श्रीराम जन्मभूमि मामले पर सर्वोच्च न्यायालय का बहुप्रतीक्षित निर्णय आ गया है। आपकी पहली प्रतिक्रिया?
श्रीराम जन्मभूमि मामले पर आए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पूरा देश प्रसन्न है। इस प्रसन्नता की घड़ी में सबसे पहले मैं सभी को बधाई देता हूं और अभिनंदन करता हूं। मेरी ओर से उन सभी का भी अभिनंदन है जो न्याय, समता और सौहार्द में विश्वास करते हैं। यह फैसला न्याय और सत्य की कसौटी का एक ऐसा अनुपम उदाहरण है जिसे देश के न्यायिक इतिहास में सदियों तक स्मरण किया जाएगा। आने वाले समय के लिए यह फैसला अपने आप में एक नजीर बनेगा और सत्य और न्याय की कसौटी पर लोगों को झकझोरेगा।
आप कब इस आंदोलन से जुड़े?
देखिए, मैं शुरू से गोरक्षपीठ से जुड़ा था तो स्वाभाविक रूप से आंदोलन के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष से रूप से जुड़ा रहा हूं। 1985-86 के आस-पास से महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के साथ आना-जाना, उनके सान्निध्य में रहना, आंदोलन से जुड़ी बैठकों में उनके साथ पीछे बैठ कर उनकी सेवा में सब कार्यक्रमों को पास से देखना एवं उन कार्यक्रमों में सम्मिलित रहने का क्रम चलता रहा। 1992 में भी हम लोग सारे घटनाक्रम के साक्षी रहे हैं। सारी चीजों को करीब से देखा है। लेकिन इस पूरे समय में मैंने जो देखा वह यह कि पूज्य गुरुदेव कभी भी कितने तनाव में रहे हों लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं खोया। इसी तरह महंत रामचंद्रदास परमहंस जी महाराज भी थे। वह कभी-कभी रुष्ट होते थे लेकिन आंदोलन के दौरान कभी धैर्य नहीं खोते थे। 30 अक्तूबर, 1990 और 2 नवम्बर,1990 को जब अयोध्या में कारसेवकों का कत्लेआम हो रहा था तब भी मैंने देखा कि यह दोनों संत रामभक्तों को बचा रहे थे और घायल कारसेवकों की मरहम-पट्टी करने में योगदान दे रहे थे। यही है राम की मर्यादा और उनकी सीख कि किसी भी स्थिति में धैर्य नहीं खोना।
फैसला सुनते समय आप क्या अनुभव कर रहे थे?
फैसला सुनते ही मेरे दिमाग-मन में वे सभी चेहरे सामने आने लगे जो इस पूरे आंदोलन की रीढ़ थे। ये सभी लोग सम-विषम परिस्थिति में जूझते थे, लगते थे और कभी किसी बात की चिंता नहीं करते थे। इन महापुरुषों को कभी यह चिंता नहीं रहती थी कि हम कहां हैं, कैसे हैं, किस हालत में हैं। इनका एक-एक पल और क्षण रामकाज के लिए समर्पित था। इनके मन में एक ही धुन थी-जय श्रीराम और दृढसंकल्प था श्रीरामलला के जन्मस्थान पर भव्य मंदिर के निर्माण का। मुझे इस अभियान और ऐसे महापुरुषों को बहुत नजदीक से देखने, सुनने और आंदोलन के स्वर्णिम क्षणों का साक्षी बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। देखिए, यह आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था जिसने पूरे देश को अपने साथ जोड़ा। सुखद स्थिति यह होती अगर यह फैसला जल्दी आ जाता तो इस आंदोलन के शिल्पी इन क्षणों को देख और महसूस कर पाते।
आंदोलन के दौरान सहभागिता की दृष्टि से जनजागरण या अन्य कोई विशेष आयाम आपके पास था उस समय?
बिल्कुल, 1990 के पहले और 1992 के बाद जब आंदोलन का स्वर थोड़ा शिथिल होता हुआ दिखाई दिया तो मैंने अशोक जी के साथ बैठकर इससे जुड़ी योजना-रचना तैयार करने में अपना योगदान दिया। इसी तरह 1996-97 के बाद आंदोलन को लेकर शांति थी, कहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, आंदोलन थोड़ा शिथिल पड़ा था। सवाल यह था कि आंदोलन आगे कैसे बढ़े? आगे का कार्य कैसे होगा? ऐसे मौके पर जनचेतना को जागृत करने के लिए, आंदोलन की लौ को तेज प्रदान करने के लिए मुझे हिन्दू वाहिनी का गठन करना पड़ा था। यह दो कारणों से आवश्यक था। एक तो भारत-नेपाल की सीमा सुरक्षा की दृष्टि से। क्योंकि दुर्भाग्य से 1990 के बाद जो सेकुलर सरकारें देश के अंदर आर्इं और 2004 के बाद से 2014 तक रहीं, उनके मन में राष्ट्रीय सुरक्षा का कोई भाव नहीं था। दूसरा, श्रीरामजन्मभूमि आन्दोलन, जो कि अनुष्ठान रूप में था तो स्वाभाविक था कि इससे जुड़े संत-महंत और महापुरुषों के इर्द-गिर्द मारीच-ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षस आतंक मचाने के लिए तैयार थे। मुझे इन सभी चीजों का अहसास हो रहा था। यह भी देख रहा था कि कई चीजें घटित हो रही हैं लेकिन शासन-सत्ता मौन साधे हुए है। इन सब स्थितियों में श्रद्धेय अशोक जी से चर्चा हुई कि क्या किया जाना चाहिए? उन्होंने कहा, हमें चुप नहीं बैठना चाहिए। इसके बाद मैंने उस अभियान को अपने हाथों में लिया और सफलतापूर्वक इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।
जिस अयोध्या को एक सांस्कृतिक नगरी के रूप में देश और दुनिया में पहचान मिलनी चाहिए थी, उसकी उपेक्षा की गई। फैसले के बाद तस्वीर साफ है तो अयोध्या को उसकी खोई हुई पहचान कब तक मिलेगी?
आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं कि आजादी के बाद से अयोध्या की उपेक्षा लगभग सभी सरकारों ने की। राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद मेरा बेधड़क होकर अयोध्या आना-जाना शुरू हुआ। इस दौरान मैंने देखा कि राम की अयोध्या की स्थिति तो बहुत ही खराब है। बिजली नहीं है। सड़कें गड्ढों में तब्दील हैं। बिजली के तार हर जगह लटक रहे हैं। इससे अयोध्यावासी ही नहीं, बंदर तक चपेट में आ रहे थे। कोई पर्व-त्योहार पड़ता था तो गंदगी का ढेर लगा रहता था। रामजी की पैड़ी गया तो देखा कि पम्प करके पानी आता था, वहीं सड़ता था, उसी सड़े हुए पानी में श्रद्धालुओं को स्नान करने के लिए मजबूर होना पड़ता था। ऐसा प्रतीत होता था कि अयोध्या वनवास काट रही है।
ऐसी स्थिति को देखकर मैंने अधिकारियों से कहा कि अयोध्या जी में सरयू जी का वही महात्म्य है जो हरिद्वार में गंगाजी का है। रही बात अयोध्या की पहचान की, तो निश्चित रूप से मैं अयोध्या को उसकी पहचान दिलाने के लिए कृतसंकल्पित हूं। यह पहचान मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्मस्थान के रूप में अयोध्या को मिलनी ही चाहिए, अपितु मानवता के कल्याण की प्रथम भूमि होने के कारण मिलनी चाहिए। हमने दीपोत्सव का आयोजन इसी भाव के साथ अयोध्या में प्रारंभ किया। सब जानकारी जुटाकर मैंने कहा कि तैयारी करो। पूज्य संतों से बातचीत हुई। सभी संगठनों से बातचीत हुई। पहली बार आयोध्या की दीपावली, दीपोत्सव रूप में लोगों के सामने थी, जिसे काफी सराहना मिली। करो। साहित्य का संकलन करो। उन देशों की रामलीलाओं को यहां बुलाओ और यहां की रामलीला को वहां भेजो। यह सिलसिला पिछले तीन साल में प्रारंभ हुआ है।
इसके साथ ही विवाद के कारण संपूर्ण अयोध्या उपेक्षित थी। हमने अयोध्या की तरफ ध्यान दिया और अधिकारियों से कहा कि यहां लटके हुए तार क्यों हैं? इनको भूमिगत करिए। एलईडी स्ट्रीट लाइट अयोध्या में क्यों नहीं लग सकती? सफाई यहां क्यों नहीं हो सकती? यहां के घाट ठीक क्यों नहीं हो सकते? अयोध्या को हमने नगर निगम बनाया। फैजाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या किया। पंचकोसी की परिक्रमा, चौदहकोसी की परिक्रमा, चौरासीकोसी की परिक्रमा-इन सभी को बुनियादी सुविधाओं से जोड़ने का काम शुरू कराया। व्यापक कार्ययोजना बनाई, सड़कों को ठीक करना शुरू किया, घाटों का सौंदर्यीकरण करना शुरू किया।
बस अड्डे, मेडिकल कॉलेज, एयरपोर्ट पर कार्ययोजनाओं को आगे बढ़ाया। सरयू में सीधे सीवेज जाता था, उसे रुकवाने के लिए एसटीपी पर कार्य किया। कुल मिलाकर अयोध्या के विकास को लेकर काफी चीजें चल रही हैं। अभी हमने वहां के लिए एक आयुष विश्वविद्यालय की भी व्यवस्था तैयार की है। इधर भगवान राम का भव्य मंदिर भी बनेगा, एक आधुनिक संग्रहालय भी बनेगा। मुझे लगता है कि एक योगी के रूप में श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन के साथ जुड़ना मेरे लिए गौरव की बात रही है और एक मुख्यमंत्री के रूप में अयोध्या को उसकी पहचान दिलाने में योगदान करना मुझे लगता है कि मेरे जीवन का एक स्वर्णिम पल है।
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