का उग्रवाद, आतंकवाद और जम्मू-कश्मीर की समस्या। लेकिन अगर माओवादी आतंक के संबंध में कहें तो हर व्यक्ति इस हकीकत को स्वीकार करता है कि इन चार वर्षों में माओवादी उग्रवाद की स्थिति में काफी हद तक सुधार हुआ है। यदि मैं कहूं कि 50-55 फीसदी से अधिक का सुधार माओवादी उग्रवाद के मोर्चे पर हुआ है, तो यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा। जब सरकार बनी थी, उस समय लगभग 135 जिले माओवादी उग्रवाद से प्रभावित थे। आज यह संख्या कम होकर 90 रह गई है। लेकिन मैं यह बताना चाहता हूं कि जो 90 जिले भी हैं, उसमें कुछ जिलों को छोड़कर बहुत से जिलों में यदा-कदा ही ऐसी घटनाएं होती हैं। फिर भी हम उन्हें माओवाद से प्रभावित क्षेत्र मानते हैं।
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