वामपंथी प्रतीक गढ़ते हैं. कागज के नायक तलाशते हैं. फिर एक पूरा इको सिस्टम इन नायकों को सींचने में लग जाता है. रोहित वेमुला की त्रासद मौत असल में वामपंथी दुष्प्रचार का प्रवाह है. एक एजेंडा जीवी तबके की नाकाम आह है.
वामपंथियों के नायक हमेशा हकीकत से दूर होते हैं. उनके दो चेहरे होते हैं. एक वो, जो हकीकत है. और दूसरा वो, जिसे वामपंथी मिलकर पेंट करते हैं. हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या को आज छह साल हो गए. वामपंथी ऐसे मौकों पर कब्रों पर जाते हैं, वहां जमी धूल को किनारे करते हैं. काई को खुरचते हैं. सूखी पत्तियों को समेटते हैं. फिर वे रोहित वेमुलाओं को तलाशते हैं. तराशते हैं. इस सालाना कवायद के बाद फिर वे समाज में रोहित वेमुलाओं को तलाशते हैं. उनके मरने का इंतजार करते हैं.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का भी वामपंथ के साथ रूमानी रिश्ता वेमुला की बरसी के साथ एक फिर सामने आया. अक्सर विदेश जाकर वामपंथ और साजिशों की नई डोज लेकर लौटने वाले राहुल ने रोहित को अपना हीरो बताया. राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा है, ''सिर्फ दलित होने की वजह से रोहित वेमुला के साथ अत्याचार हुए और उनकी हत्या कर दी गई है। साल बीत रहे हैं लेकिन वे आज भी प्रतिरोध का प्रतीक बने हुए हैं। उनकी बहादुर मां आशा की प्रतीक बनी हुई हैं। अंत तक लड़ने के लिए, रोहित मेरा हीरो है, मेरा भाई जिसके साथ अन्याय हुआ था।''
राहुल गांधी ऐसा कह सकते हैं. रोहित वेमुला की मौत उनके लिए बाकी वामपंथियों की तरह जलसा ही है. ऐसा समारोह, जिसमें वे अपनी विचारधारा का बैनर उठाए किसी लाश के कंधे पर सवार हों. तमाम वामपंथी आज दिन भर रोहित वेमुला के जनाजे पर सवार रहे. लेकिन हर बिंदु पर आप पाएंगे, रोहित सिर्फ एक औजार था. वामपंथियों का ये नायक, उनके बाकी नायकों की तरह झूठ के शोकेस में सजी एक तस्वीर भर है.
राहुल गांधी और बाकी वामपंथी खेमा रोहित को एक वर्ग का करार देता है. लेकिन रोहिता वेमुला असल में दूसरे वर्ग से आता था. 17 जनवरी, 2016 को इस शख्स ने एक सुसाइड नोट लिखा. वामपंथियों का ये नायक डॉ.आंबेडकर की तरह चुनौतियों से नहीं लड़ा. जीवन के बहुत शुरुआती दौर में हार गया. और हार के कारण…कारण भी वो नहीं, जो वामपंथी बताते हैं. जिस नायक में अपना वैचारिक आधार ये वामपंथी तलाशते हैं, वह वैचारिक तौर पर इस कदर शून्य था कि मौत से पूर्व अपना संदेश भी न लिख सका. एक छोटे सुसाइड में सैंकड़ों शब्द लिखकर कतर दिए गए. रोहित की मौत की जांच के लिए बने न्यायिक आयोग की रिपोर्ट पर गौर कीजिए, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज ए.के. रुपनवाल शामिल थे. आयोग की रिपोर्ट ही वामपंथियों के इस नायक की मौत की वजह, उसके तथाकथित रूप से विक्टिम होने की इस कमजोर सी कहानी की धज्जियां उड़ा देती है. बकौल आयोग, खुद वेमुला ने लिखा कि वह निजी कारणों से परेशान था. वह जिंदगी से खुश नहीं था. उसका असल दर्द ये था कि वह अपने माता-पिता की नाकाम शादी के बाद बचपन से अकेला था. बहुत अकेला. और उससे भी बढ़कर उसे इस बात का अवसाद था कि उसे सब नाकाबिल समझते थे. उसके सुसाइड नोट में मौत के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया, लेकिन राहुल गांधी और उनके वामपंथी दोस्त इस अकेली अवसादग्रस्त जिंदगी के बेवक्त खत्म होने को लेकर अपनी पसंद के निशाने और जिम्मेदार आज तक ढूंढ रहे हैं और ढूंढते रहेंगे.
आयोग की रिपोर्ट की मुताबिक वह अन्य पिछड़ा वर्ग से आता था. उसके पिता मणिकुमार बडेरा समुदाय से थे, जो अन्य पिछड़ा वर्ग से आते। हालांकि उसकी मां का तर्क था कि वह माला समुदाय से हैं, जो अनुसूचित जाति में आता है. जांच के दौरान रोहित की मां ऐसा कोई सुबूत पेश न कर सकीं कि उनका बेटा अनुसूचित जाति के तहत था. हां, इतना जरूर है कि रोहित की मां होने के कारण उनकी एक वैल्यु बनी और वामपंथियों के नैरेटिव और कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति बन गई.
रोहित छात्र कैसा था, ये तो खैर उसके बारे में चंद बातों से पता चल जाता है. मसलन उस पर एक छात्र के साथ मारपीट का आरोप था. जिसके चलते नवंबर, 2015 में निष्कासित भी किया गया था. लेकिन इसके बावजूद वह वामपंथी एजेंडा को पूरा करने वाली हर खासियत से लैस था. वामपंथी मशालों के पीछे रोहित वेमुला हमेशा इस तरह पोस्टर पर रहेगा, जिसमें दर्ज होगा कि सिस्टम के हाथ मारा गया एक छात्र….
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